अलगाव आज एक दार्शनिक पारिभाषिक शब्द के रूप में व्यवहृत होने वाला शब्द है। विश्व स्तर पर अलगाव की परिभाषा एवं स्वरूप पर विचार विमर्श होते रहे है।
‘अलगाव’ शब्द के लिए हिंदी में अनेक शब्दों का प्रयोग होता रहा है। उदाहरण के लिए अजनबी या अजनबीपन, परायापन, कटाव, विलगाव, नियुक्ति, उदासीनता, विमुखता इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है। ये सभी शब्द अलगावगत अनुभूति की समग्रता को घोषित कर पाने में असमर्थ मानते हुए डॉ. बैजनाथ सिंहल लिखते है “ये सभी शब्द अलगाव प्रक्रिया के विविध चरणों के ही सूचक है। अलगाव में बहते व्यक्ति से स्वामित्व या संबंधों से अलग हो जाने का भाव निहित है।“1 इससे आगे अलगाव शब्द की व्युत्पत्ति और व्युत्पत्तिगत स्वरूप को स्पष्ट करते हुए बताते है कि “लगाव’, ‘अ’ उपसर्ग लगाने से विपरीतार्थक स्तर पर अलगाव बनता है जिसका अर्थ पहले का ‘लगाव’ अर्थात संबंध नहीं रहा। अलगाव इस प्रकार मूर्त और अमूर्त स्तर पर, आत्मगत और वस्तुपरक स्तर पर किसी भी प्रकार के व्यक्ति-व्यक्ति से लेकर, व्यक्ति और संस्कृति तक के संबंधों में विच्छेद का सूचक है और यह संबंध-विच्छेद विभिन्न प्रकार के पश्चगामी प्रभावों को अनिवार्यतः जन्म देता है।“2 इस प्रकार बैजनाथ सिंहल अलगाव की परिणति लगाव-विच्छेद में स्वीकार करते है।
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अंग्रेजी में अलगाव के लिए ‘एलियनेशन’ शब्द का प्रयोग होता है जो विश्व स्तर पर स्वीकृत पारिभाषिक शब्द है। अंग्रेजी में भी हिंदी की ही भांति अलगाव के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग होता रहा है, ‘एलियनेशन’ शब्द में भी चेतना के स्तर पर अनेक अर्थ निहित है। जिसे ‘सपरेशन’, ‘आइसोलेशन’ इत्यादि अर्थ में उपयोग कर सकते हैं। ‘एलियनेशन’ शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन शब्द ‘एलिनेशियो’ से मानी जाती है। ‘एलिनेशियो’ शब्द संज्ञा होते हुए भी क्रिया से अर्थ ग्रहण किया जाता है। ‘एलियनेर’ का अर्थ है- किसी वस्तु को दूसरे से अलग करदेना, छीन लेना, वंचित कर देना या हटा देना। ‘एलियनेर’ ‘एलियनस’ से निर्मित हुआ है जिसका अर्थ है -किसी एक वस्तु का किसी दूसरे वस्तु से संबंध न रहना। ‘एलियनस’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘एलियस’ शब्द पर टिकी है जिसका विशेषण अर्थ है ‘अन्य’ और संज्ञार्थ है ‘पराया’। इस प्रकार अंग्रेजी का एलियनेशन शब्द अपनी निष्पत्ति में हिंदी के अलगाव शब्द की भांति संबंधहीनता की स्थिति की दुखद व्यंजना का सूचक है।
अलगाव :
अंग्रेजी में अलगाव के लिए एलियनेशन और हिंदी में अलगाव शब्द ही सर्वाधिक व्यंजक शब्द माना गया है। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक स्तर पर अलगाव के लिए ‘एनोमी’ (Anomie) तथा ‘आत्मगत’ अलगाव के लिए ‘एनोमिया’ (Anomia) शब्द भी प्रयोग में लाये जाते हैं। अलगाव के विविध रूपों के लिए पृथक शब्द का निर्धारण न कर अलग-अलग प्रकार के अलगाव के साथ विशेषण रूप में क्षेत्र-विशेष को जोड़कर प्रयोग में लाया जाता रहा है।
अलगाव की परिभाषा :
विभिन्न कालों में विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से इस शब्द को परिभाषाबद्ध करने तथा इसकी व्याख्याएं करने का प्रयास किया है, “अलगाव एक ऐसी अनुभूति है जो किसी न किसी स्तर पर व्यक्ति के कटने को इंगित करती है।“ बाइबल के अनुसार “लोग अपने विवेक में अंधे है, वे अनभिज्ञ होने के कारण ईश्वरीय मार्ग से भटककर अलगाव ग्रस्त हैं क्योंकि उनके हृदय कठोर है।“3 यहाँ पर ईश्वर विमुखता को अलगाव बताया गया है। इसी धर्म ग्रंथ में अन्यत्र कहा गया है कि आत्मा की मृत्यु ईश्वर से आत्मा के अलगाव के अतिरिक्त और कुछ नहीं।“4 वास्तव में ये परिभाषाएँ धर्मशास्त्र के आधार पर निर्धारित दिखाई पड़ती है।
सामाजिक सिद्धांत पर विचार करते हुए ग्रोटियस ने अलगाव को इस प्रकार परिभाषित किया है जिस प्रकार अन्य वस्तुओं से अलगाव हो सकता है, उसी प्रकार प्रभु सत्तात्मक अधिकार से भी अलगाव हो सकता है। वे अलगाव के सम्पत्तिगत रूप से परिचित होने के साथ-साथ प्रभुसत्ता के अलगाव को प्रतिदान से उत्पन्न और स्वैच्छिक मानते है, कुछ इस प्रकार के विचार हाबर्स लोग, रूसो आदि विद्वानों के भी दिखते है।
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हीगेल अध्यात्म वादी चिंतक रहे है। उनकी मान्यता रही है कि दृश्यमान जगत मानव आत्मा का ही व्यवहारिक भौतिक रूप है। मानव आत्मा ईश्वरीय सत्ता का एक अंश है जो स्वयं को भौतिक जगत में अनेक रूपों में रूपायित करती है। वे इस रचयिता शक्ति को सामाजिक तत्त्व की संज्ञा देते हुए इस शक्ति के स्वरूप को दोहरे रूपों में स्वीकार करते है। विवेक और संकल्प से युक्त वैयक्तिकता, दूसरा मानव का सार्वजनिक बोध और कार्य क्षमता के स्तर की वैयक्तिकता।। इसी आधार पर हीगेल ने अलगाव के भी दो रूप माने है। प्रथम प्रकार का अलगाव वह है जिसमें मानव अपनी आत्मिक प्रकृति अथवा स्व से दूर जाता है। दूसरे प्रकार के अंतर्गत व्यक्ति चेतना सामाजिकता सही स्व के स्तर पर तिरोहित हो जाती है। इसमें व्यक्ति, समाज के साथ निजत्व को खोकर जुड़ता है। इस प्रकार हीगेल के अनुसार “अलगाव वह स्थिति है जो व्यक्ति को या तो समाज से काटती है और उसके ‘स्व’ (आत्मा) से जोड़ती है अथवा यह वह स्थिति है जो व्यक्ति को स्व से काटकर सामाजिकता से जोड़ती है।“5 हीगेल के इस विचारों में द्वंद्वत्मकता दिखायी देती है।
हीगेल के बाद के विचारकों ने इसे यथासंभव निश्चित परिभाषा में बांधने का प्रयास किया है। कॉम्फा के अनुसार “यह कहने का अर्थ है कोई व्यक्ति अलगाव ग्रस्त है, यह दावा करना है कि किसी दूसरी वस्तु से उसके संबंधों में कुछ ऐसे पहलू उभर आ गए हैं जिनकी परिणति अनिवार्यतः अशांति और असंतोष में होती है।“6 लीविस फ्यूर के अनुसार –“अलगाव से अभिप्राय उस भावात्मक स्तर से है जिसमें ऐसा व्यवहार निहित रहता है कि व्यक्ति आत्मघातक रूप में कार्य करने पर बाध्य हो जाता है।“7 केनेथ केनिस्टन के शब्दों में “अलगाव के अधिकतर प्रयोगों के मूल में यह धारणा निहित है कि किसी प्रकार का कोई संबंध या सद्भाव जो पहले कभी रहा है, जो संबंध प्राकृतिक, वांछित तथा सदाशय संबंध था, वह अब समाप्त हो गया है।“8 कार्ल मार्क्स के अनुसार –“उत्पादक के श्रमज उत्पादन पर अधिकार न रहने के कारण, उत्पादक रूप में व्यक्ति अपने उत्पादन से अलग जा पड़ता है, यही स्थिति ही अलगाव की स्थिति है। मार्क्स के उपरांत मनोवैज्ञानिक और अस्तित्त्ववादी चिंतकों ने ही अपने-अपने ढंग से अलगाव को परिभाषाबद्ध करने का प्रयास किया है। इन सभी परिभाषाओं की निष्पत्तियां लगभग एक समान है।
ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार –“अलगाव से अभिप्रायः भावना तथा स्नेह संबंधों में उत्पन्न तनाव एवं अवसाद से है।“9
एनसाइक्लोपीडिया बिट्रेनिका के अनुसार –“अलगाव एक ऐसा पारिभाषिक शब्द है जिसका दर्शन, अध्यात्म शास्त्र, मनोवैज्ञानिक व समाज विज्ञानों में भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है जिनमें वैयक्तिक सामर्थ्यहीनता, सिद्धांत हीनता, सांस्कृतिक अवसाद, सामाजिक कटाव व वैयक्तिक अवसाद पर बल दिया गया है।“10
मानक हिंदी कोष के अनुसार –“अलग होने की व्यवस्था या भाव”11
हिंदी शब्द सागर के अनुसार –“अलगाव, अलग+आव (प्रत्यय) का अर्थ है पृथक्करण, अलग रहने का भाव विलगाव।“12
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं और संकेतों से स्पष्ट हो जाता है कि अलगाव एक ऐसा विघटन है जो स्थिति एवं संदर्भों में मनुष्य को गहरी एवं भीतरी स्तरों पर एक विशेष प्रकार से कट जाने के आभास से भर देता है। यह आभास उसे वैयक्तिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा मनोवैज्ञानिक स्तरों पर आक्रांत करता है। इन स्थितियों में वह कभी अंतर्मुखी हो उठता है तो कभी अलगाव को नियति मानने लगता है। कुल मिलाकर अलगाव को हम डॉ.बैजनाथ सिंहल के शब्दों में इस प्रकार परिभाषाबद्ध कर सकते है –“अलगाव की सर्व सामान्य परिभाषा यही है कि अलगाव में व्यक्ति का भौतिक, आध्यात्मिक या मानसिक स्तरों पर जीवन के किसी पहलू, किसी अन्यगत भौतिक, अभौतिक संबंध या निज व्यक्तित्व बद्ध सामर्थ्य या विचार शक्ति से कट जाने का अहसास रहता है”13 इस प्रकार अलगाव पहले के से लगाव न रहने का व्यंजक शब्द है।
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उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अलगाव की कोई एक सर्वसमावेशी परिभाषा निर्धारित नहीं की जा सकती, बल्कि उसमें निहित सर्वसामान्य बोध को पकड़ा जा सकता है। इसका कारण यह है कि अलगाव का कोई एक निश्चित रूप नहीं है, वह तो स्थितियों व जीवन के विविध रूपों की अनुरूपता में विविध रूपों में सन्निहित होता है।
अलगाव : ऐतिहासिक सर्वेक्षण
‘अलगाव’ का इतिहास कदाचित उतना ही प्राचीन है जितना कि मानवीय सभ्यता का इतिहास है। मानव ने जब से सामाजिक स्तर पर परिवार के सदस्य के रूप में तथा राजनीतिक स्तर पर एक व्यवस्था-विशेष के रूप में रहना शुरू किया, तभी से उसे व्यक्तिगत से लेकर परिवार, समाज, संस्कृति तथा राजनीति आदि अनेक स्तरों पर अलगाव की पहचान होने लगी इसका इतिहास तीन-चार दशक पुराना होने पर भी अलगाव को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विचार होने लगा। परिणामतः एक सशक्त अनुभूति तथा मानवीय नियति के सूत्रधार के रूप में अलगाव को पहचान मिली। इसके परिणामों में अभिशाप और वरदान पक्षों पर विचार किया गया। प्रत्येक क्षेत्र के चिंतक ने अलगाव को विश्वव्यापी समस्या के रूप में रेखांकित किया है। पूर्व युगों में भी मनुष्य अलगावग्रस्त न रहा हो, ऐसी बात नहीं है लेकिन आधुनिक युग, स्वतंत्र रूप से आयामों सहित विचार नहीं हुआ। प्राचीन धर्म ग्रंथों में भी इस पर कुछ विचार अवश्य मिलते हैं जिससे पता चलता है कि मनुष्य बहुत पहले से ही इस पीड़ा को समझता रहा है। उन युगों की पहचान में भी इतना तो स्पष्ट होता ही है कि तब भी अलगाव की कुछ व्यंजनाओं से लोग परिचित थे।
अलगाव संबंधी विचारों का प्राचीनतम इतिहास सर्वप्रथम धर्मग्रंथों में दिखायी देता है। विविध अर्थों में उसका प्रयोग कुछ इस प्रकार रहा है-
1. विधि-क्षेत्र :- इस क्षेत्र में अलगाव का प्रयोग संपत्ति या किसी भी प्रकार के स्वामित्व के हस्तांतरण, विक्रय अथवा उससे वंचित होने के अर्थ में हुआ है।
2. मनः चिकित्सा क्षेत्र :- इस क्षेत्र में अलगाव को मानसिक विकृति (Dementia) या मानसिक रुग्णता (Insania) के अर्थ में लिया गया है।
3. सामाजिक क्षेत्र :- इस क्षेत्र में अलगाव का कटाव (Disunctio) या उदासीनता (Avertio) के पर्यायवाची रूपों में व्यवहृत किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि जब व्यक्ति के अन्य व्यक्तियों से संबंध कट जाता है और वह पृथकता या अजनबीपन महसूस करने लगता है तो वह सामाजिक स्तर पर अलगाव-पीड़ित हो जाता है।
अलगाव के इन तीनों रूपों का अर्थ अंग्रेजी, फ्रेंच अलगाव अवधारणा में भी उपलब्ध होता है। इनमें से प्रथम अर्थात स्वामित्व के हस्तांतरण से उत्पन्न अलगाव को विधि के क्षेत्र में गिने जाने का कारण 15 वीं शती तक निर्मित ऐसा कानून जिसमें किसी भी व्यक्ति को यह आदेश दिया जा सकता था कि वह “भूमि के किसी खंड का अलगाव (हस्तांतरण) न करें।“14
दूसरे अर्थ में, प्रारंभिक स्तर पर मनः चिकित्सा के क्षेत्र में अलगाव का प्रयोग मानसिक अस्थिरता, मानसिक विकृति, पागलपन आदि रूपों में मिलता है। मध्यकाल मिरगी आदि के दौर से उत्पन्न मूर्छावस्था, मस्तिष्क के पक्षाघात या चेतना के खो बैठने के अर्थ में अलगाव का प्रयोग होता था। 15 वीं शती में आकर ‘वविवेकहीनता’ के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग मिलने लगता है। आधुनिक युग में ऐसे अलगाव को विविध अर्थों एवं घटकों के रूप में देखा जाने लगा है।
तीसरे अर्थात सामाजिक स्तर पर व्यक्ति-व्यक्ति के बीच अलगाव का सर्वप्रथम प्रयोग भी लैटिन भाषा में ही मिलता है। इससे पूर्व धर्म-विज्ञान (Theology) या अध्यात्म-दर्शन में जूड़ावाद और इसाईयत में ईश्वर से व्यक्ति के अलग होने के अर्थ में भी इसका प्रयोग हुआ है।“15 जूडियों, किश्चियन, पुराणों में ‘ईश्वर से अलगाव’ या ‘ईश्वरीय कृपा से पतन’ इत्यादि सूत्रों का अनेक बार उल्लेख हुआ है। ऐसे स्थलों पर व्याख्या स्वरूप यह कहा गया है कि मनुष्य ने ईश्वरीय आदेशों का उल्लंघन करके स्वयं को ईश्वरीय मार्ग से निरस्त कर लिया है जिसकी पुष्टि ‘ईश्वरीय लोक से ‘पतन; अलग हुए जुड़ा की अंध पूजा तथा ईश्वरीय मार्ग से फटे हुए ईसाइयों के व्यवहार”16 आदि सूत्रों द्वारा होती है। इससे मुक्ति के लिए वहाँ बताया गया है कि ‘तुम ईश्वर हीन होकर इस संसार में रह रहे थे... लेकिन अब जीसस क्राइस्ट के द्वारा अपने रक्त के माध्यम से, तुम जो ईश्वर से बहुत दूर जा पड़े थे, नजदीक ला कर खड़ा कर दिया गया है -अब तुम अजनबी नहीं रहे।“17
कालांतर में ईश्वर और मनुष्य के बीच के अलगाव से हटकर यह अलगाव सामाजिक स्तर पर समाज और व्यक्ति तथा व्यक्ति-व्यक्ति के बीच समझा जाने लगा। 1888 में प्रकाशित ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में इसी अर्थ को मान्यता दी गई है –“अलगाव या अजनबी होना- भावना या स्नेह से विमुख होना, उदासीन या विशुद्ध या अवांछित करना।“18 इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि अलगाव संबंधी चिंतन यद्यपि पूर्णतया स्पष्ट रूप में इस शब्द को केंद्र में रखकर तो नहीं हुआ लेकिन अलगाव-बोध से बहुत पहले लोग परिचित अवश्य थे। धर्म के बोलबाले के कारण इसकी व्यंजना धर्मावेष्टिता रही है।
अलगाव : विविध रूप
अलगाव संबंधी सामान्य संदर्भ गत चिंतन से लेकर विधिवत एक समस्या के रूप में इस चिंतन का अपना एक इतिहास सामने आता है। इस इतिहास को तीन कालों में बाँटा गया है।
(1) हीगेल पूर्व युग
(2) हीगेल युग
(3) हिगेलोत्तर युग
अलगाव पर पूर्णता से विचार करने वाले प्रथम चिंतक हीगेल ही है। उनके लिए अलगाव को सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक तथा स्व-अलगाव इत्यादि स्तरों पर विवेचित किया गया है।
संदर्भ;
- बिमला देवी – मोहन राकेश के नाटकों में पारिवारिक अलगाव – पृ.17
- वहीं – पृ.17
- बिमला देवी – मोहन राकेश के नाटकों में पारिवारिक अलगाव – पृ.34
- वही – पृ.35
- बिमला देवी – मोहन राकेश के नाटकों में पारिवारिक अलगाव – पृ.35
- वही- पृ.35
- वही- पृ.35
- वही- पृ.35
- Oxford English Dictionary - P- 219
- बिमला देवी – मोहन राकेश के नाटकों में पारिवारिक अलगाव- पृ.36
- रामचंद्र वर्मा – मानक हिंदी कोष – पृ.167
- सं.श्याम सुंदर दास – हिंदी शब्द सागर – पृ.328
- डॉ.बैजनाथ सिंहल – अलगाव दर्शन एवं साहित्य – पृ.176-177
- बिमला देवी – मोहन राकेश के नाटकों में पारिवारिक अलगाव – पृ.19
- बिमला देवी – मोहन राकेश के नाटकों में पारिवारिक अलगाव – पृ.20
- वही- पृ.20
- वही- पृ.20
- Oxford English Dictionary