कॉलोनी कल्चर | Colony Culture | हिंदी व्यंग्य | बीएल आच्छा

Dr. Mulla Adam Ali
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Colony Culture Hindi Vyang by B. L. Achha

Colony Cultures hindi criticism

कॉलोनी कल्चर

        नानी के मर जाने पर नानाजी भी गाँव छोड़कर मामा के साथ शहर में रहने लगे। पॉश कॉलोनी में सारी सुख-सुविधाएँ। रंगीले पर्दों से खुशनुमा घर। नाना-नानी ने अपने नाती- नातिन को उनके गाँव से बुला लिया। गर्मी की छुट्टी में वे आए और अगले ही दिन क्रिकेट का बल्ला लेकर सड़क पर खेलने लगे। गेंद पड़ोसी के दरवाजे पर टन्न से लगी, तो मामाजी बाहर निकलकर डाँटने लगे- "तुमने क्या गाँव का - बाड़ा समझ रखा है। चलो अन्दर।" और सभी बच्चे तीस बाई पचास के प्लॉट में कैद हो गये। तभी नाती ने मामा से कहा- "मामा! सामने के बंगले में गमलों में सुन्दर फूल - खिले हैं। क्या देख आएँ?" मामा ने डाँटते हुए कहा- "नहीं, यहाँ इस तरह दूसरों के - घर नहीं जाया करते।" नाती ने नाना से कहा- "यहाँ लोग एक-दूजे के घर जाने - आने का रिश्ता नहीं पालते ।" नाना ने कहा "हाँ बेटा, यहाँ रिश्ते गमलों में फूलों की तरह उगते हैं, जमीन में नहीं।" नातिन से रहा न गया। उसने कहा- "फिर भी यहाँ इतने आदमी रहते हैं, उनके बीच कुछ तो रिश्ता होता ही होगा?" नाना भी गाँव के बाड़े और बरगद के नीचे की चौपाल से निकलकर इस पॉश कॉलोनी में कसमसा रहे थे। उनसे रहा न गया। बोले- "बेटा! यहाँ रिश्ते तो होते हैं। पर चोरों के खिलाफ मकान मालिक, उनके डॉगी और चौकीदार के बीच रिश्ते बहुत गहरे होते हैं।

- बी. एल. आच्छा

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