New Book SONDHI MAHAK : ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित अशोक श्रीवास्तव कुमुद की काव्य संग्रह सोंधी महक

Dr. Mulla Adam Ali
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New Book "SONDHI MAHAK" : ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित अशोक श्रीवास्तव कुमुद की नई पुस्तक सोंधी महक

काव्य संग्रह: सोंधी महक (ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित)

रचनाकार: अशोक श्रीवास्तव "कुमुद", प्रयागराज

पेज-128, पेपर बैक,

संस्करण : प्रथम संस्करण

ISBN: 978-81-925218-10-9

मूल्य: ₹175/- 

प्रकाशक: गुफ्तगू पब्लिकेशन, 123A/1, हरवारा, धूमनगंज, प्रयागराज- 211015

उपलब्धता(आन लाईन): फ्लिपकार्ट पर (26 दिसम्बर, 2022 से आन लाईन क्रय हेतु उपलब्ध)

संपर्क सूत्र : 9452322287

अपनी मिट्टी और परंपराओं से जुड़ा हुआ ग्रामीण जीवन अभावों और कठिनाइयों के बीच रहते हुए भी अपनी पुरानी मान्यताओं को पूर्ण रूप से त्याग नहीं पाता। नवीनता का आकर्षण और मोहजाल तथा परंपरागत जीवन शैली के बीच त्रिशंकु सा फँसा रहकर असमंजस की स्थिति में जीवन व्यतीत करता है। अंधविश्वासों की बेड़ियों में सदियों से जकड़ा हुआ ग्रामीण आज भी इसे अपना भाग्य समझकर इससे उबर नहीं पा रहा है। सुविधाओं की उपलब्धता गाँवों में मंथर गति से बढ़ तो रही है परंतु समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा आर्थिक एवं राजनीतिक उठा पटक से, इनका स्तर शहरों में मिलने वाली सुविधाओं की अपेक्षा बहुत निम्न स्तर का है।

शहर की चकाचौंध जिंदगी, गाँव की बूढ़ी आँखों की रही सही चमक को भी निगलती हुई, एक अनचाही अनजानी वीरान खामोशी, उजड़ते हुए घरों की बेबसी, ग्रामीण जीवन के खट्टे-मीठे मनोभावों की ठंडी-गर्म बयारों, से आती खुशबू के सोंधेपन को, कवि अशोक श्रीवास्तव "कुमुद" जी ने अपनी इस काव्य कृति "सोंधी महक" के विभिन्न कविताओं में भरने का मनमोहक प्रयास किया है।

 "सोंधी महक" में बुधिया जो एक आम ग्रामीण का प्रतिनिधित्व करता है, अक्सर इन परंपराओं/समस्याओं पर अपनी छटपटाहट/ कसक को व्यक्त करता हुआ, नजर आता है। ग्रामीण अभावों में व्याप्त उन्मुक्तता एवं बेबसी/खामोशी तथा भ्रष्टाचार/अंधविश्वासों से उपजी समस्याओं की कसैली-चुटीली दास्तान हैं "सोंधी महक" ।

ताटंक छंद विधान तथा छंद मुक्त गीतों पर आधारित, "सोंधी महक" में भाषायी सहजता हेतु शब्द चयन के संबंध में कवि का दृष्टिकोण, उनकी अन्य पूर्व रचनाओं (सुरबाला, अंतर्नाद) की तरह ही, सदा उदारवादी रहा है। भाषा में सहजता के लिए हिन्दी खड़ी बोली के साथ-साथ, आसपास के क्षेत्रों में प्रचलित (आम बोलचाल में प्रयोग होने वाले) शब्दों से लबरेज़ भाषा को प्राथमिकता दिया गया है। "सोंधी महक" पढ़ते समय पाठकों को शब्दकोश की आवश्यकता नहीं पड़े, इसका यथासंभव खयाल रखा गया है।

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