Meri Kalam Meri Awaaz : खुद की कलम - स्तुति राय की कविता

Dr. Mulla Adam Ali
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Stuti Rai Poetry : Khud Ki Kalam Kavita

Stuti Rai Poetry Khud Ki Kalam

स्तुति राय की कविता : कविता कोश में आज आपके लिए प्रस्तुत है स्तुति राय की कविता "खुद की क़लम", पढ़े और साझा करें।

खुद की क़लम

कभी कभी

खुद की कलम को देख कर

लगता हैं कि

यह कलम नहीं

इस पृथ्वी का अंतिम फूल हैं

और अपनी डायरी देखकर

लगता हैं

यह दुनिया का आखिरी प्रेम पत्र,

संसार की अंतिम कविता की किताब

या कि वो अंतिम ख़त

जो हर उस व्यक्ति की उम्मीद हैं

जो जीवन की झंझावातों से

ना उम्मीद हो चुका हैं ,

क़लम हाथ में लेते ही

यह महसूस होता हैं

जैसे कोई अनजाना सा खजाना

हाथ लग गया हों,

डायरी पर कलम का चलना

ठीक वैसा लगता हैं

जैसे किसी कविता की लयात्मकता,

कभी लगता हैं क़लम नहीं चल रहीं

बल्कि, हिमगिरि के हृदय में कंप हो रहा हैं

तभी दुसरे पर लगता हैं

प्रलय के आंसुओं में

मौन व्योम रो रहा हैं

कभी लगता आलोक और तिमिर के बीच

युद्ध छिड़ा हैं,

और अन्त में ये आभास होता हैं कि

मेरी क़लम इस नाश पथ पर

अपने चिन्ह छोड़ रहीं हैं।

- स्तुति राय

शोध छात्रा,
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ
वाराणसी

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