मैं : हिंदी कविता - Main Hindi Poem

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I : Poem on Myself in Hindi

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Mai Kavita In Hindi

“मैं”

"मैं" मैं कहता इन्सान ।

"मैं” में खो गया ईमान ।

"मैं” में ही है अहंकार

मैं ही है मानवता पर प्रहार ।।

"मैं" के मयखाने में,

बरबादी के प्याले में,

छलकती पुरुषार्थों की मदिरा।

मदिरा-नशा बनादे जीवन अधूरा।

"मैं” ही है विकारों का आधार ।

"मैं" ही है विनाश की छाया।

"मैं" माया का जाल है।

"मैं” ज्ञान पर पड़ा अकाल है।

"मैं" का मोह जीवन का अंधकार है।

“मैं” का स्वार्थ, पतन का भागीदार है।

"मैं” मेरा कुछ नहीं तेरा।

"मैं" को त्यागकर देखे जग सारा।

क्या किया तुमने अपना उद्धार।

क्या दिया तुमने संसार को उपहार।

"मैं" मूर्खता है।

"हम” जीवन की पूर्णता है।

"मैं” के अंश से "पूर्ण" बनने का करो प्रयास।

"मैं” के महफिल में "हम” से ही है बढ़ता विश्वास ।


- के. माधवी

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