Babul Ki Bitiya : बिटिया के वात्सल्य रूप को दर्शाती कविता बाबुल की बिटिया

Dr. Mulla Adam Ali
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Poem on Daughter in Hindi : Babul Ki Bitiya

Poem on Daughter in Hindi

Poem on Daughter: कविता कोश में आज आपके सामने प्रस्तुत है मानवेन्द्र सुबोध झा की कविता "बाबुल की बिटिया", मित्रो आज की कविता बिटिया के वात्सल्य रूप को दर्शाती है तो आइये और बाबुल बन बिटिया के वात्सल्य की गंगा डूबकी लगाइये। पढ़े और शेयर करें।

बिटिया के वात्सल्य रूप को दर्शाती कविता बाबुल की बिटिया

बाबुल की बिटिया

बाबुल के आंगन की शोभा बन  

बिटिया किलकारी है भरती 

कभी चढ़े गोद में बाबुल की 

कभी घुटनों के बल है चलती  


बाबुल की छोटी सी बिटिया 

नित गुड़िया से खेला करती है 

स्वयं को दे माँ का स्वरुप 

गुड़िया को ममता देती है । 


जब बाबुल घर को आते है 

दौड़ दरवाजे पर जाती है। 

दरवाजा खोलने का प्रयास   

नन्ही बिटिया कर जाती है। 


जब खोल न पाती दरवाजे को 

माँ को आवाज लगाती है 

माँ जल्दी खोलो दरवाजा

वात्सल्य की चीख लगाती है 


जब स्कूल जाने की उम्र हुई

रोज सुवह उठ जाती है। 

माँ से चोटी गुथवाकर

जल्द तैयार हो जाती है। 


शिक्षा में लड़को से आगे 

निज गौरव का अभिमान उसे 

कैसे प्रतिकार करूँ उसका

मैं ज्योतिर्विहीन हूँ बिन उसके।

मैं ज्योतिर्विहीन हूँ बिन उसके। 

-  मानवेन्द्र सुबोध झा

शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश

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