Hindu Mahasabha Ka Gathan: हिंदू महासभा का गठन

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindu Mahasabha Ka Gathan

Hindu Mahasabha Ka Gathan

हिंदू महासभा का गठन

         मुस्लिम लीग ने जब मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करना शुरू किया तो हिंदुत्ववादी शक्तियों को भी अपने लिए एक संगठन की आवश्यकता अनुभव होने लगी जो उनके हितों की रक्षा कर सकें। सन् 1906 से ही देश में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए थे। कांग्रेस न तो पूरी तरह से सांप्रदायिक दंगों को सुलझा पा रही है और न ही उसकी भावनाओं की सही अभिव्यक्ति ही कर पा रही है। मुस्लिमों में धर्म के प्रति आग्रह बढ़ा तो प्रतिक्रियास्वरूप हिंदू भी धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा या कट्टरता प्रकट करने से चूके नहीं।

        इन्हीं सब कारणों से 1908 में हिंदुत्ववादी लोगों ने ‘हिंदू महासभा’ की स्थापना किया। लीग का कांग्रेस पर यह आरोप था की कांग्रेस हिंदूओं की जमात है लेकिन हिंदू महासभा की स्थापना से यह बात सिद्ध हुई कि कांग्रेस हिंदूओं का संगठन ही है। महासभा के द्वारा दिए गए भाषणों से मुस्लिम अधिक भड़कने लगे। हिंदू महासभा और आर्य समाज द्वारा चलाए जा रहे शुद्धि आंदोलन ने भी अलगाव में प्रमुख भूमिका निभाई। शुद्धि आंदोलन की बड़ी भयानक प्रतिक्रिया मुसलमानों में हुई।

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      सन् 1910 में दोनों जातियों के बीच सांप्रदायिक उत्तेजना बढ़ गई। लेकिन कांग्रेस ने अपने प्रयत्नों से उसे शांत रखने की कोशिश किया। यह कोशिश की गई की दोनों जातियों के लोगों की एक सब-कमेटी बना दी जाय जो ऐसे मौके पर शांति कायम करें। इससे हिंदू मुस्लिम वातावरण ठीक रहा। लेकिन सन् 1921 में मुसलमानों का झुकाव कांग्रेस की ओर हुआ और उसी वर्ष मोपाला विद्रोह भी हुआ। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप इलाहाबाद, कानपुर, कोहाट, कलकत्ता और आगरा जैसे शहरों में हिंदू मुसलमानों के बीच खुलकर दंगे हुए। 9 और 10 दिसंबर 1924 को कोहाट में बीस हजार हिंदूओं को लूटा गया। यह स्थिति अपने चरम उत्कर्ष पर जब पहुंची जब 1926 के दिसंबर में आर्य समाज के एक बड़े नेता स्वामी श्रद्धानंद का खून किया गया। इसके बाद सांप्रदायिकता बढ़ती गई। 1931 का वर्ष तो सांप्रदायिक मारकाट का वर्ष बन गया।

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