भूख और इंसान : कविता - कुनाल मीना

Dr. Mulla Adam Ali
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Bhookh aur Insaan Poetry by Kunal Meena

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भूख और इंसान

क्या बताये हम तुम्हें

दर्द अपना?

गरीबी मे कैसे जीवन

चलता है?

चूल्हा जले या ना जले

लेकिन, पेट तो

जलता है।

किसी को बिरयानी भी

नही भाती।

कही भूख से इंसान

मरता है।

बंद दरवाजों मे नयी

योजनाएं आती है।

फसल उगा उगाकर खेत में

किसान मरता है।

सियासत कहती है कि

सजग है हम।

फिर भी सीमा पर क्यों?

जवान मरता है।

पढने की उम्र में काम

करते हैं बच्चे

ये देखकर क्यों नही हमारा

दिल पिघलता है?

क्या बताये हम तुम्हें

दर्द अपना? 

गरीबी में कैसे जीवन

चलता है?

- कुनाल मीना

दौसा, राजस्थान

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