अशोक श्रीवास्तव कुमुद की कृति सोंधी महक से एक रचना : पीढ़ी अंतराल

Dr. Mulla Adam Ali
0

अशोक श्रीवास्तव "कुमुद" की कृति "सोंधी महक" से एक रचना

पीढ़ी अंतराल

अमराई में पेड़ कटत बा,

गँउवा शहर बनाना बा।

नवविकास की हवा बहत बा,

आया नया जमाना बा।।


बोगनबिलिया लगी किनारे,

लागत सड़क सुहाना बा।

दूर दूर तक छाँव मिलै ना,

राही नहीं ठिकाना बा।।


नवविकास पर बहस छिड़ी बा,

जोर जोर सब चिल्लावै।

युवा बात नहि मान बुढ़ापा, 

युवा बूढ़ सब झल्लावै।।


चुनुआ मुनुआ युवजन सारे,

बैठक लाग दुआरे में।

माई बाबू चच्चा चाची,

खड़े हुए गलियारे में।।


नया जमाना नई नजर से,

चीज़ों को परखै देखै।

सोच अलग बा समझ अलग बा,

निरख निरख दुनिया झंखै।।


नई जवानी नये जोश में, 

त्याग लोकहित रीतों को।

लिप्त रहे निज उन्नति लिप्सा,

भूली लोक सुभीतों को।।


कहै बुढापा नई जवानी,

बात नहीं हमरी माने।

नई जवानी कहै निरंतर,

थकी सोच कुछ ना जाने।।


नहीं समय बा नई बहस का,

व्यर्थ न समय गँवाने का।

पीढ़ी दर पीढ़ी का अंतर,

व्यर्थ न मगज खपाने का।।


दिशा सोच का यह परिवर्तन,

कभी नहीं कम होने का।

पीढ़ी अंतराल का चक्कर,

चैन व्यर्थ नित खोने का।।


बहुत विचारै बुधिया गुमसुम,

कौन राह गँउवा जावै।

नयी सोच के साथ चलै अब,

या फिर इनका समझावै।।

अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"

राजरूपपुर, प्रयागराज

बोगनबिलिया: विभिन्न रंगों के फूलों का कांटे दार पौधा

थकी सोच: आजकल बूढ़े लोगों की विचारधारा को नवयुवक थकी सोच कहकर उपेक्षित करता है।

पीढ़ी अंतराल: पीढ़ी अंतराल (जनरेशन गैप) का अर्थ है दो पीढ़ीयों के बीच का अंतर। अधिक समय अंतराल पर जन्में लोगों की विचारधारा में बहुत बड़ा अंतर होता है जो कभी कभी दो पीढियों में मतभेद और संघर्ष का कारण बन जाता है। समय के साथ लोगों के विचार बदलते रहते है और उनमें मतभेद बढ़ते रहते हैं।

ये भी पढ़ें;

अशोक श्रीवास्तव कुमुद की ग़ज़ल : धड़कनों के लफ्ज़ बदले जिस्म भी बेदम रहा

ग्रामीण परिवेश पर रची अशोक श्रीवास्तव कुमुद की काव्यकृति सोंधी महक से : कन्या शिक्षा

अशोक श्रीवास्तव कुमुद की कविता : बदनामियां

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)
To Top