हिंदी कविता : खुद को तैयार करती हूं - रितु वर्मा

Dr. Mulla Adam Ali
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Ritu Verma Ki Kavitayen: Khud Ko Tayar Karti Hu

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खुद को तैयार करती हूं

हर बार टूटती हूं।

हर बार बिखरती हूं। 

हर बार बिखरकर 

खुद को फिर से पुनः 

तैयार करती हूं। 

सोचती हूं इस बार 

चट्टान सा बन कठोर 

खुद का निर्माण करुँगी।

जो हर पग से खुद को 

हमेशा सजग रखूंगी।

पर क्या करु हर बार मैं 

पहले से बेहिसाब बिखर सी जाती हूं।

फिर खुद को चारों ओर से सम्भाल  

फिर से खुद को तराशकर 

चमकता सितारा सा बन 

खुद को खुले आसमा की 

रोशनी की चमक 

सी बनने को तैयार करती हूं। 

 - रितु वर्मा

छत्तरपुर (नई दिल्ली)

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