ब्रह्मांड का आह्वान
फैला हूँ मैं दिग-दिगंत, न कोई आदि, न कोई अंत
अपरिमित,अपरिभाषित मैं, रहस्य चिरकाल से अनंत।
नाद-औ'-बिंदु के सम्मिलन से ,उत्पत्ति मेरी मानी जाती
असंख्य ग्रह गर्भ में मेरे, निहारिकाएँ, तारे मेरी थाती।
लेकिन आज हुआ हूँ आहत,देख धरा को यूँ बेहाल,
संपदा अपनी को लुटते देख,हृदय बेकल,मन हुआ निढाल।
सूखती नदियाँ सिसक रही हैं, पर्वत करते हाहाकार, क्यों मानव अपने ही हाथों, तूने किया अपना संहार।
कानन काटे सारे तूने, वायु प्रदूषण का बुरा हाल,
हुई प्रकृति असंतुलित, सलोना रूप बना महाकाल।
ईश्वर ने जो दी नियामत, करो संरक्षण उसका तुम, पंचतत्व से अस्तित्व हमारा, करो सदुपयोग इनका तुम।
उत्सवधर्मी वृक्ष हमारे, सुख दुख में बनते सहभागी,
सेवा का प्रण लो तुम इनका, न बनो इनके हतभागी।
वृक्ष हैं मात-पिता सरीखे, घर-आँगन में दो तुम स्थान, रक्षक यही हैं पर्यावरण के, यही हमारे जीवन-प्राण।
जो बचाओगे आज मुझे तुम , तो कल को तुम सँवारोगे,
देगी दुआएँ भावी पीढ़ी, कल जिनका सुखद बनाओगे।
🌲 आप सभी को विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌳🙏