हिंदी कविता संग्रह: डॉ. रानी कुमारी की भावनात्मक अभिव्यक्तियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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"आज मन बेचैन क्यों है" और "मन का आँगन" डॉ. रानी कुमारी द्वारा रचित दो संवेदनशील और भावनात्मक हिंदी कविताएँ हैं, जो प्रेम, पीड़ा, आत्ममंथन और स्त्री-मन की गहराइयों को छूती हैं। जबलपुर निवासी लेखिका डॉ. रानी कुमारी ने इन रचनाओं के माध्यम से टूटे रिश्तों की तड़प, मन की व्याकुलता, और आत्म-स्वीकृति के भावों को बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। उनकी कविताएँ न केवल पाठक को भीतर तक झकझोरती हैं, बल्कि आत्मबोध और आत्मबल की प्रेरणा भी देती हैं। हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए ये कविताएँ एक मार्मिक अनुभव हैं।

Dr. Rani Kumari Poetry

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एक भावनात्मक हिंदी कविता

इस भावुक हिंदी कविता में मन की बेचैनी, अधूरी चाहत और टूटे रिश्तों का दर्द झलकता है। कवयित्री डॉ. रानी कुमारी की रचना, जो दिल को छू जाती है।

आज मन बेचैन क्यूँ है?


पता नहीं आज मन बेचैन फ़िर क्यूँ है? 

लग रहा है जैसे कुछ अनहोनी होने को है 

नहीं है कोई ताल्लुक़ उससे, फिर भी एक जुस्तजू है

खेर ख़बर पाने की उसकी बस ललक क्यूँ है l

पता नहीं ......


सीने में एक आग सी यूँ धधक रही क्यूँ है 

फिर से गर्म श्वासों में डूब जाने का मन क्यूँ है 

आज फिर बीते दिनों में लौट जाने का मन क्यूँ है 

तुम हो मेरे रोम रोम में, फिर भी मिलने की ललक क्यूँ है 

पता नहीं....


यादों के कारवां को कैसे यूँ भूला दूँ मुलाक़ातों के सिलसिले को कैसे यूँ मिटा दूँ 

ग़र मिल जाए तू कहीं भी अनजान रास्ते में 

सौ सवाल दाग दूँगी बिन बोले तुझे यूँ ही 

फिर भी ग़र खामोश ही रहा इतने पर भी तू 

मैं मान लूँगी नहीं पसंद थी कभी तेरी मैं 

पता नहीं....


टुकड़ों में तोड़ने की आदत है पुरानी तेरी 

गहरे ज़ख्म देकर ग़ैरों में व्यस्त तू क्यूँ है 

तिल तिल क्यूँ मारते हो इस कदर मुझको 

इक बार ही में क्यूँ ना मार देते हो मुझको 

पता नहीं....


एक मार्मिक आत्मस्वीकृति की हिंदी कविता

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यह कविता प्रेम, दूरी, और आत्मबोध के भावों को उजागर करती है। डॉ रानी कुमारी द्वारा रचित यह हिंदी कविता आत्मविश्लेषण और आत्मबल की प्रेरणा देती है।

मन का आँगन 


मैं आज तुमसे 

उतनी ही दूर हूँ, 

जितना तुमने चाहा 

था कभी अपने 

अन्तर्मन में, पर 

मैंने कभी नहीं 

चाही थी इतनी 

दूरी, मेरे शहर से 

बहुत दूर थे

तुम मुझसे कभी 

पर आज एक ही 

शहर में होकर हो

 गए हम मिलों दूर,

शायद मेरे मन के

आँगन में नहीं है 

तुम्हारा कोई अस्तित्व।

जब दूर थे हम

फिर भी थे बहुत करीब 

जिसे मैं समीप्यता 

समझा करती थी 

वो था तूफान आने 

के पहले की शांति 

मैंने सोचा, सब 

अनायास ही घटित

 हुआ होगा, अब

जब करती विचार 

तो महसूस होता 

ये सब तो था पूर्व 

निर्धारित जिसे 

तुमने ही बुना था ।

अब नहीं है

तनिक भी अफसोस 

मुझे, बस सोचती हूं 

क्यूँ बन गई थी मैं 

कभी तुम्हारी कठपुतली ।

मेरे मन के आँगन 

में आज कहीं 

नहीं हो तुम 

पर कभी कभी 

धुंधली यादें अनायास 

ही आ जाते जेहन 

में मेरे क्यूँ, क्रंदन 

जो उन क्षणों 

में किया था मैंने 

सोचती हूं क्या 

इतनी बड़ी गलती 

थी मेरी, विधाता 

सिखा देते हैं 

जीवन मे कुछ सीख 

फिर भी क्यूँ इतिहास 

दोहराता खुद को 

बार-बार, आखिर क्यूँ?


डॉ. रानी कुमारी
कवयित्री लेखिका
जबलपुर

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