साहित्य के पटल पर जगमगाता सितारा : पवन कुमार

Dr. Mulla Adam Ali
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शायर पवन कुमार

साहित्य के पटल पर जगमगाता सितारा : पवन कुमार

कन्हैया लाल प्रभाकर सम्मान, मैथिली शरण गुप्त, जीशान मकबूल पुरस्कार, तुराज सम्मान, सुमित्रा नंदन पंत पुरस्कार, जय शंकर प्रसाद पुरस्कार आदि से सम्मानित, विख्यात कवि, शायर एवं गज़लकार आदरणीय पवन कुमार जी, साहित्य की दुनिया में एक चर्चित नाम है। इनका प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह बाबस्ता एवं आहटें बहुत लोकप्रिय हुई हैं । इसके अतिरिक्त इन्होंने साझा संग्रह दस्तक और चिराग पलकों पर का संकलन और संपादन भी किया है। उर्दू शायरी में अपनी प्रतिष्ठा को कायम करने के पश्चात उन्होंने उपन्यास विधा की तरफ अपनी लेखनी को दिशा दी है। अपने नए हिन्दी उपन्यास "मैं हनुमान" में उन्होंने काफी अन्वेषण कर विस्तृत और वैचारिक लेखन कार्य किया है।

हरिहरन, साधना सरगम, रूपकुमार राठौड़ जैसे विख्यात गायकों के स्वर में, गाये गये उनके गाने/गजलें, कई म्यूजिक एलबम में रिलीज होकर उनके प्रशंसकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हो चुके हैं। 

मैनपुरी में जन्मे, ख्याति प्राप्त साहित्यकार पवन कुमार जी, वर्तमान में भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं। विभिन्न जनपदों में जिलाधिकारी जैसे महत्वपूर्ण दायित्व निभाने के अतिरिक्त वे उत्तर प्रदेश शासन में भिन्न-भिन्न विभागों जैसे कृषि, खाद्य रसद, सिंचाई, लघु एवं मध्यम उद्योग, आवास विभाग में विशेष सचिव, प्रबंध निदेशक पश्चिमांचल विद्युत निगम के पद पर महत्तवपूर्ण कार्यों को बखूबी निभाया। वर्तमान में पवन कुमार जी, निदेशक समाज कल्याण विभाग, उत्तर प्रदेश के पद पर कार्यरत हैं।

भावनाओं के सागर की गहन तलहटी में तैरते पवन कुमार जी जब कल्पनाओं की पतवार थाम लेते है तो उसकी लेखनी से लाजवाब शेर शायरी जन्म लेती हैं और जब उसमें उनकी पैनी प्रतिभा के साथ साथ विद्वता एवं जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों का समावेश होता है तब साहित्य सृजन अपने श्रेष्ठ स्वरूप में विकसित होकर, साहित्य पटल पर अपने मनोहर स्वरूप से पाठकों के हृदय को मुग्ध करता है।

आत्मानुभूति और लोकानुभूति को अपनी ग़ज़लों में चरम सीमा तक पहुँचा सकने की सामर्थ्य रखने वाले, पवन कुमार जी की अश्लीलता से मुक्त शायरी में संबंधों की निरंतरता है। उसमें जीवन की यथार्थता और बेबसी का सटीक अन्वेषण है जिससे पाठक खुद को जुड़ा हुआ निरंतर महसूस करता है।

उनकी रचनाओं में वैचारिक दार्शनिकता एवं परिपक्वता स्पष्ट रूप से नजर आती है। दुनिया की असारता एवं क्षणभंगुरता पर उनके नजरिये की एक बानगी देखिये।

इक-न-इक रोज़ तो गिरना है ये मिट्टी का मकाँ,

आप जिसके दरो-दीवार सँभाले हुए हैं।

संसार में सर्वशक्तिमान ईश्वर की सार्वभौमिकता और मनुष्य की विवशता को स्वीकार करते हुए वो कह उठते हैं,

दरिया सहरा बंजर उसके।

साहिल और समन्दर उसके।


जिसको चाहे पार लगाये,

मौजें उसकी लंगर उसके।


मैं बस तनहा एक पियादां,

मैदाँ उसके लश्कर उसके।


हर लम्हे में उससे लज़्ज़त,

पैमाने और साग़र उसके।

उनका मानना है कि, जीवन की परिवर्तनशीलता में, दुख सुख सभी अल्पकालिक अस्थायी भाव हैं जो समय के साथ बदलते रहते हैं।

धीरे-धीरे दर्द फ़ना हो जाता है।

धीरे-धीरे जी हल्का हो जाता है।


धीरे-धीरे ज़ख़्म फ़िज़ा के भरते हैं,

धीरे-धीरे रंग हरा हो जाता है।

साधन संपन्न लोगों द्वारा हो रहे सामाजिक शोषण पर, कमजोरों की विवशता पर, वो मुखर होते हुए कह उठते हैं,

कड़ी है धूप तो सूरज से क्या गिला कीजे,

यहाँ तो चाँद भी पेश आया तमतमा के मुझे।

सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार/लालफीताशाही, समाज में अपनाए जा रहे दोहरे मापदंड, राजनीतिक उठापठक पर अकसर नरम रुख अख्तियार करना या बहुत अस्पष्ट बिम्बों के माध्यम से अपनी बातों को यदा कदा, घुमाकर कहने की विवशता का कारण, शायद वरिष्ठ जिम्मेदार सरकारी पदों पर इनका आसीन होना हो सकता है। कुछ बानगियां देखिए,

हमने हुकूमत ख़ाक में मिलते देखी है,

वक़्त ने अच्छे-अच्छों को बेताज किया।


वो तो तमाशाई हैं वो क्या जद्दोजहद को समझेंगे,

तूफ़ानों में ज़ोर है कितना सिर्फ़ किनारा जाने है।

सब कुछ नज़रो से गुजरते हुए भी चुप रह जाने की विवशता को व्यक्त करता हुआ यह शेर देखिए,

वक़्त-ए-क़त्ल चीख़ा मैं कोई कुछ नहीं बोला,

लोग मेरी बस्ती के गूँगे और बहरे थे।

परिस्थितियों पर बेबाक रूप से न कह पाने की विवशता एवं बाद में प्रतिकार/ व्यक्त करने की हृदय में पल रही लालसा/छटपटाहट की बानगी देखिए

जमीं को नाप चुका आसमान बाक़ी है।

अभी परिन्दे के अन्दर उड़ान बाक़ी है।


अभी तो चुप हूँ मगर दास्ताँ सुनाऊँगा,

अभी तो मुँह में हमारे ज़बान बाक़ी है।

इस परिवर्तनशील दुनिया में, परिस्थितिवश समय-समय पर भावनाओं का ज्वार भी अपनी दिशा बदल कर नए रूप में आता हुआ प्रतीत होता है,

देखता रहा मुझको आईना भी हैरत से,

आज मेरे चेहरे में जज़्बश् कितने चेहरे थे।

जीवन में अपने किए गये कार्यों की उपादेयता पर उन्हें कोई संदेह नहीं हैं,

जुनूँ में रेत को यूँ ही नहीं निचोड़ा था।

किसी की प्यास ज़ियादा थी पानी थोड़ा था।

सुन्दर एवं सटीक उर्दू शब्दों के चयन की लालसा आपकी ग़ज़लों के स्तर को बेहतरीन बनाती हैं परंतु एक आम हिन्दी भाषी पाठक को, कहीं कहीं पर, शब्दकोश का सहारा लेने पर, मजबूर भी करती हैं।

इनकी ग़ज़लें किसी समीक्षक की समीक्षा की मुहताज नहीं है। अश्क के सागर में डूबकर भी मुस्कुराती आपकी गजलों में व्यक्त कोमल भाव, बेबसी, उदासी एवं जीवन के आनंद भावों को व्यक्त करते, बिंब और इनके अनूठे अंदाज, ह्रदय तंत्र को स्वतः अनुनादित कर पाठकों को अपनी मोहक रसधारा में सराबोर कर, एक सुनिश्चित वैचारिक मुकाम पर पहुंचाकर, मन-मस्तिष्क पर , अविस्मरणीय छवि अंकित करते हैं।

मुझे उम्मीद है कि गजल प्रेमियों के साथ-साथ साहित्य में रूचि रखने वाले अन्य कद्रदानों को भी, पवन कुमार जी की रचनाएँ पसंद आएंगी और गजल - साहित्य में आत्मानुभूति और लोकानुभूति के विभिन्न पक्षों के साहित्यिक दस्तावेज के रूप में उनकी कृतियों की उपस्थिति अवश्य दर्ज होगी।

("गुफ्तगू पत्रिका" से साभार)

अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"

राजरूपपुर, प्रयागराज
मोबाइल: 9452322287

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