मन्नत के धागे : Mannat Ke Dhage - डॉ. मुल्ला आदम अली

Dr. Mulla Adam Ali
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मन्नत के धागे : Mannat Ke Dhage

Mannat Ke Dhage Poem in Hindi

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मन्नत के धागे

बांधे थे मैंने, 

मन्नतों के धागे

तुम्हें पाने के लिए।।


सजदे किए थे

दरगाहों पर,

तुम्हारा हो जानें के लिए।।


कभी समझ ही नहीं

पाया कोई हकीकत हमारी

अनजान ही रहे हम

इस जमाने के लिए।।


ना कुबूल हुई हमारी

कोई भी मन्नत,

उदास होकर निकल पड़ा

ये दिल फिर से

तन्हाइयों में जानें के लिए।।


- डॉ. मुल्ला आदम अली

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