Poem about Delivery Boy : डिलीवरी बॉय पर कविता - रितु वर्मा

Dr. Mulla Adam Ali
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Poem about Delivery Boy : Delivery Boy Ka Jeevan Kavita by Ritu Verma

Poem about Delivery Boy in Hindi

डिलीवरी बॉय पर कविता : Zomato, Swiggy, Flipkart, Amazon आदि पर हम ऑर्डर देने पर हमारे लिए खाना हो या वस्तुएं समय पर पहुंचाता है डिलीवरी बॉय (Delivery Boy)। कुछ लोग उनका सम्मान करते हैं तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उनसे बुरा बर्ताव करते हैं। दिन हो या रात, बारिश हो या धूप, भीड़ में ट्रैफिक की समस्या से जूझते हुए समय पर हमारे लिए खाना पहुंचाता है लेकिन उसके लिए अपना समय नहीं रहता, यहां तक कि खाना खाने के लिए भी समय नहीं मिलता। इस तरह की कठोर परिस्थितियों में ग्राहक का बुरा व्यवहार भी उन्हें तनाव बढ़ा देता है। बाइक पर खाना पहुंचाने वाले डिलीवरी बॉय की जीवन कितनी मुश्किल है इस पर बनी कपिल शर्मा की फिल्म ज्विगाटो पर देख सकते हैं। आज डिलीवरी बॉय को समर्पित है यह कविता जो हर स्थिति में ग्राहक की सेवा में तत्पर रहते हैं। डिलीवरी बॉय पर दिल छूने वाली कविता, हिंदी कविता डिलीवरी बॉय। Poems about Delivery Boy, Delivery Boy Ka Jeevan Poem in Hindi, Apka Apna Delivery Wala Kavita in Hindi...

Poem about Delivery Boy in Hindi

डिलीवरी बॉय


वह डिलीवरी बॉय!

न दिन देखता न रात देखता।

वो हमारे एक ऑर्डर पर ही 

हर जरुरत की चीजों को 

हम तक पहुंचा जाता है। 

न गर्मी कि धूप देखता 

न जाड़े की ठंड देखता 

न बारिश की बूँद न कुहासे की धुंध देखता।

बस जब देखों हमारी आदेशों को पूरी करने में वो हर पल 

लगा रहता है। 

वह डिलीवरी बॉय!

कभी समय पर आता तो कभी 

देर से आता है..

पर हमारे जरुरतों को निश्चित समय में  

हम तक पहुंचा दे...

 इन जिम्मेदारियों में लगा रहता है। 

हम न उसका आना देखते 

न उसका जाना देखते है ...

बस हम अपनी चीजों का होना देखते हैं। 

हम कभी ये सोचते तक नहीं कि 

हम तक पहुंचने कि दूरी तय करने में  

वो अपनी गरीबी,परेशानियों और भीड़-भाड़ से लड़कर वह 

हम तक पहुंचते है। 

जबकि हैरान परेशान तो 

वो भी रहते है,

जब समय से चीजों को वो हम तक

नहीं पहुंचा पाते है। 

जरा सी देर क्या होती 

हम एक सेकंड भी नहीं लगाते उन पर जोरों कि चिल्ला देने में...

पर कभी उन्हें भी अपने तरह इंसान समझकर तो देखना....

तो समझ आए कि कितना 

मुश्किलों भरा ये काम होता हैं। 

मुझे आज भी वो पल याद रहती है जब मैं उस पल में मानों एकदम से स्तब्ध सी हो गई थी।

जब देखा एक दिन शरीर से असमर्थ 

एक डिलीवरी बॉय को ....

जिसकी हाथ और पैर दोनों ही टेढ़े

 हो गए थे फिर भी वो खुशी से 

अपना काम को किए जा रहा था। 

मैं उसकी विवशता पर दुःखी हो रहीं थीं और वो हर किसी के द्वार जाकर 

चीजों को पहुंचाये जा रहा था। 

वो डिलीवरी बॉय....

लोगों कि बेहिसाब कड़वी बातें सुनकर भी हल्की मुस्कान लिए 

चीजों को सबको दिए जा रहा था..

वो डिलीवरी बॉय!

- रितु वर्मा

न्यू दिल्ली

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