अशोक श्रीवास्तव कुमुद की काव्य कृति सोंधी महक से ताटंक छंद पर आधारित रचना - बुधिया और चुनाव

Dr. Mulla Adam Ali
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अशोक श्रीवास्तव "कुमुद" की काव्य कृति "सोंधी" महक से ताटंक छंद पर आधारित रचना

🗳️ बुधिया और चुनाव 🗳️

रणभेरी बज गई चुनावी,

गँउवा बहुत अचक्के में। 

दिन दिन दल बल नेता पहुँचे,

माल बँटे अब थक्के में।।


घर घर में दल झंडा लगिगा,

नारे लिखत निकेते में।

सकपकाय कर बुधिया देखै,

जियरा लगत सकेते में।। 


बुधिया को हर खेमा खींचत,

पैसा ताकत खेला बा।

नेताओं की उठक पठक सब,

लागत बहुत झमेला बा।।


सबै कहत हैं हवा गरम बा,

उमस बढ़त सब खेमे में। 

बाप खड़ा गर संग चौधरी, 

पूत खड़ा रिपु खेमे में।। 


जाति धर्म की देत दुहाई,

घूमे घर घर नेताजी।

खतरे में है निज समाज अब,

बता रहे हर नेताजी।।


गँउवा गँउवा बात चली बा,

ताकत आज दिखावै का।

अवसरवादी निज दुश्मन को,

मौका सबक सिखावै का।।


झंडा बैनर डंडा लेकर,

भीड़ जुटी अमराई में। 

नफरत की दीवार खींचती,

हर टोले हर भाई में।। 


जहर उगलती भाषणबाजी,

बाढ़त नफरत भाई में।

खत्म हो रहा भाईचारा, 

बदले सकल कसाई में।। 


दानवता संग खल कर्म भी,

ना कोई मनवा सोजै।।

लोप हुई जो मानवीयता,

हर तन में बुधिया खोजै।।


बहुत सही अब अवसर आया, 

खुलकर हाथ दिखाने को।

काम काज अरु परख आचरण, 

सच्चा सबक सिखाने को।।


बुधिया सोचै कैसा खतरा,

काहे भाषणबाजी ये।

जीत जाय तो सुध ना लेते,

अब शुभचिंतक काजी ये।


आज हाल झुक झुककर पूछैं,

जीत जाय पहचाने ना।

कौन गाँव और बुधिया कौन,

भूल जाय कुछ जाने ना।।


चोर चोर मौसेरे भाई, 

घूमे बदल मुखौटे ये।

इक थैली के चट्टे-बट्टे, 

सिक्के दूषित खोटे ये।।


भरे झूठ मक्कारी से सब,

नैतिकता उर टोटा बा।

बहुत विचारै बुधिया सोचै, 

क्या विकल्प बस नोटा बा।।

अशोक श्रीवास्तव 'कुमुद'

राजरूपपुर, प्रयागराज

अचक्के: चकित होना

थक्के: ढेरों, ढेर सारा 

निकेत: घर, जगह

पूत: बेटा

रिपु: दुश्मन 

सकते में: उलझन में, बेचैन

सोजै/ सोज: दर्द, मानसिक वेदना

नोटा: नोटा या 'उपरोक्त में से कोई नहीं' (English: None of the above) एक विकल्प के रूप में अधिकांश चुनावों में भारत के मतदाताओं को प्रदान किया गया है। नोटा के उपयोग के माध्यम से, कोई भी नागरिक चुनाव लड़ने वाले किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने का विकल्प चुन सकता है।

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