उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा सांत्वना पुरस्कार प्राप्त पूनम सिंह की कहानी : विरासत में मिली बेटियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा सांत्वना पुरस्कार प्राप्त कहानी

विरासत में मिली बेटियाँ

Inherited Daughters Hindi story by Poonam Singh

Inherited Daughters Hindi story by Poonam Singh

विरासत में मिली बेटियाँ

मोहन और राधा की शादी को आज 16 साल पूरे हो गये। राधा अपने परिवार को अब तक कुलदीपक न दे सकी जिसका उसे दुःख रहता था। उसके माथे पर बांझिन का कलंक लगा था। उसे घर में भी बांझिन होने का ताना और बाहर भी बांझिन होने का ताना मिलता था। लोग अपने किसी मांगलिक कार्यक्रम में राधा को नहीं बुलाते थे उसे अपशकुन मानते थे। राधा इन सब चीजों से बहुत उदास रहती थी और अंदर ही अंदर अपने दु:ख के सागर को समेटे गोते खाती थी। मोहन राधा को हमेशा समझाता था। राधा कोई बात नहीं है तुम दु:खी मत हो, हो सकता है हमारे नसीब में औलाद का सुख ना हो। हमसे कहीं गलती हो गई हो जिसकी सजा ईश्वर हमें औलाद का सुख छीन कर दे रहा हो, पर कोई बात नहीं जो भी होता है सब अच्छे के लिए होता है।

          जब आज हमारी शादी के 16 साल हो गए हैं तो क्यों न हम कहीं बाहर घूमने चलते हैं। नया जगह होगा, नए लोग होंगे तो तुम्हारी कुछ उदासी कम होगी। आज अच्छा मौका है।ऑफिस से छुट्टी भी है। चलो चलते हैं।

राधा मान गयी और खुशी-खुशी दोनों घूमने के लिए बाहर जाते हैं।जैसे ही दोनों अपने घर नवगढ़ से कुछ ही दूरी पर आए थे कि उनकी कार जंगल के पास खराब हो गई। दोनों वहीं रुक जाते हैं।थोड़ी देर में वहाँ से छोटे बच्चे के रोने की आवाज आती है। राधा मोहन से बोलती है-

   मोहन यहाँ बच्चे के रोने की आवाज कहाँ से आ रही है ?

 मोहन भी कहता है हां राधा आवाज तो आ रही है।

चलो देखते हैं। वही खोजते हुए एक झाड़ी के पीछे दोनों पहुँच जाते हैं। जहाँ दो नवजात बच्चे पड़े थे।

राधा मोहन से बोलती है- मोहन यह किसके बच्चे हैं ?

 बड़े प्यारे हैं? कौन छोड़कर चला गया है। उसे दया नहीं आई बच्चों को छोड़ते हुए।

मोहन भी बोलता है- हां राधा कैसे कैसे लोग हैं। देखो न एक हम लोग हैं जिसे औलाद का सुख नहीं और एक यह लोग हैं जो अपने बच्चों को मरने के लिए छोड़ दिए हैं।

राधा बोलती है- मोहन क्यों न इन दोनों बच्चों को हम अपना लें। इन्हें माँ- बाप का प्यार मिल जाएगा और हमें वारिस।

  हाँ राधा तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो इसलिए हो सकता है कि हमारी गाड़ी यहीं आकर खराब हुई हो। चलो जो हुआ सो हुआ ईश्वर की मर्जी से हुआ। देखो राधा तभी मैं कहता था न जो होता है सब अच्छे के लिए होता है। कहाँ ईश्वर ने हमारे नसीब में एक भी औलाद नहीं दी थी और आज देखो दो-दो औलाद मिल गई। ईश्वर भी क्या कमाल की चीज है जब देता है तो छप्पर फाड़ के और नहीं देता तो बिल्कुल नहीं।

 राधा और मोहन दोनों बच्चों को पाकर बहुत खुश होते हैं और उन्हें लेकर घर आ जाते हैं। दोनों वारिस पाने की खुशी में जश्न मनाते हैं ।दोनों फूले नहीं समाते।

राधा बड़े मनोयोग से दोनों बच्चियों का लालन पोषण करती है। उन पर अपनी ममता की खान उठाती है। दोनों लोग उन बच्चों को औलाद की तरह ही प्यार करते हैं। राधा कहती थी बेटियाँ हैं तो क्या हुआ, पर यह हमारी वारिश है। इन्हें में खूब पढ़ा लिखा कर बड़ा इंसान बनाऊँगी। इन को किसी चीज की कमी नहीं होने दूँगी। यह दोनों बेटियाँ मेरे लिए बेटे ही हैं। मैं इन्हें उड़ने के लिए पूरा खुला आसमान दूँगी ताकि यह उड़ सकें। इन्हें जो बनना होगा वह बनेंगी। कभी इन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोकूँगी।

मोहन बैंक में जॉब करता था।कुछ दिनों बाद उसका तबादला गौरीगंज में हो जाता है। दोनों अपनी बेटियाँ प्राची और प्रिया के साथ रहने लगते हैं।राधा के मन में कहीं ना कहीं डर था कि क्या यह लड़कियाँ हमारी उम्मीदों पर खरा उतरेंगी? मैंने इनके परवरिश में कोई कमी नहीं की है। कहीं जो लोग कहते हैं अपना खून अपना होता है यह बात सच न हो जाए।यह तो हमारा खून नहीं है।

मोहन राधा को समझाता था डरो नहीं राधा इन बेटियों में हमारा खून नहीं है तो क्या हुआ हमारा दिया हुआ संस्कार,अच्छी परवरिश तो है। बाकी आगे जो होगा देखा जाएगा अभी से चिंता नहीं करनी है।

 मोहन दोनों बेटियों का दाखिला शहर के अच्छे स्कूल में करवा देता है।दोनों बेटियाँ पढ़ने में बहुत अव्वल रहती हैं। दोनों लगन व मेहनत से पढ़ाई करती थी और हमेशा कक्षा में प्रथम आती हैं। राधा अपनी दोनों बेटियों को हमेशा अच्छी शिक्षा देती थी और समाज में अलग पहचान बनाने की बोलती है।

 राधा समाज में जो बेटा- बेटी का भेद बना है उसे अपनी बेटियों के जरिए खत्म करना चाहती थी। इसलिए दोनों बेटियों को देश की महान महिलाओं जैसे आशा देवी, लता मंगेशकर, सावित्री फुले, जीजाबाई, इंदिरा गाँधी, मदर टेरेसा, सरोजिनी नायडू, रानी दुर्गावती, लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई होल्कर, सुनीता विलियम्स, कल्पना चावला, मैरी काम जैसी महान विभूतियों की गाथाएँ सुनाती थी। वह चाहती थी कि उसकी बेटियाँ भी एक नया मुकाम हासिल करें। उन लोगों के ताने का जवाब देना चाहती थी जो कहते हैं बेटियाँ कभी बेटों के बराबर नहीं बन सकती। वह बेटों की तरह हर क्षेत्र में मुकाम हासिल नहीं कर सकती।

 धीरे समय बीतता गया और दोनों लड़कियाँ बड़ी हो गई।उच्च शिक्षा की तैयारी करने लगी। एक बेटी प्राची डॉक्टरी की तैयारी कर रही थी और एक बेटी प्रिया आई ए एस की। दोनों बेटियाँ माँ की दी हुई अच्छी परवरिश और संस्कार को हमेशा याद रखती थी। दोनों अपनों से बड़ों का सम्मान व असहाय लोगों की मदद करती थीं। उन दोनों को कभी एहसास नहीं हुआ कि वह राधा और मोहन की बेटी नहीं है।

इसी तरह समय बीतता गया और सामान्य दिनचर्या चलती रही।कुछ दिनों बाद प्राची डॉक्टर बन गई और प्रिया आईएएस टॉपर। दोनों की इस अपार सफलता से मोहन और राधा बहुत खुश थे। उनकी आँखों में खुशी के आँसू थे।चारो तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ छा गयी। आज उन्हें सचमुच उनके घर का दो-दो कुल दीपक मिल गया। प्रिया के टॉप करने पर मोहन और राधा के घर बधाइयों का ताँता लग गया।

एक पत्रकार महोदय, ने राधा से पूछा! आज आप तो बहुत खुश होंगी। आपकी बेटी ने जो टॉप किया है।

जी हाँ! मै बहुत खुश हूँ और ईश्वर को धन्यवाद कहना चाहती हूँ कि मुझे उपहार स्वरूप दो बेटियाँ देने के लिए।

ये दोनों हमारी बेटी न होकर भी हमे आज दुनिया की सबसे बड़ी खुशी दे दीं।

पत्रकार महोदय ने राधा से अंतिम प्रश्न किया- क्या आप समाज को कोई संदेश देना चाहती हैं?

राधा- जी हाँ ! मैं एक बात कहना चाहती हूँ - बेटियों को कभी बोझ न समझें, उन्हें बेटों की तरह प्यार, दुलार, सम्मान दें। उन्हें अच्छी सीख, परवरिश दें। उन्हें अच्छी शिक्षा, खुला आसमान में उड़ने का हौसला दें। पग- पग उनके साथ साथ खड़े हों, फिर देखिए बेटियाँ आसमान की बुलंदियों को कैसे नहीं छू लेंगी। साथ ही आपका नाम रोशन करेंगी। ऐसा नहीं है कि बेटे बस कुल का नाम रोशन करते हैं। बेटियाँ भी करती है। वह भी घर का कुलदीपक बन सकती हैं, आखिर जो समाज, परिवार और माता-पिता के सपनों को साकार करे, कुल का नाम रोशन करें वही तो असली वारिस कहलाने का अधिकारी होता है। चाहे वह लड़का हो या लड़की क्या फर्क पड़ता है?

 बेटियों को कूड़े में मत फेंकिये। कोख में मत मारिए, उन्हें भी जीने का अधिकार दीजिए, फिर देखिए बेटियाँ कितनी उन्नति करती हैं। आखिर लता मंगेशकर, साइन नेहवाल भी तो बेटियाँ हैं।बस मैं अपनी वाणी को विराम देते हुए यही कहना चाहती हूँ कि समाज में बेटे- बेटी का भेद मिटे। मैं बेटियों से नफरत करने वालों को बताना चाहती हूँ कि मैंने एक नहीं दो -दो कुलदीपक जलाएँ हैं। मेरे दो-दो वारिस हैं और मेरी दोनों बेटियाँ ही मेरी असली वारिस हैं। अब मेरे माथे से बांझ होने का कलंक भी मिट गया।

- पूनम सिंह

असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग
हिन्दू कन्या महाविद्यालय,
सीतापुर उ० प्र० 261001

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