गद्यकार महादेवी वर्मा की रचना में नारी समस्या

Dr. Mulla Adam Ali
0

Mahadevi Verma

Mahadevi Verma

गद्यकार महादेवी वर्मा की रचना में नारी समस्या

सुमित्रानन्दन पन्त अपनी पुस्तक "छायावाद पुर्नमूल्यांकन' में लिखते हैं, "महादेवी जी ही छायावादियों में वह चिरन्तन भाव-यौवना कवयित्री हैं जिन्होंने नये युग के परिप्रेक्ष्य में राग-तत्व के गूढ़ संवेदन तथा राग-मूल्य को अधिक मर्मस्पर्शी, गम्भीर, अन्तर्मुखी, तीव्र संवेदनात्मक अभिव्यक्ति दी है, जिसका कारण स्पष्टतः उनकी नारी व्यक्तित्व है"।¹

महादेवी वर्मा छायावादी कवयित्री हैं। गद्य और पद्य दोनों क्षेत्रों में महादेवी को विशिष्टता प्राप्त है। गद्यात्मक रचनाओं में उनके उदार, भावुक, करुणा कुलित हृदय का भी परिचय मिल जाता है। गद्य में जैसा शब्द चित्र इनके निबंधों में है, वैसा अन्यत्र विरले मिलते हैं। इनकी गद्य रचनाएँ हैं-अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, श्रृंखला की कड़ियाँ, क्षणदा, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध आदि। इन गद्य ग्रंथों में पीड़ित, दलित, उपेक्षित तथा अभावग्रस्त मानवता के प्रति यथार्थ तथा व्यावहारिक किन्तु कर्मठ आदर्शवादी रुप में साकार हुई हैं। उनके जीवन-दर्शन का अध्ययन नारी-समस्या के शीर्षक के अन्तर्गत किया जा सकता है।

युग-युग से नर के अत्याचार से पीड़ित नारी के प्रति आधुनिक कवियों का दृष्टिकोण सहानुभूतिपूर्ण और मानवता- वादी रहा है। महादेवी वर्मा जी के नारी विषयक दृष्टिकोण में अधिक संवेदनाशीलता है। आधुनिक भारत की एक श्रेष्ठ नारी होने के साथ ही ये पुरुष के सभी प्रकार के अत्याचारों से पीड़ित नारियों की सहायिका रही है और नारी-जीवन की समस्याओं से इस प्रकार उनका प्रत्यक्ष परिचय हुआ है। डॉ. रामधारी सिंह दिनकर जी ने उनके व्यक्तित्व के बारे में लिखा है, "उनके व्यक्तित्व के दो पक्ष हैं, एक वह जो हमारे सामने पड़ता है और जहाँ वे हँसती और किलकारती हैं। और दूसरा वह जो बहुत आन्तरिक है, जहाँ उनका हृदय अशोक वासिनी सीता के समान कैद है। मैंने इस दरवाजे पर दस्तक तो दी है, मगर उसे खुलते नहीं देखा है।''² अपने इस भावना चेतना व्यक्तित्व के कारण ही वे राजनीति और भौतिक सम्पन्नता में एक सीमा तक ही सफल हो सकी हैं।

कवि, विचारक, और सुधारकों का नारी-सम्बन्धी दृष्टिकोण उदार मानवतावादी और सहानुभूतिपूर्ण होने पर भी भारतीय समाज के व्यावाहारिक जीवन में कोई अन्तर नहीं दिखाई देता। “पुरानी दूषित समाज-व्यवस्था के नियम अब भी प्रचलित हैं और व्यवहार में आज भी नारी को पुरुष मनोरंजन की ही वस्तु मानकर चलता है।"³ आज की नारी जैसे पहले अपने अधिकार की शक्ति और करुणा के सम्बल से वंचित थी वैसी ही आज अब भी है। महादेवी के ही शब्दों में कहें तो, "इस समय तो भारतीय पुरुष जैसे अपने मनोरंजन के लिये रंगबिरंगे पक्षी पाल लेता है, उपयोग के लिये गाय या घोडा पाल लेता है, उसी प्रकार यह एक स्त्री को भी पालता है तथा अपने पालित पशु- पक्षियों के समान ही यह उसके शरीर और मन पर अपना अधिकार समझता है। हमारे समाज के पुरुष के विवेकहीन जीवन का सजीव चित्र देखना हो तो विवाह के समय गुलाब- सी खिली हुई स्वस्थ बालिका को पाँच वर्ष बाद देखिये। उस समय उस असमय प्रौढ़ हुई दुर्बल सन्तानों की रोगिणी पीली माता में कौन सी विवशता, कौन सी रुला देने वाली करुणा न मिले।⁴

पिता और पति कमी सम्पत्ति में नारी का कोई अधिकार नहीं स्वीकार किया जाता है। कानून भी इस सम्बन्ध में नारी की कोई विशेष सहायता नहीं करता। इस प्रकार महादेवी जी का निष्कर्ष है कि जिस प्रकार समाज नारी की उपेक्षा करता है उसी प्रकार सरकार भी उसके प्रति उदासीन रहती है। "कानून हमारे स्वत्वों की रक्षा का कारण न बनकर चीनियों के काठ के जूते की तरह हमारे ही जीवन के आवश्यक तथा जन्म-सिद्ध अधिकारों को संकुचित बनाता जा रहा है। सम्पत्ति के स्वामित्व से वंचित असंख्य स्त्रियों के सुनहले भविष्यमय जीवन कीटाणुओं से भी तुच्छ माने जाते देख कौन सहृदय रो न देगा ? चरम दुरवस्था के सजीव निदर्शन हमारे यहाँ के सम्पन्न पुरुषों की विधवाओं और पैतृक धन के रहते हुये भी दरिद्र पुत्रियों के जीवन हैं। स्त्री पुरुष के वैभव की प्रदर्शिनी मात्र समझी जाती है और बालक के न रहने पर जैसे उसके खिलौने निर्दिष्ट स्थानों से उठाकर फेंक दिये जाते हैं उसी प्रकार एक पुरुष के न होने पर न स्त्री के जीवन का कोई उपयोग ही रह जाता है, न समाज या गृह में उसको कहीं निश्चित स्थान ही मिल सकता है। जब जला सकते थे तब इच्छा या अनिच्छा से जीवित ही भस्म करके स्वर्ग में पति के विनोदार्थ भेज देते थे, परन्तु अब उसे मृत पति का ऐसा जीवित स्मारक बन कर जीना पड़ता है जिसके सम्मुख श्रद्धा से नत मस्तक होना तो दूर रहा, कोई उसे मलिन करने की इच्छा भी रोकना नहीं चाहता।"⁵ यद्यपि स्वतन्तत्रता प्राप्ति के बाद देश की सरकार ने इस प्रकार के कानून बनाये हैं जिनके अनुसार नारी अपने पिता और पति दोनों की सम्पत्ति प्राप्त करने की अधिकारिणी घोषित की गई है, किन्तु व्यवहार में वैसा कुछ भी नहीं है।

नारी जीवन की समस्त समस्याओं पर महादेवीजी ने विचार किया है। वेश्या और सद्यप्रसूता विधवा यह नारी के दो ऐसे रूप हैं जो सर्वदा तिरस्कृत और कलंकित माने जाते रहे हैं। वेश्या जीवन पर विचार करते हुये महादेवी ने लिखा है- "यदि स्त्री की ओर से देखा जाये तो निश्चय ही देखने वाला काँप उठेगा। उसके हृदय में प्यास है, परन्तु उसे भाग्य ने मृगमरीचिका में निर्वासित कर दिया है। उसे जीवन भर आदि से अन्त तक सौन्दर्य की हाट लगानी पड़ी, अपने हृदय की समस्त कोमल भावनाओं को कुचलकर आत्म-समर्पण की सारी इच्छाओं का गला घोंटकर रूप का क्रय-विक्रय करना पड़ा और परिणाम में उसके हाथ आया निराश हताश एकाकी अन्त । जीवन की एक विशेष अवस्था तक संसार उसे चाटुकारी से रहता है, झूठी प्रशंसा की मदिरा से उन्मत्त करता रहता है, उसके मुग्ध करता सौन्दर्य - दीप पर शलभ-सा मण्डराता रहता है, परन्तु उस मादकता के अन्त में, उस हाट के उतर जाने पर उसकी ओर कोई सहानुभूति भरे नेत्र भी नहीं उठाता। उस समय उसका तिरस्कृत स्त्रीत्व, लोलुपों के द्वारा प्रशंसित रुप वैभव का भग्नावशेष, क्या उसके हृदय को किसी प्रकार की सान्त्वना भी दे सकता है ? जिन परिस्थितियों ने -जीवन से उसका बहिष्कार किया, जिन गृह- व्यक्तियों ने उसके काले भविष्य को सुनहले स्वप्नों से ढाँका, जिन पुरुषों ने उसके नूपुरों की रुन-झुन के साथ अपने हृदय के स्वर मिलाये और जिस समाज ने उसे इस प्रकार हाट लगाने के लिये विवश तथा उत्साहित किया, वे क्या क्या कभी उसके एकाकी अन्त का भार कम करने लौट सके।"⁶

वेश्या नारी के प्रति यह सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण सभी का नहीं है। महादेवीजी वेश्याओं को सहानुभूति देकर ही अपनी इति कर्तव्यता नहीं मानतीं। उनका विचार है कि नारी के इस रूप के साथ न्याय संगत व्यवहार होना चाहिये। जिस पुरुष वर्ग अपनी उद्दाम वासना की तृप्ति के लिये वेश्या को जन्म दिया, वास्तव में वेश्या - जीवन के समस्त दोषों का उत्तरदायित्व पुरुष- वर्ग का ही है। किन्तु यही पुरुष समाज इतना कठोर और बर्बर हो गया है कि वेश्याओं को नागरिक अधिकारों से वंचित नहीं करता, प्रत्युत उनके हृदय मानने में भी उसे संकोच होता है और उनके करून जीवन को अपनी सहानुभूति देने में उसे हिचक होती है। महादेवीजी की मान्यता है कि नारी की आर्थिक पराधीनता ही वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहन देती है। अतः वेश्यावृत्ति के मूल में नारी की व्यक्तिगत दुर्बलता न होकर वह दोषपूर्ण समाज व्यवस्था है जिसमें नारी की आर्थिक पंगुता का विधान किया जाता है।

पुरुष की चिरन्तन वासना-ज्वाला में अपने जीवन की आहुति देने वाली वेश्या के बलिदानी जीवन का पुरुष को स्मारक बनाना चाहिये था, किन्तु पुरुष ने ऐसी कोई उदारता न दिखा कर वेश्या के प्रति कठोर और निन्दात्मक व्यवहार करने में ही अपनी शालीनता समझी है। पतित कही जानेवाली नारी प्रति पुरुष के अनुदार और अमानवीय व्यवहार से क्षुब्ध महादेवी वेश्या को सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार का पात्र मानती है।⁷

इसी प्रकार उन बाल विधवाओं और सामान्य विधवाओं की समस्या पर भी महादेवी ने विचार किया है जो छोटी-सी भूल के कारण सभी प्रकार की लांछनाओं का लक्ष्य बना दी जाती है: गर्भवती विधवा के गर्भ की अवैधता और अनैतिकता का दोष-दायित्व जितना विधवा की विवशता का होता है उससे कहीं अधिक दोष पुरुष की क्रूर वासना और अधिकार सबलता का होता है। किन्तु गर्भधारण करने की सूचना पाकर ही पुरुष बेचारी विधवा को अपनी पत्नी बनाने की प्रतिज्ञा भूल जाता है और गर्भ का समस्त दोष विधवा के सिर मढ़ दिया जाता है। ऐसी संकटपूर्ण स्थिति में या तो विधवा को भ्रूण- हत्या के पाप कृत्य का सहारा लेना पड़ता है या अपनी सन्तान को किसी अनाथालय की सीढ़ियों पर रख कर अपने हृदय पर पत्थर रखना पड़ता है।"⁸

एक सद्यः प्रसूता विधवा की सहायतार्थ जब महादेवीजी गईं और उसे देखकर उनके मन और मस्तिष्क में जो प्रतिक्रिया हुई, उसका चित्रण करते हुये महादेवी ने लिखा है "स्मरण नहीं आता वैसी करुणा मैंने कहीं और देखी है। खाट पर बिछी मैली दरी, सहस्त्रों सिकुड़न भरी मलिन चादर और तेल के कई धब्बे वाले तकिये के साथ मैंने जिस दयनीय मूर्ति से साक्षात् किया उसका ठीक चित्र दे सकना सम्भव नहीं है। वह 18 वर्ष से अधिक की नहीं जान पड़ती थी- दुर्बल और असहाय जैसी। सूखे ओठ वाले, साँवले पर रक्त हीनता से न जाने किस अज्ञात प्रेरणा से पीले मुख में आँखे ऐसे जल रही थी जैसे तेलहीन दीपक की बत्ती ।..... और तब जाने किस अज्ञात प्रेरणा से मेरे मन का निष्क्रिय विषाद क्रोध के सहस्त्र स्फुलिंगो में बदलने लगा।

अपने अकाल वैधव्य के लिये वह दोषी नहीं ठहराई जा सकती, उसे किसी ने धोखा दिया, इसका उत्तरदायित्व भी उस पर नहीं रखा जा सकता, पर उसकी आत्मा का जो अंश, हृदय का जो खण्ड उसके समान हैं, उसके जीवन-मरण के लिये केवल वही उत्तरदायी है। कोई पुरुष यदि उसको अपनी पत्नी नहीं स्वीकार करता तो केवल इस मिथ्या के आधार पर वह अपने जीवन के इस सत्य को, अपने बालक को अस्वीकार कर देगी? संसार में चाहे उसको कोई परिचयात्मक विशेषण न मिला हो, परन्तु अपने बालक के निकट तो यह गरिमामयी जननी की संज्ञा ही पाती रहेगी ? इसी कर्तव्य को अस्वीकार करने का यह प्रबन्ध कर रही है। किसलिए ? केवल इसलिए कि या तो उस वंचक समाज में फिर लौट कर गंगा स्नान कर, व्रत उपवास, पूजा पाठ आदि के द्वारा सती विधवा स्वाँग भरती हुई और भूलों की सुविधा पर सके या किसी विधवा आश्रम में पशु समान नीलाम पर चढ़ कर कभी नीची, कभी ऊँची बोली पर बिके। अन्यथा एक- एक बूंद विष पीकर धीरे-धीरे प्राण दे।"⁹

पुरुष-शासित समाज में नारी को अपनी दयनीय स्थिति से मुक्ति पाने के लिये विद्रोह करना होगा। महादेवी जी का विश्वास है कि यदि नारी रणचण्डी का रूप धारण ले तो उसके जीवन की सारी समस्यों अबिलम्ब सुलझ सकती हैं अवैध सन्तानों की माताओं को उन्होंने ऐसा ही सन्देश दिया है "यदि यह स्त्रियाँ अपने शिशु को गोद में लेकर साहस से कह सकें कि 'बर्बर, तुमने हमारा नारीत्व-पत्नीत्व सब ले लिया, पर हम अपना मातृत्व किसी प्रकार न देंगी' तो इनकी समस्याएं तुरन्त सुलझ जावें। जो समाज इन्हें विरता, साहस और त्याग भरे मातृत्व का साथ नहीं स्वीकार कर सकता, क्या वह इनकी कायरता और दैन्य भरी मूर्ति को ऊँचे सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर पूजेगा ? युगों से पुरुष स्त्री को अपनी शक्ति के लिए नहीं- सहनशक्ति के लिए ही दण्ड देता आ रहा है।"¹⁰

पुरुष की वासना, अधिकार लोलुपता और प्रवंचनाओं से पीड़ित नारी के जीवन के समस्याओं पर दृष्टिपात करते समय महादेवी ने पुरुष की नारी के प्रति संकुचित और स्वार्थमय प्रवृत्ति की पर्याप्त भर्त्सना की है और नारी की आर्थिक स्वाधीनता, समान अधिकार आदि की स्वीकृति उसकी जीवन-प्रगति के लिये आवश्यक मानी है। नारी के सम्बन्ध में महादेवी का दृष्टिकोण प्रगतिशील है और नारी के यथार्थ जीवन पर आधारित है।

संदर्भ;

1. छायावाद पुनर्मुल्यांकन, सुमित्रा नन्दन पन्त, पृष्ठ 85

2. महादेवी संस्मरण ग्रंथ (जीवन का एक पक्ष), डॉ. रामधारी सिंह दिनकर, पृष्ठ 83

3. आधुनिक कवियों का जीवन दर्शन, डॉ. परशुराम शुक्ल 'विरही', पृष्ठ 131

4. श्रृंखला की कड़ियाँ, महादेवी वर्मा, पृष्ठ 102

5. श्रृंखला की कड़ियाँ, महादेवी वर्मा, पृष्ठ 16-17

6. श्रृंखला की कड़ियाँ, महादेवी वर्मा, पृष्ठ 111-112

7. श्रृंखला की कड़ियाँ, महादेवी वर्मा, पृष्ठ 113-114

8. आधुनिक कवियों का जीवन दर्शन, डॉ. परशुराम शुक्ल 'विरही', पृष्ठ 136

9. अतीत के चलचित्र (चतुर्थ संस्करण), महादेवी वर्मा, पृष्ठ 65-66

10. अतीत के चलचित्र (चतुर्थ संस्करण), महादेवी वर्मा, पृष्ठ 65

- शिवाजी रामकिशन सांगोळे

ये भी पढ़ें; Mahadevi Verma: आधुनिक युग की मीरा महादेवी वर्मा - जीवन परिचय और प्रमुख रचनाएं

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top