समकालीन कहानियों में विवाह और तलाक की समस्या

Dr. Mulla Adam Ali
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Problems of marriage and divorce in contemporary stories

Problems of marriage and divorce in contemporary stories

समकालीन कहानियों में विवाह और तलाक की समस्या

समकालीन कहानी : "समकालीन शब्द एक कालवाचक संज्ञा है, जो प्रत्यय है। विश्वम्भरनाथ उपाध्याय के विचारानुसार-'समकालीन, शब्द यह बताता है कि काल के इस प्रचलित खंड या प्रवाह में मनुष्य की स्थिति क्या है, इसे उलटकर कहें तो कह सकते हैं कि मनुष्य की वास्तविक स्थिति को देखकर उसे अंकित या चित्रित करके ही हम समकालीनता की अवधारणा को समझ सकते हैं।"1 समकालीन रचना दृष्टि समता, स्वतंत्रता और मानव गरिमा को लेकर चली हैं। वह शोषण का विरोध करती है। शोषित व्यक्ति के संघर्ष का चित्र प्रस्तुत कर रही है। समकालीन साहित्य एक अराजकता का अनुभव कर रहा है जिसमें नई संस्कृति-दृष्टि विकसित करनी पड़ी हैं।

समकालीन कहानी में स्त्री और पुरुष के सम्बन्ध में आधुनिक संस्कृति की छाप दिखाई देती है। समकालीन दौर में मानव एक ओर आधुनिक सुख- सुविधाओं के बीच जी रहा है और दूसरी ओर उपभोक्ता समाज के बीच वस्तु की तरह बिक रहा हैं। स्त्री-पुरुष के जीवन में विवाह और तलाक जैसी स्थितियाँ आ जाती हैं। विवाहित स्त्री-पुरुष की अपनी ऊब, तनाव और विवशता के कारण विवाह का यह बंधन टूट जाता है और तलाक की स्थिति में परिवर्तित हो जाती है।

समकालीन हिंदी कहानी : स्त्री-पुरुष संबंधो के संदर्भों में विवाह और तलाक की समस्या : आधुनिक हिंदी कहानी में स्त्री-पुरुष संबंधों के विविध स्तरों को अत्यंत सूक्ष्मता और प्रमाणिकता से सशक्त अभिव्यक्ति मिली हैं। स्त्री-पुरुष संबंधों पर नयी कहानी के समय से ही बहुत अच्छी कहानियाँ लिखी जाने लगी थी। स्त्री- पुरुष संबंधों के विविध स्तरों को उद्घाटित करने में आज कथाकार जिस रूप में प्रवृत्त हो सका है, उसका कारण हमारा परिवर्तित सामाजिक परिवेश है। आज शिक्षा के अधिकाधिक प्रसार से स्त्री और पुरुष सामाजिक रूप में एक-दूसरे के बहुत निकट आ रहें हैं। इस परिवर्तित सामाजिक परिवेश का परिणाम यह हुआ कि स्त्री-पुरुष संबंधों के सूक्ष्म से सूक्ष्म स्तर, नयी से नयी अनुछुई अनुभूतियाँ और मानव मन की पर्तों की गहराई को अपने कहानी में दर्शाया है।

सदियों से स्त्री को उपेक्षित किया जा रहा है। उसे किसी भी प्रकार के समान अधिकार नहीं दिये जाते थे। आधुनिक युग में स्त्री शिक्षा और शिक्षा के आधार पर प्राप्त नौकरियों ने आज स्त्री को एक आत्मविश्वास, आर्थिक सुरक्षा और आर्थिक सक्षमता प्रदान कर उसे यह अनुभव दिया है कि वह किसी भी प्रकार से पुरुष से हीन नहीं हैं।

पुरुष कथाकारों में रमेश बक्षी, जगदीश चतुर्वेदी, सुरेन्द्र चोपड़ा, माहेश्वर, पृथ्वीराज मौंगा आदि की कहानियों में विवाह सम्बन्धी नयी सोच विशेषतः रूपायित हुई है।

1. जैनेन्द्र : पहले कहानीकार है, जिन्होंने हिंदी कहानी को एक नवीन मोड़ प्रदान किया है। जैनेन्द्र अपनी कहानियों में आधुनिक परिस्थितियों से उत्पन्न पारिवारिक समस्याओं को लेकर चले हैं।

"पत्नी" शीर्षक कहानी एक ऐसे दम्पत्ति की कहानी है जिसमें पत्नी अपने पति से बहुत प्रेम करती है पर उसके पति को उससे बात करने के लिए समय नही रहता है, वह भी अपने पति के साथ देश प्रेम से सम्बंधित कार्यों में सहयोग देना चाहती है, परन्तु उसका पति उसे केवल एक चारदीवारी में रहने वाली स्त्री के अलावा कुछ नहीं समझता है। कहानीकार पत्नी के स्वतंत्र विचारों का चित्रण करके अंत में उसे पति परायणता का रूप देकर आदर्शवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। पत्नी पूर्ण पति- समर्पिता है।

"पाजेब" कहानी पारिवारिक सम्बंधों के साथ ही बाल मनोविज्ञान पर आधारित एक कहानी है जिसमें पति-पत्नी सम्बंधों को स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। जैनेन्द्र ने नैतिक मूल्यों के संघर्ष के माध्यम से नैतिकता का चित्रण किया है।

2. इलाचन्द्र जोशी : कहानीकार मनोवैज्ञानिक कहानियों के प्रणेता है इनकी अधिकांश कहानियों में पुरुष पात्र अभिमानी दुराचारी और बेकार रूप में चित्रित है। कहानीकार ने अपनी कहानियों में पति-पत्नी सम्बन्ध का नवीन परिस्थितियों तथा नवीन सामाजिक परिवेश में चित्रण किया है।

"एक शराबी की आत्मकथा" में दो दम्पत्तियों का पारिवारिक जीवन चित्रित हुआ है।

"चौथे विवाह की पत्नी" में रामेश्वरी और दीक्षित का दाम्पत्य जीवन भी बहुत दूर नहीं निभ पाता, क्योंकि दीक्षित का तो यह अरमान था कि विवाह करके सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर ले। रामेश्वरी बूढ़ा पति पाकर खुश नहीं रह पाती है। दोनों का वैवाहिक जीवन ज्यादा दिन टिक नही पाता है, कहानी के अंत में दीक्षित की मृत्यु हो जाती है। इस कहानी के माध्यम से जोशी जी ने भारतीय नारी की संघर्षमयी परिस्थितियों का उद्घाटन किया हैं।

3. यशपाल : हिंदी कहानी साहित्य के उन लेखकों में सर्वप्रथम हैं जिन्होंने विशेष जीवन-दर्शन को प्रतिपादित करने के लिए कहानियाँ लिखीं। यशपाल के सम्पूर्ण लेखन में मार्क्सवादी चिंतन है। पति-पत्नी संबंधो में पड़ती दरार का खुला चित्रण इन्होंने किया है। हिन्दू जीवन और परम्परा में विवाह धार्मिक और सामाजिक जीवन की पवित्रता के लिए संस्कार के रूप में स्वीकार किया गया है।

प्रेमचंदोत्तर काल में अविवाहित स्त्री की प्रेम की समस्या उतनी गंभीर और विवादस्पद नहीं बनी थी। स्त्री के प्रेम का अधिकार स्वीकृत हो चुका था। कहानीकार यशपाल इसी रूप में विवाह को एक सामाजिक आवश्यकता मानते हैं।

"अपनी चीज" शीर्षक कहानी प्रेम के त्रिकोणात्मक रूप की व्याख्या करती है। इसी प्रकार उनकी कहानियाँ अस्सी बटा सौ, एक राज़, एम सिगरेट भी स्त्री पुरुष संबंधों पर लिखी गयी हैं। पति-पत्नी के शाश्वत सम्बन्ध को कहानीकार ने प्रस्तुत किया है।

4. अज्ञेय : मूल्यवादी विचारधारा दृष्टिकोण के श्रेष्ठ कहानीकार हैं। इनकी मध्यवर्गीय पति-पत्नी संबंधों को लेकर, लिखी कहानी 'रोज' काफी चर्चित रही है। टूटते हुए पारिवारिक सम्बन्ध, स्त्री का आर्थिक संघर्ष, स्त्री का प्राचीन भाव-भूमि से निकलकर नवीन भाव-भूमि में प्रवेश तथा पति-पत्नी के मध्य बदलता परिवेश हिंदी कहानी का आयाम है।

5. मोहन राकेश : जीवन के नए सन्दर्भ और कलात्मक अभिव्यक्ति के नए संदर्भों को प्रस्तुत करने में सिद्धस्थ हैं। स्त्री के प्रति लेखक की गहरी सहनुभूति है।

"सुहागिनी" तथा "एक और ज़िन्दगी" में आधुनिक जीवन में पति-पत्नी के संबंधों की नवीन समस्याएँ सूक्ष्मता से चित्रित हुई हैं।

"एक और ज़िन्दगी" स्त्री-पुरुष के वैवाहिक जीवन की समस्या से जूझने वाली एक सशक्त कहानी है प्रकाश और बीना पति-पत्नी रह चुके हैं, किन्तु नहीं पटने पर उनमें तलाक हो जाता है। प्रकाश फिर अपने एक मित्र की बहन निर्मला से शादी करता है। शादी के बाद प्रकाश निर्मला से ऊब जाता है और वह पहाड़पार चला जाता है, जहाँ वह बीना और अपने पुत्र पलाश को देखता है। बीना के साथ तलाक होने के बावजूद प्रकाश के मन में उसके प्रति एक राग है इस राग का सूत्र बनता है।

इसी तरह “नये-बादल" कहानी भी स्त्री-पुरुष के नये संबंधों की उजागर करती हुई पुरानी मानसिकता पर व्यंग है।

3. अमरकांत के नाम के बिना नयी कहानी की कोई चर्चा अधूरी ही मानी जाती है, इनकी कहानियाँ सिर्फ 'शिल्प', रंगीन वर्णन 'कला' की कलाबाजी के बल पर खड़ी नहीं होती अपितु उनका निर्माण जीवन्तता के बल पर होता है।

"ज़िन्दगी और जोंक", "देश के लोग", "मौत का नगर", "मित्र-मिलन" अमरकांत के कहानियों का संग्रह है।

4. धर्मवीर भारती : नयी पीढ़ी के उन सशक्त कहानीकारों में हैं, जिन्होंने निम्नमध्यवर्गीय एवं निम्नवर्गीय जीवन को लेकर आधुनिक कहानी को उसके वास्तविक अर्थ की गरिमा प्रदान की। जीवन के बदलते हुए रूपों को उन्होंने निकट से देखा-परखा है।

"गुलकी बन्नो" (1955) सामाजिक रुढ़ियों पर प्रहार करने वाली सशक्त कहानी है।

"बंद गली का आखरी मकान" कहानी स्त्री- पुरुष संबंधों में परिवर्तन की कहानी है।

5. कमलेश्वर ने मुख्यतः मध्यवर्गीय जीवन के यथार्थ को अपनी कहानियों में अभिव्यक्त करने की चेष्टा की है। कमलेश्वर प्रगतिशील कहानीकार है। हिंदी कहानी के नए आयाम हैं-टूटते हुए पारिवारिक सम्बन्ध, पति-पत्नी सम्बन्ध के बदलते स्वरुप, स्त्री का आर्थिक संघर्ष। वैयक्तिक प्रेम और विवाह सम्बन्धी दिशाओं का अन्वेषण तथा पति-पत्नी सम्बन्ध की अभिव्यक्ति कमलेश्वर की कहानी "राजा निरबंसिया" में सशक्त रूप में हुई है।

6. निर्मल वर्मा ने कहानियों में आज के रिक्त जीवन, आधुनिक टेंशन, अजनबीपन, विघटित होते इन्सान, निरपेक्ष प्रेम, सामाजिक जागरूकता, बेगानापन आदि का चित्रण किया हैं।

इसी प्रकार फणीश्वरनाथ रेणु', शिव प्रसाद सिंह, राजेंद्र यादव, विष्णु प्रभाकर, भीष्म साहनी की कहानियों का उल्लेख मिलता हैं।

विवाह संस्था पर माहेश्वर की 'बंद' कहानी में कई जानकारी प्राप्त होती है। इस कहानी में विवाह सम्बन्ध के दायरे को दर्शाया गया हैं। इस प्रकार इन सभी पुरुष कथाकारों ने विवाह-संस्था को किसी रोमानी दृष्टि से नहीं आंका अपितु उनकी दृष्टि पूरी तरह व्यवहारिक एवं वास्तविकता पर आधारित थी। प्रेम और विवाह संबंधों की दृष्टि महिला कथा-लेखन में लक्षित होती है। नयी कहानी के दौर में विवाह या दम्पत्यागत असंतोष, घुटन आदि का चित्रण प्राप्त होता है।

आधुनिक जीवन स्थितियाँ की एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि पति-पत्नी के बीच संबंधों में एक प्रकार का टूटन या अलगाव-सा है। दाम्पत्य जीवन में एक-दूसरे के प्रति निकटता लगभग दूर होते चले जा रहे है। आज विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और भावात्मक कारणों से पति-पत्नी सम्बन्ध अत्यंत तनावपूर्ण स्थितियों में हैं।

इन संबंधों की वास्तविकता को जितनी सूक्ष्मता और गहरायी से स्त्री-कथाकारों ने अपने लेखन में व्यक्त किया है उतनी सूक्ष्मता पुरुष कथाकारों में नहीं हैं। इसका कारण यही है कि पुरुष ने केवल अपनी दृष्टि से स्त्री की मनःस्थिति को पकड़ने की चेष्टा की है जबकि दाम्पत्य जीवन में स्त्री उस पीड़ा को अच्छी तरह समझ सकती हैं।

जब स्त्री घर में आर्थिक समृद्धि और भौतिक सुख-सुविधाओं के चरम रूप के साथ पति को संपूर्ण रूप में नहीं पाती है तो उसे अपना दाम्पत्य जीवन व्यर्थ लगता है। यह दाम्पत्य समबन्ध टूटने का एक कारण हो सकता हैं। इस प्रकार से समकालीन कहानी में दाम्पत्य संबंधों के अलगाव, संबंधों का टूटना, के विविध पक्षों का चित्रण किया गया हैं।

समकालीन कहानियों में 'तलाक' की समस्या : जब दाम्पत्य संबंधों में अलगाव की चरम परिणति में आकर यह सम्बन्ध टूट जाता है। पति-पत्नी संबंधों का यह अलगाव कभी-कभी कानूनी रूप ले लेता है, तो कभी बिना किसी कार्यवाही और औपचारिकता के बिना भी यह सम्बन्ध टूट जाता हैं। समकालीन कहानी में टूटे हुए दाम्पत्य की इन दोनों ही स्थितियों का सशक्त चित्रण प्राप्त होता है। इस कहानी में टूटे हुए दाम्पत्य संबंधों के चित्रण का एक बहुत रोचक और सशक्त पक्ष है: तलाक के बाद स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध और तलाक के बाद की मनःस्थिति, आत्मसंघर्ष।

आधुनिक युग में दाम्पत्य सम्बन्ध में टकराहट आम बात हो गयी है। अगर पति-पत्नी एक ही व्यवसाय में कार्य करते हैं तो उन्हें एक-दूसरे के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता हैं। कामकाजी स्त्री पुरुष-प्रधान समाज में अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं करती है। उषा प्रियंवदा की कहानी 'सम्बन्ध' के पूर्वाद्ध में उस लड़की की वेदना चित्रित हुई है जो परिवार को पालने और चलाने के लिए टूट जाती हैं।

स्त्री को तलाक लेकर या पाकर भी उसे जो सहना पड़ता है, उसकी भी अभिव्यक्ति लेखिकाओं ने अपने लेखन के माध्यम से बताने की चेष्टा की हैं। हिंदी कहानी में विजय चौहान की कहानी 'तलाक' स्त्री मन की एक अबूझ पहेली को सामने लाकर विचित्र स्त्री-मनोविज्ञान से परिचित कराती हैं।

निष्कर्षतः वर्तमान युग में स्त्री-पुरुष के पारस्परिक संबंधों में बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया। सामाजिक परिवेश के इस बदलते परिप्रेक्ष्य में स्त्री-पुरुष संबंधों में परिवर्तन आना सहज संभव ही है। यह परिवर्तन विवाह और विवाहेत्तर प्रेम-संबंधों दोनों में दिखाई देता हैं। विवाह और प्रेम की विविध समस्याएँ और स्थितियाँ समकालीन कहानीकारों ने चित्रित किया हैं।

पुरुष कथाकारों में निर्मल वर्मा, ज्ञानरंजन, महेंद्र भल्ला, जगदीश चतुर्वेदी, परेश, गिरिराज, माहेश्वर, रविन्द्र कालिया, गंगा प्रसाद विमल आदि ने और महिला कथाकारों में उषा प्रियंवदा, मन्नू भंडारी, ममता कालिया, शशि प्रभा शास्त्री, सुधा अरोड़ा, निरुपमा सेवती, मणिका मोहिनी, कृष्णा अग्निहोत्री, मृणाल पाण्डेय, सुनीता जैन, राजी सेठ, सूर्यबाला आदि ने स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर बहुत खूबसूरत कहानियों की रचना की हैं। महिला कथाकारों की कहानियाँ तो इस दृष्टि से विशेष ताजगी लिए हुए हैं।

अब तक कहानियों में स्त्री-जीवन को पुरुष की दृष्टि से ही देखते आये हैं किन्तु यहाँ पहली बार स्त्री ने स्त्री -मन के स्थितियाँ और समस्याओं को प्रस्तुत कर जीवन के सत्य को कहानी का सत्य बनाया। इन लेखिकाओं ने पुरुष और स्त्री के लिए आचरण के दोहरे प्रतिमानों को चुनौती देते हुए अपनी स्वतंत्र सत्ता की प्रस्थापना पर बल दिया। विवाह, प्रेम, कामकाजी स्त्रियों की स्थिति, घर बार की समस्याओं आदि पर बड़ी खुली और यथार्थ दृष्टि से विश्वास के साथ स्त्री-लेखिकाओं ने लिखा हैं।

संदर्भ ग्रंथ सूची :

1. समकालीन कहानी की भूमिका - विश्वम्भरनाथ उपाध्याय पृष्ठ सं. -2

2. समकालीन कहानी के रचनात्मक आशय -यदुनाथ सिंह

3. समकालीन कहानी युगबोध का संदर्भ -डॉ. पुष्पपाल सिंह

- राज्यलक्ष्मी

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