मेहरुन्निसा परवेज : व्यक्तिवादी चेतना की लेखिका

Dr. Mulla Adam Ali
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Mehrunnisa Parvez Biography in Hindi

Mehrunnisa Parvez Biography in Hindi

मेहरुन्निसा परवेज : व्यक्तिवादी चेतना की लेखिका

हिन्दी के व्यक्तिवादी चेतना के लेखकों में मेहरुन्निसा परवेज़ का स्थान महत्वपूर्ण है। व्यक्तिवादी उपन्यासकार अपनी संवेदना, आक्रोश अपने पात्रों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। मेहरुन्निसा परवेज़ भी इसी कोटि की लेखिका है। इनकी क़लम से अनेक कहानियाँ एवं उपन्यास निकले है। इनमें भी इनके सात उपन्यास, 14 कहानी संग्रहों में व्यक्तिवादी चेतना अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ। मुख्यतः इनके उपन्यास "आँखों की दहलीज" तथा "कोरजा" में मानवीय संवेदना तथा व्यक्तिवादी चेतना का चित्रण अत्यंत मार्मिकता से हुआ है। "आँखों की दहलीज" उनका पहला उपन्यास है। उसमें लेखिका ने मानवीय संवेदना को तथा बदलते परिवेश में नारी की मनोभावनाओं का चित्रण किया है। मेहरुन्निसा परवेज़ जी की सभी कृतियाँ नारी केंद्रित है। परवेज़ जी की कहानियों में मुस्लिम मध्यवर्गीय जीवन का चित्रण प्रभावोत्पादक ढंग से अभिव्यक्त हुआ है। नारी प्रधान लेखिका कहे जानेवाली मेहरुन्निसा परवेज़ जी बस्तर के लोगों की आदिवासी जीवन की समस्याओं तथा नारी की वेदना को चित्रित करने में सिद्ध-हस्त मानी जाती है। वे आज भी "समरलोक" पत्रिका का संपादन बहुत ही अच्छे ढंग से निभा रही है। वर्ष 1980 में "कोरजा" पर मध्य प्रदेश सरकार का "अखिल भारतीय महाराजा वीरसिंह जूदेव" राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया है। वर्ष 1995 में 'ढहता कुतुब मीनार' कहानी संग्रह पर "सुभद्रा कुमारी चौहान" इन्हें पुरस्कार मिला।

व्यक्तिवादी चेतना की प्रवृत्तियाँ हैं - अहं की भावना, व्यक्ति रूप नारी की समस्याएँ, अकेलेपन की भावना, पूराने नैतिक मूल्यों का विरोध, निराशावादी दृष्टिकोण। ये सभी प्रवृत्तियाँ मेहरुन्निसा परवेज़जी के कथा-साहित्य में दिखाई देती है। उनके उपन्यास और कहानी संग्रहों में अहं का परिचय मिलता है। मेहरुन्निसा परवेज़ जी का पहला उपन्यास "आँखों की दहलीज" सन् 1969 में प्रकाशित हुआ। व्यक्तिरूप नारी की समस्याओं के लिए इस उपन्यास की नायिका तालिया एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। तालिया का पति शमीम है। तालिया के जरिए लेखिका ने नारी जीवन की उत्पीडना एवं विवशता का चित्रण प्रस्तुत किया है। पति और प्रेमी के बीच झुलसती हुई वह अनजान राहों की तलाश में चली जाती है। तालिया माँ नहीं बन सकती इस कारण तालिया की माँ खुद अपनी बेटी को माँ बनाने के उद्देश्य से जावेद से संबंध स्थापित करने के लिए बाध्य करती है। तालिया की माँ के जरिए लेखिका ने बदलते परिवेश में नारी की मनःस्थिति को प्रकट करने वाली घटना के रूप में साबित किया। नारी के मनोभावों का चित्रण प्रस्तुत किया हैं। यहाँ स्त्री की मानवीय संवेदना को प्रकट करने का प्रयास लेखिका ने किया है। तालिया अकेलेपन की भावना से पीड़ित है।

मेहरुन्निसा परवेज़ जी का एक और सर्वश्रेष्ठ एवं पुरस्कृत उपन्यास है - "कोरजा"। 'कोरजा' का अर्थ इस उपन्यास में प्रतीक के रूप में रखा गया। यहाँ इसका अर्थ उस अनाज से हैं, जो खेत के कट जाने के बाद जिसे गरीब लोग चुन-चुन कर ले जाते हैं। इस उपन्यास में लेखिका 'नसीमा' पात्र के जरिए पूरानी यादों को, बीती स्मृतियों को अपने अतीत से बटोर लेती है। इस वजह से इस उपन्यास का नाम 'कोरजा' रखा गया। इसमें लेखिका ने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार का चित्रण किया है। अकेलेपन की भावना के लिए "कोरजा" में मोना दीदी एक प्रत्यक्ष साक्षी है। वह अपने जीवन के अकेलेपन को झेलती ही रही। जब विवाह करने योग्य थी तब कुछ कारणवश नहीं कर पायी। बचपन से ही अकेलेपन के एहसास से वह अंतर्मुखी हो जाती है और महसूस करती है कि अकेलापन एक शाप है। इस उपन्यास में लेखिका ने नारी की विभिन्न समस्याओं को प्रस्तुत किया है। इसमें आदिवासी बस्तर का सजीव चित्रण मिलता है। लेखिका ने इस उपन्यास में दर्शाया है कि पति-पत्नी के बीच का तनाव ही प्रेम में अवरोध बन जाता है। दूसरा अवरोध नपुसंकता है। गरीबी भी एक ऐसा अभिशाप है जहाँ गरीब जनता अपनी आजीविका के लिए अपने आपको दूसरों के हवाले करते हुए प्रकटित होती हैं। लेखिका ने इस उपन्यास में ऐसे पात्रों का चित्रण किया है, जो अपने अभावग्रस्त जीवन से प्रभावित होकर, मजबूरन दूसरों के सामने झुकने के लिए विवश हो जाते हैं। सामाजिक स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में मानवीय संबंधों को संवदेनापरक चित्रण अत्यंत करुणात्मक ढंग से इस उपन्यास में व्यक्त हुआ है। इस प्रकार मानवीय संवेदना को अपने पात्रों के जरिए चित्रित करने में मेहरुन्निसा परवेज़ जी का स्थान अद्वितीय रहा है। उन्होंने सभी कृतियों में नारी की स्थिति को प्रधान रूप से चित्रित किया है। नारी की कोई भी ऐसी समस्या छूटी नहीं है, जिसका विश्लेषण उन्होंने नहीं किया हो। इस संदर्भ में "नारी के बदलते चरित्र और बदलती तस्वीर को उभारने के कारण मेहरुन्निसा परवेज़ जी की कहानियाँ आकर्षक लगती हैं।" यह के.ए. मालती जी का कथन है।

मेहरुन्निसा परवेज़ जी ने अपनी कृतियों में सांप्रदायिक पद्धतियों, रुढ़िगत पुरातन मूल्यों को और अंधविश्वासों को बडी ही कट्टरता के साथ विरोध किया। इसे वे 'कोरजा' में कम्मो एवं अमित के द्वारा दिखाया है। जहाँ कम्मो मुस्लमान लडकी है और अमित हिन्दू हैं फिर भी यह बात दीवार बन सकी। अमित नपुंसक होने के कारण वह वैवाहिक जीवन को स्वीकार नहीं कर पाता है। अंत में कॉलरा की बीमारी एवं आंतरिक जीवन की त्रासदी जो नपुंसक है, इन कारणों से वह मर जाता है, और कम्मों भी आत्महत्या कर लेती है। यहाँ जीवन के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण को लेखिका ने अवश्य दिखाया है। फिर भी लेखिका ने समाज परक दृष्टिकोण के आधार पर पात्रों के मानसिक अभीव्यक्ति को प्रकट करने का प्रयास किया है। इस तरह उन्होंने सांप्रदायिक अंधविश्वासों को तोडा है। व्यक्तिवादी चेतना की प्रमुख प्रवृत्ति निराशावादी दृष्टिकोण मानी जाती है। 'कोरजा' में एहसान भाई जब निराश होकर अपने पारिवारिक मजबूरियों से विचलित होकर प्यार करने के बावजूद रब्बो को छोड़ देते हैं और रब्बो की शादी अधेड़ उम्रवाले आदमी से हो जाती है, तो एहसान भाई निराशग्रस्त हो जाते है। इससे हम निस्संदेह कह सकते है कि मेहरुन्निसा परवेज़ जी एक व्यक्तिवादी चेतना की प्रमुख लेखिका है।

मेहरुन्निसा परवेज़ की जीवन दृष्टि ही व्यक्तिवादी रही है। उन्हें व्यक्तिवादी चेतना की प्रमुख लेखिका मान सकते हैं क्योंकि नारी ही नारी को समझ सकती है। उन्होंने नारी की पीडा, संवेदना और हर समस्या को बडे ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया है। सदियों से नारी उसी वेदना भरी जिन्दगी को जी रही है। नारी बाहर निकल कर नौकरी करने लगती है। मगर वह अपने व्यक्तित्व को घर और बाहर संभालते-संभालते थक जाती है पर उसे कहीं भी सहयोग और प्यार नहीं मिलता। नारी इस तरह हर जगह अपने अधिकारों को पाने के लिए संघर्षरत है। "आँखों की दहलीज" में तालिया के जरिए 'कोरजा' में नसीमा के द्वारा, उसका घर में एलमा और रेशमा के द्वारा 'अकेला पलाश' में तहमीना, 'पत्थर वाली गली' में जेबा, पासम, पाही कृतियों में पात्रों के द्वारा लेखिका की व्यक्तिवादी चेतना निखर उठी है। लेखिका के द्वारा रचित सभी कृतियों में समाज एवं पात्रों के प्रति उनकी संवेदनात्मक विचारों के कारण आज महिला उपन्यासकारों में उनका एक विशिष्ट स्थान है। यह बात साहित्य जगत में उन्हें प्राप्त उनके पुरस्कारों द्वारा जाना जस सकता है। मेहरुन्निसा परवेज़ जी "साहित्य भूषण" सम्मान, "भारत भाषा सम्मान से अंलकृत है।

- एस. बेनज़ीर

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