51 कविताओं का काव्य संग्रह : अम्लान माला - पुस्तक समीक्षा

Dr. Mulla Adam Ali
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Book Review in Hindi by Ashok Srivastava 'Kumud'

पुस्तक समीक्षा

अम्लान माला : पूनम सिंह "भक्ति"

    लेखन क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र प्राप्त अध्यात्म और मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत आदरणीया पूनम सिंह 'भक्ति' जी की, 51 कविताओं का काव्य संग्रह "अम्लान माला", अपने नाम के अनुरूप ही, प्रकृति, जीवन और समाज के विविध पक्षों पर, संवेदनशील मनोभावों से सिंचित मनोहर पुष्पों की वह अम्लान माला है जो हिंदी साहित्य के पन्नों पर सदा ही अपनी मनमोहक खुशबू बिखेरती रहेगी और कभी नहीं मुरझाएगी।

बाल्यावस्था के दौरान, अध्यात्मिक और अनुशासित वातावरण में, आर्मी आफिसर की पुत्री आदरणीया पूनम सिंह 'भक्ति' जी के हृदय में पठन-पाठन का अंकुरित बीज, कालांतर में विवाहोपरांत, दरभंगा के प्रतिष्ठित राज घराने(ससुराल) में भी पठन पाठन का उपयुक्त वातावरण होने के कारण निरंतर पुष्पित पल्लवित होता रहा।

आपके द्वारा रचित, मनमोहक कहानियाँ, आलेख, लघुकथा, कविता एवं समीक्षा पाठकों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। आपकी रचनाएँ, देश विदेश से प्रकाशित होने वाली प्रतिष्ठित विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं जैसे मधुरिमा, अमर उजाला, लघुकथा कलश, ककसाड़, क्षितिज, वीणा, अविराम, साहित्यिकी, संरचना, आलोक पर्व, संगिनी, शुभ तारिका, विश्व भाषा, दैनिक प्रवासी(मुंबई), सरस्वती सुमन, हम हिन्दुस्तानी (कनाडा) में निरंतर प्रकाशित हो रही हैं।

आपकी रचनाओं में कल्पनाओं के सागर की अथाह गहराई के साथ साथ वास्तविकता के आकाश की असीम ऊँचाई तक के सभी भाव समन्वित हैं। जीवन की तपन एवं घुटन को निरंतर अंतर्निहित करने के बावजूद, कोमल मनोभावों की मलय बयारों के बीच चमकते ओस की बूँदों पर सतरंगी आभा बिखेरती हुई, उनकी यह रचनाएँ, पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देंगी।  

माँ से प्राप्त अध्यात्मिक शिक्षा और प्रेरणा का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। शायद यही वजह है कि अध्यात्म मार्ग पर चलते हुए कवयित्री ने अपना यह अनूठा काव्य संग्रह "अम्लान माला" अपनी कुलदेवी माँ काली को समर्पित किया है। कविता "माँ" के माध्यम से कवयित्री ने जन्मदात्री माँ से अपने जुड़ाव को बहुत ही हृदयस्पर्शी ढंग से व्यक्त किया है। माँ को वह ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मानते हुए कहती हैं कि,

माँ विधाता की रची सबसे 

सर्वोत्तम रचना है

जो सोती पलकों में भी 

जागती है अपने परिवार की

सलामती के लिए!...... (माँ)

स्त्री - विमर्श को केंद्र में रखते हुए कवयित्री की मर्मस्पर्शी रचनाएँ आँखो को नम करने के संग संग नारी होने के अर्थ और महत्व पर भी प्रकाश डालती हैं। इसके साथ ही उसकी दशा और उसके प्रति समाज के रवैये को भी उजागर करती हैं। विषम समाजिक परिस्थितियों में जी रही स्त्री की स्थिति से उनका कोमल हृदय बेचैन हो कर कह उठता है

वो मेरे माथे को रौंदती

हृदय से निकल

पाँवों को सहला रही 

कब तक यूँ ही रखोगी मुझे

हताशा और निराशा के घेरे में

बैसाखियों के सहारे ही सही

पर खड़ा करो क्यों कि

तुम सृष्टि हो चलना ही नियति है


मैं एक मछली का अब 

कटा हुआ वो हिस्सा हूँ

जिसकी गर्दन कट जाए 

तो मुँह बाये तड़पती है,

पेट में जहर है और 

पूँछ हवा में लटक रही 

इस उबलते हुए जगत में

राहतों के डगर नहीं.... (स्त्री )

सड़ गली समाजिक परंपराओं और विपरीत परिस्थितियों के बीच भी, नारी की उच्च सामाजिक मान मर्यादा की उनकी चाह, उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से नजर आती है।

पैगम्बर भी उसके आगे झुकते है क्यों कि

यहाँ भी वो याचक नहीं

वो देती है अँजुरी भर

समर्पण, आस्था और विश्वास... (नारी तुम पूजिता हो)

समाज में गरीबी के वातावरण में पल रहे, भूख से पीड़ित, दीन हीन बच्चों की दुर्दशा का एक चित्रण देखिए 

उसके सपनों में आती है सिर्फ 

गोल रोटी जिसकी तलाश

में उम्मीद के पल्लू थामे

दिन भर भटकता है सड़कों पर... (सड़कों पर बचपन)

'भिखारी' रचना में, संसार के प्रति उनका एक अलग ही नजरिया सामने आता है। हर आदमी कवयित्री को भिखारी के समान ही लगता है बस फर्क है कोई अपने जीने के लिए ईश्वर से मांग रहा तो कोई अपनी सुख-सुविधाओं में बेहतरी के लिए। 

बस नजर का फर्क है वो भीख

माँगता है जीने के लिए

और तुम माँगते हो अपनी खुशियों में

इज़ाफा और तकदीर सँवारने के लिए.... (भिखारी)

सबके अन्नदाता किसानों एवं मेहनतकश मजदूर की उपेक्षा पर कवयित्री के अंदर कसमसाहट एवं बेचैनी को महसूस कीजिए 

पृथ्वी की देह में बीज़ भरना

भी एक मंत्र है

जहाँ वो पुत्र ऋण की गाठें 

खोलता है


तुम्हारे जिंदगी को हरा रखने में

लगा दिया उसने अपने शरीर 

का एक-एक कतरा

अंगोछा अपना गीला करता है

पर तुम्हारे तकिये सूखी

रखता है.... (धरती पुत्र)


सड़क पर पत्थर तोड़ रहे मजदूर को

उगलते सूरज के ताप का 

अहसास नहीं

उसके पेट में भूख की आग

कहीं अधिक प्रलयकारी है


उसके हाथों पर गिरते पसीने की

एक एक बूँद उसके बुलंद 

इरादे को झुका नहीं सकते

क्यों कि पत्थर तोड़ने 

और बच्चों के दिल टूटने के

फर्क को वो समझता है... (मजदूर)

हताशा के बादलों के बीच भी हृदय में उपजता प्रेम बसंत का सुखद एहसास सा पनपता हुआ आशा और विश्वास ही उनकी रचनाओं में अक्सर प्रतिध्वनित होता रहता है।

संग बिताए वो अनमोल पल

तुम्हारे अस्तित्व की गहराई है

जो मुखर होती है मेरे एहसासों में और 

निचोड़ लेती है मेरी जीवन की हरीतिमा 

को खिलने से पहले.... (अतीत की वादियों से)


अवसाद के धंधलके 

और निराशा के कोलाहल के बीच

तुम्हारा दस्तक देना

उत्सव के आह्वान जैसा है

बसंत के पीले मुलायम पत्ते,

फूल जैसे हमारे प्यार का उद्बोधन है.... (आत्म प्रणय)

कवयित्री, मन की कोमल अनुभूतियों को कुरेदकर प्राकृतिक बिम्बों के माध्यम से प्रकट करने में सिद्धहस्त हैं । प्रेम में प्रफुल्लित मन जब मचलकर झूमता है तो स्वतः ही यह प्यारी सी रचना जन्म ले लेती है।

और एक रात और एक दिन पूरी

कायनात जोड़कर तुम्हारे लिए

एक अम्लान माला

पिरो सकूं

तुम्हारी छोटी छोटी घनीभूत 

आशाओं की पूर्ति के लिए

ये मेरे प्रेम की पुष्पांजलि है.... (अम्लान माला)

पूरे 360 डिग्री घूमती हुई कवयित्री की नजर से समाज का कोई भी अंग अछूता नहीं रहा है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अनियोजित विकास के कारण हो रहे, प्राकृतिक संसाधनों के निरंतर अंधाधुंध दोहन एवं पर्यावरण प्रदूषण से, उपजने वाले सन्निकट विनाश पर, उनकी सटीक विवेचना की एक बानगी देखिए, 

प्रकृति के फेफड़ों में समाई

प्रदूषित तैरती हवा

पृथ्वी की साँसों की घुटन बन गई

झुलस गए उसके बिखरे केस

प्रदूषित हवाओं को थामने में.... (प्रदूषित हवा)

अंधे विकास की कोख से उपजी त्रासदी से त्रस्त कवयित्री का कोमल मन स्वतः, प्राकृतिक वातावरण में पुनः वापसी की वकालत करता हुआ, कह उठता है।

जब थक जाए तुम्हारे त्वरित कदम

तुम्हारा साथ निभाते

और शहर की आबोहवा में

सुर से सुर मिलाने में

दम तोड़ने लगे तुम्हारी साँसे तब तुम

थाम लेना अपने उन्हीं संस्कारों के हाथ

और लौट जाना अपने गाँव 

क्यों कि इस शहर का अंतिम 

पड़ाव दुखांत ही है।.... (हो सके तो लौट आना)

 तमाम मानवीय कृत्यों के परिणामस्वरूप, इन निराशाजनक पर्यावरणीय अवमूल्यनों के बीच में भी, कवयित्री के अंदर मौजूद आशावादी हृदय, बसंत ऋतु में प्रकृति के अनुपम सौंदर्य पर मोहित होकर कह उठता है।

कर शिशिर ऋतु का आज अंत

दस्तक देता ऋतुराज बसंत

सिहरन का अब हो गया अंत

खुशियाँ फैली जग में अनंत

चैतन्य जगत में फैलाता

आया आया देखो बसंत.... (बसंत गीत)

आपकी रचनाओं के मनमोहक भाव, सुन्दर शब्द संयोजन से अत्यंत मनोहारी बन पड़े हैं । भाषा सहज और सरल है। अलंकारों का प्रयोग अपने स्वभाविक रूप में हुआ है परंतु विराम चिन्हों का अभाव अक्सर खटकता है। आशा है कि अगले संस्करण में मुद्रण संबंधित यह कमी अवश्य दूर होगी।

पूनम सिंह 'भक्ति'

"अम्लान माला" (पेपरबैक)

रचनाकार: पूनम सिंह 'भक्ति'

प्रथम संस्करण, वर्ष : जनवरी 2023,

ISBN: 978-81-958795-0-2

प्रकाशक: विश्व समन्वय संघ, दिल्ली-110002

पुस्तक (पृष्ठ:140),  मूल्य ₹ 350/- 

मुझे उम्मीद है कि हिन्दी साहित्य प्रेमियों को यह काव्य संग्रह अवश्य पसंद आएगा और हिन्दी पाठकों के बीच लोकप्रिय एवं चर्चित होगा।

पुस्तक समीक्षा:

अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
राजरूपपुर, प्रयागराज

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