प्रेरणादायक बाल काव्य: देश बने सोने की चिड़िया | डॉ. राकेश चक्र

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Poetry Collection Book Desh Bane Sone Ki Chidiya by Dr. Rakesh Chakra, Hindi Children's Poems, Bal Kavita Sangrah.

Desh Bane Sone Ki Chidiya

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Hindi Bal Kavya Sangrah : ‘देश बने सोने की चिड़िया’ एक प्रेरणादायक बाल काव्य संग्रह है, जिसमें डॉ. राकेश चक्र ने बचपन की मासूमियत, देशभक्ति और जीवन मूल्यों को सहज और सरस भाषा में प्रस्तुत किया है।

देश बने सोने की चिड़िया

प्रस्तावना

बचपन की याद आते ही मन खुशी से बल्लियों उछलने लगता है। हमारे बड़े बुजुर्ग भी अपने बचपन को याद करके शोखियों, शैतानियों, खिलन्दड़ी गतिविधियों एवं नई उड़ानों के सुख-सपनों में खो जाते हैं। वे उन दिनों की स्मृतियों से रोमांचित हो उठते हैं, जब रसगुल्ला एक रुपये के चार और गुब्बारा एक पैसे का एक मिलता था। सचमुच बचपन हमारे लिए ईश्वर का सर्वोत्तम वरदान है। बचपन को मनोविज्ञान की भाषा में बाल्यावस्था कहते हैं जो प्रायः पाँच से बारह वर्ष तक रहती है। इसमें एक दो वर्ष और बढ़ाये जा सकते हैं।

बच्चे इस अवस्था में खेलने-कूदने के साथ-साथ गाने-गुनगुनाने में भी रुचि लेते हैं। अपनी लयात्मकता, सरलता, सरसता एवं गेयात्मकता के कारण बालगीतों को बाल साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा अधिक पसन्द करते हैं। यद्यपि आंशिक मात्रा में इस प्रकार कुछ रचनाएँ बच्चों को पाठ्य पुस्तकों में मिल जाती हैं, फिर भी उनकी रुचियों, जिज्ञासाओं एवं अपेक्षाओं के अनुरूप अनौपचारिक रूप से बाल काव्य कृतियों की आवश्यकता रहती है।

बड़ों के साथ-साथ बच्चों के कुशल कवि भाई राकेश 'चक्र' जी और उनकी बाल काव्य कृतियों की इन दिनों सर्वत्र धूम है। मैंने उनकी प्रस्तुत बालगीतों की कृति को देखा और पढ़ा है। वे अपने इन गीतों के माध्यम से बच्चों में नया ज्ञान, नए मूल्य, नई आस्थाएँ, नये विश्वास एवं देश भक्ति की भावमा भरना चाहते हैं। उदाहरणार्थ- 'देश बने सोने की चिड़िया / आओ मिल कुछ नया करें / साफ-सफाई करें रोज हम /सब जीवों पर दया करें।" बच्चों की तुलना कवि ने दो पंक्तियों में पक्षियों से कितनी सहजता से की है, यह द्रष्टव्य है- 'उपवन के पक्षी हैं प्यारे / जैसे अपने बच्चे सारे।" हँसी-खुशी जीवन में कितनी आवश्यक होती है यह बच्चे भी जानते हैं। देखिए "आओ हँस लें और हँसा लें / बढ़िया सेहत सभी बना लें।

वास्तव में बचपन एक भूल भुलैया के समान है, जिसमें खोकर मनुष्य पचपन का होकर भी उसके आनन्द को नहीं भूल पाता है। यथा- "प्यारे बचपन, न्यारे बचपन / उम्र हो गई अब तो पचपन / फिर भी याद तुम्हारी आती / सचमुच भूल भुलइया बचपन ।"

फिर भी गरीब और असहाय वच्चे कूड़े में से काम की चीजें चुनने के लिए विवश हैं। हम सभी, ऐसे बच्चों के प्रति संवेदना रखते हुए उन्हें सुखद-बचपन की अनुभूति लौटाने में सहायक बने तो यह एक उत्तम कार्य होगा! देखिये- 'आँख फेरते सब ही भाई / सबके मन रीते-रीते हैं। यह बचपन अब कूड़ाघर है/ फटे वसन सारे सींते हैं।"

संकलन की अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं- 'मंगलयान', 'काले बादल : गोरे बादल', 'नए-नए यह झूलों वाला', 'मेरा मन', 'सदा शिखर पर चढ़ते हैं, 'खुशियाँ ही खुशियाँ दे होली' और 'मीठी नींद'। इनके अतिरिक्त 'मेघा हमको पानी दे दो लोक शैली पर आधारित एक उत्तम बालगीत है।

यद्यपि बाल काव्य को किसी भी समीक्षा की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि बच्चे ही इसके सच्चे समीक्षक होते हैं! जिन रचनाओं को गाते-गुनगुनाते हुए बच्चों की लय नहीं टूटती वे ही उनकी जुबान पर रच-बस जाती हैं और जिनमें लय टूट जाती हैं, बच्चे उन्हें छोड़ देते हैं।

कुल मिलाकर सभी रचनाएँ रोचक, प्रेरक एवं बालोपयोगी हैं। 'चक्र' जी बच्चों के लिए खूब लिखते हैं, धुँआधार लिखते हैं और अच्छा लिखते हैं, वे सचमुच बधाई के पात्र हैं।

आशा है एक खिलौने की भाँति आकर्षक प्रस्तुत कृति अभिभावक गण खरीदकर अपने बच्चों को देंगे और उनकी पठन-पाठन की रुचि को परिष्कृत करेंगे। पुस्तक बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था के पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी बन पड़ी है। सभी पुस्तकालयों के लिए यह एक उत्तम और अनिवार्य कृति है।

मुझे विश्वास है कि चक्र जी की यह कृति सुदूर अंचल में बसे बाल पाठकों तक पहुँच सकेगी और हिन्दी बाल साहित्य में इसका भरपूर स्वागत होगा। अनन्त मंगल-कामनाओं सहित।

- डॉ. रोहिताश्व अस्थाना

Kavita Swagat Hai

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Swagat Geet : ‘स्वागत गीत’ एक प्रेरणादायक कविता है जो शिक्षकों के समर्पण, परिश्रम और शिक्षा के महत्व को सराहती है। यह कविता उनके उज्जवल भविष्य और सतत सफलता की कामना करती है।"

स्वागत गीत


स्वागत सतत तुम्हारा।

श्रीमन् स्वागत सतत तुम्हारा।।

तुम सरस्वती के मुखर पुजारी,

शिक्षक सच्चाई के।

साधक हो समवेत् शान्ति के

पोषक अच्छाई के।

झंकृत है हर एक दिशा में

यश अनवरत् तुम्हारा ।।

स्वागत सतत् तुम्हारा ।।

कठिन परिश्रम से ही तुमने

कुछ ऐसा कर डाला।

शिक्षा की बगिया में आया

नव मधुमास निराला।

ईश्वर करे सदैव बढ़ो तुम

शिव संकल्प तुम्हारा।।

स्वागत सतत् तुम्हारा ।।


Poem on Maa Saraswati

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Vagdevi Maa : ‘वाग्देवी माँ! मुझे स्वीकार लो’ एक भावपूर्ण कविता है जो माँ सरस्वती से ज्ञान, सुमति और जीवन में सही मार्गदर्शन की प्रार्थना करती है। यह कविता आध्यात्मिक ऊर्जा और शुद्ध विचारों का सन्देश देती है।"

वाग्देवी माँ ! मुझे स्वीकार लो


वाग्देवी माँ! मुझे स्वीकार लो।

भाव सुमनों-सा सजा उपहार दो।।

शब्द में भर दो मधुरता,

अर्थ दो मुझको सुमति के।

मैं न भटकूँ सत्य पथ से,

माँ बचा लेना कुमति से ।।


हंसवाहिनी सब दुखों से तार दो।

वाग्देवी माँ ! मुझे स्वीकार लो।।

कोई छल से, छल न पाये,

देना संबल तेज बल को।

कामनाएँ हों नियंत्रित,

सरस्वती माँ! कर्मफल से ।।


वागीश्वरी ! सब सुखों का सार दो।

वाग्देवी माँ! मुझे स्वीकार लो।।

भेद मन के सब मिटा दो।

प्रेम की गंगा बहा दो।

राग-द्वेषों को हटाकर,

हर मनुज का सुख बढ़ा दो।।


सरस्वती माँ ! दृष्टि को आधार दो।

वाग्देवी माँ! मुझे स्वीकार लो।।


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