फहीम अहमद की छह कविताएँ : Faheem Ahmad Hindi Poetry

Dr. Mulla Adam Ali
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Dr. Faheem Ahmad Hindi Poetry : Hindi Kavitayein : Hindi Poetry

Faheem Ahmad Hindi Poetry

फहीम अहमद की कविताएं : इस आर्टिकल में डॉ. फहीम अहमद की छह बेहतरीन कविताएं दिए गए हैं 1. मिट्टी की खुशबू  कविता 2. चूल्हा मिट्टी का कविता 3. इमली के नीचे कविता 4. बरगद बाबा की चिट्ठी कविता 5. रंग भरी चिट्ठी कविता 6. नानी की चक्की कविता। गाँव और प्रकृति से जुड़े इन सर्वश्रेष्ठ हिंदी कविताओं को पढ़े और शेयर करें। डॉ. फहीम अहमद : रुदौली, फैजाबाद में जन्म। डिग्री कालेज में हिंदी शिक्षक बाल काव्य में विशेष रुचि। 26 वर्षों से पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन दो पुस्तकें प्रकाशित अनेक संस्थाओं से सम्मानित। Dr. Faheem Ahmad Ki Kavitayein in Hindi, Hindi Poetry, Kavita Kosh, Hindi Kavita on Village and Nature, Poetry in Hindi.…

कविता मिट्टी की खुशबू : मिट्टी पर कविताएं - Poem On Soil In Hindi - Mitti Ki Khushboo Kavita

1. मिट्टी की खुशबू 


बुला रही मिट्टी की खुशबू

आओ अपने गाँव चलें।


मिट्टी के घर उसपे छप्पर छप्पर

पे फैली खपरैलें।

लहराती हैं उसके ऊपर

हरी-भरी लौकी की बेलें।

मन करता है हरी घास पर,

फिर से नंगे पाँव चलें।

बुला रही मिट्टी की खुशबू

आओ अपने गाँव चलें।


बाट जोहते बरगद बाबा

राह निहारें तुलसी मैया।

कब से रस्ता देख रही है

रंभाती है धौरी गैया।

ठंडी हवा सुहानी लगती,

उस पीपल की छाँव चलें।

बुला रही मिट्टी की खुशबू

आओ अपने गाँव चलें।


उबले हुए सिंघाड़ों के संग

मूँगफली की पपड़ी खाएँ।

बैठ धूप में जग भर की सब

बातें काका से बतियाएँ।

निश्छल हँसी जहाँ मिलती है,

प्यार भरी उस ठाँव चलें।

बुला रही मिट्टी की खुशबू

आओ अपने गाँव चलें।


कविता चूल्हा मिट्टी का : Mitti Ka Chulha Kavita : Poem Mitti Ka Chulha

2. चूल्हा मिट्टी का


काकी जी ने सुलगाया है

चूल्हा मिट्टी का।


धुआँ उठा चूल्हे के ऊपर,

सुलग रहे हैं उपले।

भूने बैंगन काकी जी ने

फिर झट आलू उबले।


बड़ा अनूठा स्वाद मिला है।

चोखा-लिट्टी का।


चूल्हे में सेंकी काकी ने

रोटी बेसन वाली।

साग बना पालक का तो फिर

लगी महकने थाली।


देख उसे मन लगा मचलने

चुलू-बिट्टी का।


शाम हुई तो शकरकंद भी

चूल्हे में ही भूनी।

धनिया की चटनी से लज्जत

मिली सभी को दूनी।


मजा मिला काकी के घर में

प्यारी छुट्टी का।

काकी जी ने सुलगाया है

चूल्हा मिट्टी का।।


कविता इमली के नीचे : Imli Ke Niche Kavita - इमली का पेड़ कविता - इमली का यह पेड़ पुराना कविता

3. इमली के नीचे


आओ तुम्हें दिखाऊँ क्या-क्या

है इमली के नीचे।


पेड़ कटा इमली का लेकिन

नाम अभी तक बाकी।

सब कुछ है इमली के नीचे

कहती जमुना काकी।


कभी यहाँ पर था मुझ सा ही

बूढ़ा पेड़ घनेरा।

जिस पर चील, कबूतर, कौआ

खूब जमाते डेरा।


बकरी, गाय, बैल सोते थे

अक्सर इसके नीचे।


देख इमलियाँ जब बच्चों के

मुँह में आता पानी।

ढेला मार गिराते इमली

आती याद पुरानी।


इमली के नीचे मिज्जन की

चलती आटा चक्की।

माँगा करती भीख वहीं पर

बुढ़िया जो है झक्की।


लल्लू का गोदाम बना है

उस चक्की के पीछे।


इमली के नीचे मजार है

लगे जहाँ पर मेला।

चन्दर चाचा वहीं चाट का

रोज लगाते ठेला।


आइसक्रीम मलाई वाली

बेचें चच्चा जुम्मन।

छोटी सी गुमटी में बैठे

पान लगाते मम्मन।


पास उसी गुमटी के सोता

कुत्ता आँखें मीचे।


कविता बरगद बाबा की चिट्ठी : Bargad Baba Ki Chitthi Kavita - बरगद बाबा का दर्द कविता - Bargad Baba Ka Dard Kavita

4. बरगद बाबा की चिट्ठी


अम्मा आज गाँव से आई

बरगद बाबा की चिट्ठी।


अभी कबूतर लेकर आया

दर्द भरा उनका संदेश।

रो-रो उनकी आँखें भीगी

साँसें चंद बची हैं शेष।


लिख भेजा चिट्ठी पाते ही

जल्दी आना ले छुट्टी।


आँगन वाला नीम कट गया

नहीं रहा पिछवाड़े बेर।

मुझे काटने में अब वे सब

नही करेंगे बिल्कुल देर।


नही रहा वह पेड़ यहाँ, थी

जिसकी इमली खटमिट्ठी।


आकर हमें बचा लो विनती

तुमसे करूँ जोड़कर हाथ।

मुश्किल घड़ी आज आई है

आकर तुम दो मेरा साथ।


खेलकूद कर जहाँ बढ़े हो

तुम्हें बुलाती वह मिट्टी।


कविता रंग भरी चिट्ठी : Rang bhari Chitthi Kavita

5. रंग भरी चिट्ठी


बाग-बाग से नई खुशबुएँ,

मौसम लाया है भर मुट्ठी।

बाँट रहा बनकर हरकारा,

रंग भरी प्यारी सी चिट्ठी।


चिट्ठी पढ़कर झूम रहा है,

हराभरा धरती का आँचल।

नई कोंपले हँसी लुटातीं,

मुस्काते हैं टेसू, सेमल


खिला हुआ है मन फूलों-सा

छाई नई फिजा की रंगत।

ढोल, मँजीरा ताल ठोकते,

सँग मृदंग कर रहा संगत।


बाँह पकड़ सरसों की तितली

झूल रही है कब से झूला

बरों की खुशबू जब पाई,

भौरा अपनी सुधबुध भूला।


फगुनाहट का रंग चढ़ा है,

पत्ते चमक रहे शाखों में।

पकी फसल की खुशी चमकती

दिखी किसानों की आँखों में।


कविता नानी की चक्की : Poem on Nani in Hindi - Nani Ki Chakki Kavita

6. नानी की चक्की


नानी चलाती हैं।

घरर घरर चक्की।


चक्की के पाट

आपस मे घिसे।

दोनों के बीच में

क्या- क्या पिसे।

आ जाओ जल्दी

हो देखना जिसे।


गेहूँ, चना, जौ

ज्वार और मक्की।


नानी के आस-पास

चिड़िया फिरे।

बैठ वहीं खाती

जो दाने गिरे।

नानी हटातीं न

उसको परे।


चिड़िया से नानी की

दोस्ती है पक्की।


नानी के हाथों में

ताकत भरी।

चक्की के पाटों में

जादूगरी।

जो भी पिसे उसमें

खुशबू खरी।


स्वाद खूब पाया है

हम बड़े लक्की।


- डॉ. फहीम अहमद

असिस्टेंट प्रोफेसर हिन्दी, एमजीएम कॉलेज,

संभल, उत्तर प्रदेश

ये भी पढ़ें; बाल कविताएं बच्चों के लिए : फहीम अहमद की आसान व छोटी आठ बाल कविताएँ

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