विश्व हिन्दी दिवस पर विशेष : विश्व भाषा के रूप में हिन्दी

Dr. Mulla Adam Ali
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World Hindi Day Special : Hindi Ka Vaishvik Paridrishya

Hindi Ka Vaishvik Paridrishya

विश्व भाषा के रूप में हिन्दी

भाषा किसी भी देश के अस्मिता की द्योतक होती है। यह अभिव्यक्ति के माध्यम के साथ-साथ हमारी समूची संस्कृति को स्पष्ट करने का माध्यम भी होता है। भाषा देश के इतिहास का आईना है। जिसमें देश का भविष्य देखा जा सकता है। आज के इस वैश्विक दौर में हिन्दी गाँवों के गली-कूंचों से निकलकर आकाश की उन ऊंचाइयों को छू रही है। जिसका इंतजार हम सभी भारतवासियों को एक लंबे समय से था। आजादी के बाद हिन्दी के मार्ग में अनेकानेक बाधाएँ उपस्थित हुई लेकिन हिन्दी उन सबसे जूझती, संघर्ष करती आगे बढ़ती रही। आज विश्व में हिन्दी का प्रयोग करने वालों की संख्या अधिक पायी जाती है। इस प्रकार हिन्दी भाषा विश्व में प्रथम स्थान पर है। हिन्दी अंग्रेजी समेत विश्व की अन्य सभी भाषाओं का सामना करते हुए सभी भाषाओं को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हुए प्रथम स्थान पर चलने लगी है। इस प्रकार हिन्दी के विकास यात्रा में हिन्दी के विद्वानों का, अध्यापकों का और भारत के जनता का भी महत्त्वपूर्ण योगदान इस विकास यात्रा में दिखाई देता है।

विश्व स्तर पर भारतीय नेता और अभिनेता, विभिन्न शासक, हमारे प्रधान मंत्री द्वारा हिन्दी में दिये जाने वाले भाषाणों को गौर से सुनते हैं। हिन्दी सेवा एवं एलक्ट्रानिक मीडिया ने हिन्दी के महत्व से विश्व को अवगत कराया है। समय-समय पर आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलनों ने विश्व मंच पर हिन्दी का परचम लहराने में अपना सहयोग प्रदान किया है। दुनिया के सभी विकसित देश इसकी सामर्थ्य को पहचानने लगे हैं। यही कारण है कि अनेक विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन का कार्य आरंभ हो चुका है। थाइलैंड, इंडोनेशिया, चीन, मंगोलिया, कनाडा, कोरिया, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोप, जर्मन और इटली। इस प्रकार लगभग विश्व के हर भू-भाग में हिन्दी समुंदर की तरह बह रही है। दक्षिणअफ्रीका, मॉरीशस, त्रिनिदाद और फिजी आदि देशों में हिन्दी भाषियों की व्यापकता है।

यही हिन्दी विश्व स्तर पर अपनी जोरदार उपस्थित दर्जा करा रही है तो उसके पीछे हिन्दी विद्वानों और जनता के साथ-साथ भारतीय हिन्दी सिनेमा का भी योगदान है। विश्व भाषा के रूप में जब हिन्दी की बात आती है तो यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि हिन्दी में विश्व भाषा बनने की पूर्ण क्षमता है। जो विद्वान भाषा के गति को पहचानते हैं वे आज विश्व की घटती हुई दूरी को देखकर यह कहने लगे हैं कि कुछ दिनों के बाद विश्व में आठ से दस भाषाएँ ही अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की रह जाएँगी। जिनमें हिन्दी एक प्रमुख भाषा होगा। इसका कारण यह है कि दुनिया के विभिन्न भागों में भारतीय फैले हुए हैं, और उनकी स्गों में हिन्दी का प्रवाह है।

हिन्दी को बोलनेवालों की संख्या विश्व में तीसरे स्थान पर आती है। विभिन्न देशों जैसे मॉरिशस, सुरीनाम, फिजी, त्रिनिदाद, नेपाल, बर्मा आदि देशों में गिरमिटिया मजदूर जाकर बस गये और उनकी संतानों में आज भी हिन्दी के प्रति स्वाभाविक लगाव है। आज भी वे तुलसी, सूर, कबीर आदि के काव्यों को कल्याणकारी रूप में देखते हैं। हिन्दी के इस व्यापक जनाधार के कारण शायद आज दुनिया के सौ से भी अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी का पठन- पाठन चल रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जब भाषा वैज्ञानिकों का कोई जमावाडा होता है तो वहाँ हिन्दी के विद्वान भी सादर आमंत्रित होते हैं।

"संयुक्त राष्ट्र संघ" में विश्व की सात प्रमुख भाषाओं के साथ हिन्दी प्रतिष्टित हो चुकी है। पहले हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में हिन्दी भाषण देकर विश्व भाषा को आवाज देकर हिन्दी को अधिक बलवती बनाया और अधिक वर्तमान में प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का हिन्दी शंखनाद भी पूरी दुनिया सुन रही है। अब आवश्यकता है प्रबल राजनीतिक इच्छा शक्ति की और अपने ही मन में समाये हुए हिन्दी के प्रति हीन भावना को समाप्त करने की क्यों कि जब तक हिन्दी का सम्मान हिन्दुस्तानियों के द्वारा नहीं होगा तब तक विश्व भाषा के रूप में इसके स्थापना की बात संभव ही नहीं है। ऐसे में उच्च शिक्षा या तकनीकी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति जब कहता है कि हिन्दी केवल भारत में ही चलती है और रोजगार की तलाश में अंतराष्ट्रीय स्तर पर सहायक नहीं होती, तब ऐसे लोगों को यह याद दिलाने की आवश्यकता है कि फिजी, मॉरीशस और दक्षिणी अफ्रीका जैसे देशों में उपनिवेशवाद के विरुद्ध 'पराधीन सपनेहूँ सुख नहीं' की भावना जागृत करने का काम भी हिन्दी और हिन्दी भाषियों ने ही किया। इस प्रकार आधुनिक विश्व की जो सबसे महत्वपूर्ण चेतना थी- 'उपनिवेशवाद की समाप्ति और जनतंत्र की प्रतिष्ठा उसकी संवाहिका भी हिन्दी ही बनी। आज से करीब सौ वर्ष पूर्व स्व. राधाकृष्ण मित्र और बनारसीदास चतुर्वेदी तथा भवानीदयाल आदि विद्वानों ने एशिया की गरिमा और भारतीयों के शोषण के विरुद्ध आवाज़ हिन्दी में उठायी। इस प्रकार अनेकानेक उदाहरण है।

जब हिन्दी विश्व स्तर पर भी अपनी आवाज़ उठाती रही है। इतना ही नहीं किसी भी भाषा के संपर्क भाषा बनने का सबसे पुष्ठ आधार है। अधिक लोगों का उसमें समाविष्ट होना, शरीक होना, सम्मिलित होना और यह शक्ति हिन्दी में है। हिन्दी का जीवन क्षेत्रीय जीवन नहीं है। बड़ा व्यापक है और अनेक घातों-प्रतिघातों से समाकुल जीवन है। हिन्दी की सहयोगी अनेक भारतीय भाषाएँ हैं। अनेकों बोलियाँ हैं। जो हिन्दी की पूरक हैं, जो हिन्दी से पाती है और हिन्दी को देती है।

वैसे आज संरचना की दृष्टि से हिन्दी की विशेषता यह है कि हिन्दी विश्लेषणात्मक और संश्लेषणात्मक दोनों है। दोनों के बीच एक संतुलन होने के कारण अर्थ की अस्पष्टता और संदिग्धता की गुंजाइश कम रहती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आधार चाहे सामाजिक हो या संरचनात्मक दोनों ही स्तरों पर हिन्दी बलवती दिखाई देती है और यही आधार हिन्दी को विश्व भाषा बनाने में निर्णायक भूमिका निभायेंगे। आवश्यकता है तो केवल इस बात की संपूर्ण भारतीय इस भाषा के प्रतीक अपने मन में विद्यमान हीन भावना का शमन करें। राजनीतिक स्तर पर हिन्दी के विकास ही ईमानदार कोशिश हो, हिन्दी को भाषावाद या किसी क्षेत्रवाद से न जोड़ा जाय। हिन्दी जब विदेशी भाषाओं से समझौता कर सकती है तो भारतीय भाषाएँ तो उसकी सगी बहन है।

अन्त में यही कहना है कि विश्व भाषा के रूप में हिन्दी कोई स्वप्न नहीं बल्कि नये विश्व की एक माँग है। यही कारण है कि विकसित देश भी अपने विश्वविद्यालयों में हिन्दी अध्ययन केन्द्र खोलने लगे हैं और बड़े-बड़े पूंजीपति भी इसका समर्थन कर रहे हैं। परन्तु, यह कल्पना अपने प्रतिष्ठा पर केवल गर्व करने या स्वयं को बड़ा घोषित कर देने मात्र से पूरी नहीं होगी। यह हमें प्रतिष्ठा का बोध जगाने और प्रतिष्ठा के अनुकूल एक बड़ी चुनौती स्वीकार करने का आमंत्रण देती है। जिसके लिए आवश्यक है भारतीयों के सहयोग की। भारत का विशाल जनमानस जिस दिन "हिन्दी को विश्व भाषा" बनाने के लिए कृतसंकल्प हो उसी दिन हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी विश्व भाषा के पद पर आसीन हो जाएगी।

संदर्भ ग्रंथ सूची :

1. राजभाषा हिन्दी, प्रशासन विभाग, सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार

2. भाषा और प्राद्यौगिकी, डॉ. विनोद कुमार प्रसाद

3. हिन्दी भाषा, महावीर प्रसाद द्विवेदी

4. ऐतिहासिक संदर्भ में राज भाषा हिन्दी, डॉ. रामबाबु शर्मा

5. राजभाषा हिन्दी, डॉ. कैलाश चन्द्र

- मोहम्मद महमूद

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