सच्ची मित्रता : True Friendship

Dr. Mulla Adam Ali
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          सच्चा मित्र जीवन के लिए एक अनमोल उपहार होता है। मित्रता कभी ऊंच - नीच, जात - पात या छुआ - छूत नही देखती। एक सच्चा मित्र कड़वी औषधि के समान होता है जैसे औषधि बीमारी के लिए लाभकारी होती है वैसे ही सच्चा मित्र जीवन के लिए लाभकारी होता है। लेकिन, सच्चा मित्र मिलना आसान नही होता। स्वार्थी, अवसरवादी मित्र तो कदम - कदम पर मिल जायेंगे, जो सुख में तो सदैव साथ रहते हैं परंतु दुख में साथ छोड़ देते हैं। लेकिन सच्चा, दुख में साथ देने वाला और पीठ थपथपाने वाला मित्र लाखों में एक ही होता है।

भगवान कृष्ण ने बाल्यावस्था में सुदामा को मित्रता निभाने का जो वचन दिया था, वो उन्होंने जीवन भर निभाया।

दिया वचन ये कृष्ण ने

जीवन भर निभाऊंगा।

तेरी एक पुकार पे,

सुदामा, मै दौडा आंऊगा।

भगवान कृष्ण ने हर कदम पर सुदामा का साथ दिया और अपने मित्र वचन का पालन किया।

इसी तरह श्री राम ने सुग्रीव की मित्रता को निभाया, एक सच्चे मित्र की भांति उसका राज्य, उसकी भार्या उसका मान - सम्मान उसे वापिस दिलवाया।

मित्र नहीं श्री राम सा सुग्रीव को सम्मान दिलाया।

देकर उपहार मित्रता का

उसका मान बढ़ाया।

सुग्रीव ने भी श्री राम के प्रति अपनी सच्ची मित्रता को सदैव निभाया। सुख में दुख में हर क्षण में सुग्रीव श्री राम के साथ खड़े रहे।

एक सच्चा और हितैषी मित्र बिना बोले ही हमारी अच्छी या बुरी कैसी भी भावनायें हो उन्हें समझ जाता है। जो हमारे सुख में सुखी और दुख में दुखी हो वही एक सच्चा मित्र होता है।

एक सच्चा मित्र अंधकार में उस रोशनी की के समान होता है जो हमारे जीवन को प्रकाशित कर देती है।सच्चे मित्र मे अपने मित्र की अच्छाई ही नहीं बुराई भी अपनाने के गुण होते हैं। जिस तरह करण ने दुर्योधन के गुणों के साथ उसके अवगुणों को भी अपनाया। असत्य और अधर्म के पथ पर चल रहा था यह जानते हुए भी करण ने अपनी सच्ची मित्रता के वचन को निभाने के लिए उसका साथ दिया और अंत में अपने प्राण बलिदान कर दिये।

प्राणों का देकर बलिदान

करण ने वचन निभाया।

दुर्योधन की मित्रता को

मरकर भी निभाया।

एक सच्चा मित्र हमारे जीवन के लिए अनमोल होता है, जिसका कोई मोल नहीं होता।

जो स्वार्थ से परे हो, अवसरवादी न हो, जिसमें अपनेपन का अहसास हो, जो मित्र के लिए हमेशा तत्पर हो वही मित्रता "सच्ची मित्रता" कहलाती है।

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