कैसे पड़ा देश का नाम भारत : किस भरत के नाम पर देश का नाम भारत वर्ष पड़ा - शिवचरण चौहान

Dr. Mulla Adam Ali
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Bharat Varsha : History of India - India Vs Bharat - Bharat Ka Naam Bharat Kaise Pada  भारत नाम कैसे पड़ा

Bharat Ka Naam Bharat Kaise Pada

भारत नाम कैसे पड़ा? : इंडिया की जगह भारत नाम स्थाई बनाने की चर्चा चल रही है। इंडिया और भारत का विवाद खड़ा हुआ है, तो जानिए इंडिया का नाम भारत कैसे पड़ा, भारत नाम का इतिहास, शिवचरण चौहान का आलेख आखिर हमारे देश का नाम कैसे पड़ा भारत? बड़ा ही रोचक है इतिहास, कैसे पड़ा देश का नाम भारत?..

How did our Country Get Bharat Name?

किस भरत के नाम पर देश का नाम भारत वर्ष पड़ा

- शिवचरण चौहान

 हमारे वैदिक और पौराणिक साहित्य में भरत नाम के कई राजा और संत हुए हैं। ऋग्वेद में भरत कबीले का उल्लेख मिलता है। कहते हैं भरत कबीले के नाम पर ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। जम्मू द्वीप भरतखंड का उल्लेख कई जगह आता है। ऋग्वेद में उल्लेख है कि पहले जम्मू द्वीप में भरत, तुतसुव, और पूरव नाम के तीन कबीले थे जिनमें अक्सर लड़ाई हुआ करती थी। कालांतर में भरत कबीले ने सब को हराकर अपना अधिकार कायम कर लिया और इस तरह देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।

हमारे बच्चों को पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है कि दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र व प्रतापी सम्राट भरत के नाम पर हमारा देश भारत कहलाता है। पर सम्राट भरत के नाम पर विवाद है?भारत के इतिहास में भरत नाम के कई सम्राट और प्रसिद्ध संत हुए हैं।

राजा ऋषभदेव के पुत्र सम्राट भरत

 वेदव्यास की श्रीमद् भागवत, महाभारत और शिव पुराण में कथा आती है कि कई हजार साल पहले एक राजा थे। नाम था ऋषभदेव। कहते हैं भगवान शिव ने ऋषभदेव के रूप में धरती पर अवतार लिया था।हिंदुओं के चौबीस अवतारों में ऋषभदेव की गणना होती है। जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ही हैं। उन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है। राजा ऋषभदेव मनु के वंशज थे। उनके पिता का नाम नाभि और माता का नाम मरुदेवी था। राजा ऋषभदेव की दो रानियां थीं। बड़ी रानी का नाम सुमंगला था और छोटी का सुनंदा।रानी सुमंगला के पुत्र थे- भरत और पुत्री थी ब्रम्ही। दूसरी रानी सुनंदा के पुत्र थे बाहुबली और पुत्री का नाम था सुंदरी। राजा ऋषभदेव ने पुत्री ब्रम्ही को भाव और भाषा को लिपि लिपि बद्ध करने के लिए जो लिपि सिखाई उसका नाम ब्राह्मी के नाम पर रखा गया। वह लिपि 'ब्राम्ही लिपि' कहलाई।

 छठी शताब्दी तक के शिलालेख संस्कृत भाषा और ब्राम्ही लिपि में ही लिखे हुए मिले हैं। दूसरी पुत्री सुंदरी को ऋषभदेव ने गणित सिखाया। इस तरह लिपि और. गणित का आविष्कारक राजा ऋषभदेव को माना जा सकता है।

राजा ऋषभदेव जब बूढ़े हुए तो अपने पुत्र युवराज भरत को राजगद्दी पर अभिषेक कर वन में तपस्या करने चले गए। छोटे भाई बाहुबली को मिला पोदनपुर का छोटा राज्य। राजा बनते ही भरत ने अपने राज्य के विस्तार के लिए दूसरे राज्यों पर चढ़ाई करना शुरू किया।

प्रतापी भरत ने दूर-दूर देशों के राजाओं को जीतकर बहुत विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया। अब वह चक्रवर्ती सम्राट बन गये पर पोदनपुर के राजा और छोटे भाई बाहुबली ने उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की। तब भरत ने बाहुबली के राज्य पोदनपुर पर आक्रमण कर दिया। राजा बाहुबली भी बहुत वीर और युद्धकला में निपुण थे। लंबे समय तक भरत और बाहुबली में युद्ध होता रहा। यह युद्ध बड़ा भीषण हुआ था। इस युद्ध में विजय मिली बाहुबली को भरत पराजित हुए थे, पर युद्ध जीत जाने के बाद भी महाराज बाहुबली ने अपना राज्य भी अपने बड़े भाई सम्राट भरत को दे दिया और-सन्यासी बनकर तपस्या करने वन में चले गये। इस युद्ध में बहुत जनधन की हानि हुई थी जिससे बाहुबली विचलित हो गए। राज्य के लिए भाई-भाई में हुए युद्ध और भयंकर रक्त-पात ने बाहुबली के मन में विरक्ति पैदा कर दी थी । उन्होंने सब कुछ त्याग दिया। बाहुबली का महान त्याग और तपस्या आज भी लाखों-करोड़ों लोगों को प्रेरण देती है। सारा जैन समाज बाहुबली की पूजा बड़ी श्रद्धा से करता है। कर्नाटक के गोम्मटेश्वर श्रवणबेलगोला में 57 फीट ऊंची, एक ही विशाल शिला की बाहुबली की अनोखी प्रतिमा दर्शनीय बनी है। कहते हैं कि उस विशाल प्रतिमा की छाया पृथ्वी पर नहीं पड़ती।

बाहुबली के राज्य त्याग के बाद सम्राट भरत को चुनौती देने वाला कोई राजा नहीं रहा। वह विशाल साम्राज्य के सम्राट बन गए। वह बहुत प्रतापी और वीर तो थे ही, साहित्य, संगीत, कलाओं के ज्ञाता भी थे।

अपनी प्रजा का पालन वह पुत्रवत् प्रेम से करते थे। सम्राट के द्वारा रक्षित इस देश का नाम "भारत" पड़ा। श्रीमद्भागवत और महाभारत में उल्लेख मिलता है कि इस देश का नाम राजा ऋषभदेव के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर भारत-वर्ष कहलाया।

जड़ भरत

ऋषभदेव के पुत्र सम्राट भरत जब बूढ़े होने लगे तो परम्परा के अनुसार उन्होंने राज-पाट त्याग दिया। वह सन्यासी हो गए। घने जंगल में एक नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे।

उनका सारा समय ईश्वर चिंतन में बीतता था। धीरे-धीरे वह चिंतन में इतने गहरे डूबे रहने लगे कि उन्हें न खाने-पीने का होश रहता और न कपड़े पहनने का। इस तरह बेसुध बने रहने के कारण लोग उन्हें जड़ भरत कहने लगे। जड़ भरत रोज स्नान करने नदी पर जाया करते थे। एक दिन नहाते समय उन्होंने देखा कि एक हिरनी बहुत तेजी से भागी आ रही है। एक शेर उसका पीछा कर रहा है। शेर से बचने के लिए हिरनी ने नदी में छलांग लगा दी। नदी के दूसरे किनारे पर वह गिरी और एक छौने (बच्चे ,)को जन्म देकर :हिरनी मर गई। जड़ भरत का हृदय पसीज गया। दया से भर उठा। उन्होंने उस नवजात छौने को उठाया और उसे अपनी कुटिया में ले लाये।

अब उनका मन उस हिरण के बच्चे की सेवा में ऐसा रमा कि वह सब कुछ भूलकर उसी को खिलाते-पिलाते रहते और उसके साथ खेलते-कूदते रहते। समय बीता। एक दिन जड़ भरत की मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय भी उनका मन उस हिरनी के बच्चे में ही लगा रहा था। उनकी मुक्ति नहीं हो पाई। पर इन्हीं भरत के नाम पर देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।

दुष्यंत पुत्र सम्राट भरत

 भारतवर्ष के संबंध में एक और कथा आती है दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की। महाभारत के आदि पर्व में यह कथा मिलती है । सम्राट विक्रमादित्य के राज दरबार के महाकवि कालिदास का 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' नाटक भी इसी कथा पर लिखा गया है।

 महाराज दुष्यंत खाण्डवप्रस्थ के प्रतापी राजा थे। वह पुरुवंशी थे। एकबार वन में शिकार खेलते समय कण्व ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे। वहां उनका परिचय ऋषि कण्व द्वारा पालित कन्या शकुंतला से हुआ। शकुंतला इन्द्र की अप्सरा मेनका और ऋषि विश्वामित्र की पुत्री थी। जिसे जन्म के बाद मेनका अपने वादे के अनुसार जंगल में छोड़कर चली गई थी। उस नवजात कन्या की रक्षा शकुन पंछियों यानी मोरों ने की थी इसीलिए कण्व ऋषि ने उसका नाम शकुंतला रखा।

एक बार राजा दुष्यंत शिकार खेलते खेलते जंगल में भटक गए और एक आश्रम में पहुंचे जहां उनकी मुलाकात शकुंतला नामक युवती से हुई और फिर दोनों में प्यार हुआ इस तरह कण्व के आश्रम में शकुंतला और दुष्यंत का विवाह हुआ। दुष्यंत विवाह कर के एक अंगूठी शकुंतला को देकर वापस अपनी राजधानी खांडवप्रस्थ लौट गए। समय आने पर गर्भवती शकुंतला को ऋषि कण्व ने उसे राजा दुष्यंत के पास भेज दिया। पर दुष्यंत ने उसे पहचानने से भी इंकार कर दिया। स्वाभिमानी शकुंतला वन में कुटिया बनाकर रहने लगी। वहीं वन में उसने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम भरत रखा।

भरत धनुष विद्या में बहुत पारंगत हो गया। वन में वह शेरों के बीच पला और बढ़ा। वह इतना निडर था कि शेरों का मुंह खोलकर उनके दांत गिना करता था।

कुछ समय बाद दुष्यंत को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। वह शकुंतला और पुत्र भरत को खोजकर राजधानीले आए राजा दुष्यंत के बाद भरत राजा हुए। प्रतापी भरत ने अनेक दूर-दूर के राज्यों को जीतकर अपना बहुत बड़ा साम्राज्य स्थापित किया। वह चक्रवर्ती सम्राट थे। बहुत से लोग मानते हैं कि उन्हीं चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है।

इन्हीं सम्राट भरत का वंशज था हस्तिन नाम का राजा। हस्तिन ने खाण्डवप्रस्थ से कुछ दूर पर हस्तिनापुर नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। आगे चलकर राजा हस्तिन के वंश में कुरु नामके एक राजा हुए जिनके वंशज कौरव कहलाये। पहले दिल्ली को हस्तिनापुर ही कहते थे।

भगवान राम के भाई-भरत

    भगवान राम अयोध्या के राजा थे। उनके भाई और महारानी कैकयी के पुत्र भरत थे। इन्हीं भरत के लिए कैकयी ने राजा दशरथ सेअयोध्या का राज्य मांगा था और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास। पर भरत बड़े महान् और त्यागी थे। उन्होंने राज सिंहासन पर न बैठकर बड़े भाई राम की खड़ाऊ को राज सिंहासन पर रख कर बनवासी बन कर अयोध्या का राज काज चलाया था। पर राम के भाई भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा इसके कोई प्रमाण नहीं मिलते।

नाट्य शास्त्र के रचयिता-भरत

   हमारे इतिहास में एक भरत का और उल्लेख मिलता है। वह हैं भरत मुनि। भरत मुनि नाट्य-शास्त्र के जन्मदाता है। भारतीय नाटको और नाट्य शालाओं के नियम मानदण्ड भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में दिये हैं। भरत मुनि को विश्व का पहला नाट्य शास्त्री माना जाता है। भरत मुनि को शिव का अवतार भी कहा जाता है। भगवान शिव राग रागिनी भाषा व्याकरण, नृत्य, नाट्यशास्त्र के जन्मदाता माने जाते हैं।भरत मुनि ने भी नृत्य की एक शैली बनाई। वह नृत्य भरत नाट्यम् के नाम से जाना जाता है।

अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि भारतवर्ष का नाम भरत कबीले के नाम पर पड़ा अथवा ऋषभदेव के पुत्र सम्राट भरत या फिर दुष्यंत शकुंतला के पुत्र सम्राट भरत के नाम पर! सिंधु और कावेरी अति प्राचीन नदियां हैं मानव सभ्यता इन्हीं नदियों के किनारे विकसित हुई है समृद्ध हुई है। गंगा यमुना नदियां तो बहुत बाद में भारत में आईं। अभी पूर्ण रूप से सिंधु घाटी सभ्यता की ही खोज नहीं हो पाई है तो गांगेय घाटी, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा घाटी के किनारे विकसित मानव सभ्यता की खोज कौन करेगा?

- शिवचरण चौहान

मनेथू, सरवन खेड़ा उप डाकघर
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