राधा कृष्ण के प्रथम मिलन का साक्षी तमाल (ललित आलेख)

Dr. Mulla Adam Ali
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   कमाल का तमाल

शिवचरण चौहान

      कमाल का वृक्ष है तमाल। है तो यह पहाड़ों का वृक्ष, पर कृष्ण प्रेम में यह वृंदावन अा गया। कालिंदी के किनारे चुपचाप खड़ा हो गया। जैसे तपस्या कर रहा हो। बृज में कृष्ण के जाने के बाद यह भी लुप्त हो रहा है।

      राधा और कृष्ण पहली बार तमाल वृक्ष के नीचे ही मिले थे। कदंब के वृक्ष को यह सौभाग्य नहीं प्राप्त है। पर तमाल राधा कृष्ण के प्रथम मिलन का साक्षी है। गवाह है। निधिवन कृष्ण और राधा की मिलन स्थली है। आज भी रात में राधा और कृष्ण शयन करने के लिए निधिवन में ही आते हैं। निधिवन का तमाल वृक्ष अब गोलोक वासी हो चुका है। प्रेम का प्रतीक निधिवन आज भी नृत्य की मुद्रा में खड़ा है कृष्ण और राधा की प्रतीक्षा करता हुआ।

      नंद गांव से मथुरा जाते समय कृष्ण ने राधा से कहा था कि अब हम कुरुक्षेत्र में मिलेंगे। जब कृष्ण कुरुक्षेत्र में थे तो राधा यशोदा के साथ कुरुक्षेत्र में मिलने गई थी। उस समय ग्रहण का ल का विशेष पर्व था और कुरुक्षेत्र के सरोवर में स्नान करने सभी आते थे। राधा की कृष्ण से आखिरी मुलाकात कुरुक्षेत्र में ही हुई थी। राधा ने वहां पर अपने पहले मिलन का प्रतीक तमाल के पौधे का वही रोपण किया था। कहते हैं तमाल का यह वृक्ष आज भी कुरुक्षेत्र में खड़ा है।

     वैसे तो तमाल के दो तरह के वृक्ष पाए जाते हैं। एक साधारण तमाल और एक श्याम तमाल। श्याम तमाल से ही कृष्ण का संबंध है। 

   तमाल का वृक्ष गहरे हरे रंग की पत्तियों वाला सघन वृक्ष होता है। अभी से 25 फुट ऊंचा। इसके नीचे अंधेरा रहता है। पेड़ का तना गहरा काला होता है। तमाल को तिमिर यानी अंधकार का प्रतीक कहा गया है। तमाल का रंग काला है तो कृष्ण भी काले हैं। तमाल के वृक्ष के नीचे बरसात से बचने के लिए कृष्ण खड़े होते हैं। तमाल के वृक्ष के नीचे आने पर कृष्ण श्याम से घनश्याम हो जाते हैं। कृष्ण के वियोग में राधा तमाल के पेड़ के तने को अपनी बाहों में भर कर कृष्ण को याद करती हैं।

  तमाल के वृक्ष में चैत्र वैशाख यानी ग्रीष्म ऋतु में फूल आते हैं। फूल सफेद रंग के होते हैं किंतु श्याम तमाल में लाल रंग के फूल आते हैं। लगता है जैसे तमाल कृष्ण की प्रतीक्षा में आग में जल रहा है। तमाल के फल वर्षा ऋतु यानी जुलाई-अगस्त में पक जाते हैं। बहुत खट्टे होते हैं तमाल के फल। स्वादिष्ट भी। कुछ लोग कहते हैं कृष्ण की याद में श्याम तमाल आंसू बहाता है रोता है। दरअसल तमाल का गोंद निकलता है जिसको लोग सिरका बनाने के लिए ले जाते हैं।

  आज ब्रज में तमाल का पेड़ विलुप्त होने को है। कुछ ही श्याम श्याम बचे हैं।

    भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा है

   तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।

झुके कूल सो जल परसन हित मनहु सुहाए।।

किधौ मूकुर में लखत उझकि सन निज निज शोभा।

कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा।।

 यमुना के किनारे खड़े तमाल के वृक्ष यमुना का जल स्पर्श करने के लिए व्याकुल दिखाई दे रहे हैं।

   नवदीप बंगाल से जब चैतन्य महाप्रभु वृंदावन आए तो उन्हें तमाल वृक्ष में कृष्ण के दर्शन होते थे। चैतन्य महाप्रभु तमाल के तरुवर को अपने बाहों में भर कर अश्रु बहाया करते थे।

   स्वामी हरिदास कृष्ण के अनन्य भक्त थे। भगवान कृष्ण ने शरद पूर्णिमा को यमुना के तट पर जिस स्थान पर रास रचाया था वह निधिवन था। स्वामी हरिदास निधिवन में ही रहते थे। वह लिखते हैं__

     झूलत श्यामा, झुलावत कुंज       

    बिहारी।

    नेह की बे लि डोर नवेली,प्रेम तमाल की डारी।।

  कहते हैं निधिवन में आज भी राधा और कृष्ण और रात्रि में शयन करने को आते हैं। निधिवन में आज भी राधा कृष्ण के लिए पलंग बिछाया जाता है। निधिवन में जितने भी वृक्ष और लताएं हैं सब एक दूसरे से आलिंगन किए हुए हैं। आलिंगन बद्घ हैं। नृत्य की मुद्रा में है। निधिवन में आज भी कोई रात में नहीं ठहरता है।

   नव दल माल तमाल को निभृत निकुंज कहा गया है। अष्टछाप के कवियों में से एक सूरदास के समकालीन कुंभन दास ने लिखा है__

      कनक वरण वृषभानु दुलारी श्यामल गात चढ़ी।

   र सि किरी रस में राहत गड़ी।।

राम भक्त कवि तुलसीदास भी तमाल वृक्ष से प्रभावित हैं। तुलसीदास लिखते हैं__

   मुनि ह मिलत अति सोह कृपाला।

  कनक तरुह जिमि भेंट तमाला।।

तमाल का तरुवर कृष्ण की तरह काला है जबकि राधा सोने की जैसी सुंदर है।

  दंडकारण्य में सर्वांग सुंदर श्री राम तपस्या के कारण काले हो गए ऋषि-मुनियों से ऐसे मिल रहे हैं जैसे सोने का पेड़ किसी तमाल के पेड़ से मिल रहा हो।

    इत बरहद उत सोन नद,सूर सेन को गाम

   बृज चौरासी क्षेत्र में मथुरा मंडल धाम।।

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   कभी-कभी भगवान से हो गई भारी भूल।

  काबुल में मेवा करी, ब्रज मा बोए बबूल।।

  बबूल ,करील, तमाल जैसे उपेक्षित वृक्ष कृष्ण का स्नेह पाकर पावन हो गए। काबुल की मेवा वह सौभाग्य नहीं प्राप्त कर सकी जो करील, बबूल और तमाल को मिल गया।

 अनेक कवियों ने तमाल के गुण गाए हैं। तमाल का तरुवर पूजनीय वृक्ष है। 

 आयुर्वेद में तमाल के वृक्ष से अनेक औषधियां निकलती बताई गई हैं। तमाल के वृक्ष की छाल पत्ते फूल और फल सभी दिव्य औषधीय गुणों से भरे हैं। तमाल के वृक्ष के फलों को जानवर बहुत खाते हैं। कुछ लोग तमाल के फल से अचार भी बनाते हैं। तमाल का गोंद सिरका बनाने के काम आता है।

   आज श्याम तमाल के वृक्ष ब्रज में दुर्लभ होते जा रहे हैं। बहुत खोजने पर मिलते हैं। सरकार को चाहिए कि तमाल वृक्ष के कटान पर रोक लगा दे और तमाल के पौधों का रोपण करा कर तमाल को विलुप्त होने से बचाए।

शिवचरण चौहान
कानपुर 209 121
shivcharany2k@gmail.com
Mobile : 63942 479 57

(शोध परक प्रामाणिक जानकारी। अपने शब्दों में लिखित। अप्रकाशित)

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