हिंदी में 20 नैतिक लघुकथाएँ : गोविंद शर्मा की लघु कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
0

Govind Sharma 20 Short Stories : Best Laghu-Kathayein

20 Short Stories in Hindi

20+ लघुकथा कहानियाँ : लघुकथा संग्रह खाली चम्मच 121 लघुकहानियों से आपके लिए लेकर आए हैं 20 गोविंद शर्मा की बेहतरीन लघु-कथाएं 1. फर्क 2. रंग 3. रंग-परीक्षण 4. होटल का कमरा 5. आदमी जिद्दी 6. ऊपर तक 7. वरदान 8. खाली चम्मच 9. साल के दिन 10. इनाम और सजा 11. दीवार पर 12. दोष 13. गौर 14. रैम्प 15. उनकी तड़प 16. समझ 17. टोल फ्री 18. सांड 19. प्रदूषण 20. सड़क। बीस लघुकथाएं हिन्दी में से शिक्षाप्रद, नैतिक, ज्ञानवर्धक और रोचक है, पढ़े और शेयर करें।


20+ हिन्दी लघुकथाएं : शॉर्ट स्टोरी इन हिंदी

फ़र्क लघु-कथा : Short Story Fark

1. फर्क (Difference)

उन्होंने अपने पोते के लिये अपने बेटे से कहा- अपना बबलू बड़ा हो गया है। कद से मत नापो, इसके पैर देखो। मेरे पैरों के लगभग हो गये हैं। इसे बड़े जूतों की जरूरत है। इसने मेरे पिछले महीने खरीदे जूते पहन कर देखे थे। इसके नाप के ही हैं। वे इसे दे देता हूँ। नये जैसे ही हैं। तुम मुझे मेरे नाप के कोई नये जूते ला देना।

नहीं, नहीं, मेरा बेटा घिसाए हुए जूते पहनेगा क्या? वे आप ही पहनते रहें। इसे किसी शोरूम से कल ही दिलवा दूँगा।

बात आई गई हो गई। कुछ महीनों का समय बीत गया। सर्दियाँ आ गईं। एक दिन उन्होंने अपने बेटे से कहा- मेरा यह कोट सात-आठ साल पुराना हो गया है। अब इसमें सर्दी रोकने की ताकत नहीं बची है। मेरे लिये कोई नया कोट खरीद लाना। नाप की परवाह मत करना। ढीला हुआ तो पहन लूँगा, टाइट हुआ तो भी।

बेटे ने सुना और बोला, दो मिनट इंतजार करें। वह तेजी से अपने कमरे में गया और फिर बाहर आया तो उसके हाथ में एक पुराना कोट था। बोला- इसे पहनते हुए मुझे दो साल ही हुए हैं। नये जैसा है। आप यह पहना करें। मैं अपने लिये कोई नया खरीद लूँगा।

बात तो कोट की थी, पर उन्हें वह दिन याद आ गया जिस दिन जूतों की बात हुई थी।


रंग लघु-कहानी : Short Stories Colour

2. रंग (Colour)

सर जी, यहाँ सरेआम एक पत्रकार या साहित्यकार या कलाकार या ऐसे ही किसी और 'कार' का खून हो गया है।

किस रंग का है....?

सर जी, खून का रंग तो लाल ही होता है।

अबे, मैं वैसे पूछ रहा हूँ, ऐसे नहीं। तू काले गोरे के चक्कर में मत पड़ना।

अच्छा सरजी, वैसे। मैं अभी फेसबुक-ट्विटर वगैरह टटोलता हूँ। देखता हूँ किस रंग के बुद्धिजीवी दुखी हैं और किस वाले खुश हैं।

जल्दी कर, ऊपर वाले अभी पूछने वाले हैं। ज्यादा चक्करों में मत पड़ना। मरने वाले के रंग का पता लगा ले। मारने वाले का रंग तो उसका अपोजिट ही होगा।

सर, पहले तो मरने वाले और मारने वाले के बीच अपने रंजिश ढूँढते थे, अब यह रंग का लफड़ा हो गया।

तुम्हें क्या तकलीफ है? अपना काम तो आसान ही हुआ है। बुद्धिजीवी ही हत्या का कारण, तरीका आदि ढूंढ कर हमें दे देते हैं। कोर्ट-कचहरी से पहले खुद ही आपस में मुकदमेबाजी करने लगते हैं। ऐसे मामलों में हमें तो तमाशबीन बना दिया जाता है।


Colour Test Hindi Short Story : Laghu Kahaniyan

3. रंग-परीक्षण (Colour test)

वह पालतू कबूतर था। मालिक की इच्छा से उड़ पाता था, वरना ज्यादा समय बंद रहता या लड़ने का अभ्यास करता। उसके मन में आजादी की इच्छा छटपटाने लगी। एक दिन बागी होकर वह अपनी मर्जी से उड़ चला। उस दिन रंगों का त्योहार होली था। वह एक जगह बैठा ही था कि किसी ने पिचकारी से उस पर खूब सारा नीला रंग डाल दिया। उसके लिये यह नया अनुभव था।

वह फिर उड़ चला। एक जगह उसने देखा, बहुत सारे कबूतर सहभोज में व्यस्त हैं। उसे भी भूख लग गई थी। चुग्गे के लिये नीचे उतरा, पर एक तरफ खड़ा रहा। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि दूसरे कबूतरों के पास जाये।

एक कबूतर की नजर उस पर पड़ी तो पास आकर बोला- यहाँ घबराए से क्यों बैठे हो? क्या तुमने बिल्ली को देख लिया है?

नहीं, मैं यह सोचकर डर रहा हूँ कि मेरे इस रंग की वजह से कोई मुझे पहचानेगा नहीं कि मैं भी कबूतर हूँ....।

वाह! भाई को भाई रंग से पहचानता है?

वह कह नहीं सका कि जिन इंसानों में इतने दिन रहा हूँ, वे तो रंग से ही एक दूसरे को पहचानते हैं।


Short Story Hotel Room : लघु कहानियां होटल का कमरा

4. होटल का कमरा (Hotel room)

कई दिनो की कोशिश के बाद वह अपनी कुलिग पुलिका को अपने साथ दूसरे शहर के होटल में ले जाने में सफल हो गया। काफी ना- नुकुर के बाद पुलिका उसकी इच्छा पूरी करने को तैयार हो गई। वह उसके पास गया ही था कि उसने कहा- पहले अच्छी तरह से चैक कर लो। कहीं कैमरा तो नहीं लगा है। आजकल इन बड़े होटलों में यह खतरा बढ़ गया है। जहाँ बल्ब लगा है, ऐ.सी. है, बाथरूम के किसी कोने में कैमरा हो सकता। उसकी बताई सब जगह वह चैक करने लगा। कहीं भी कैमरा होने का सुबूत नहीं मिला। उसने संतोष की सांस ली।

फिर सोचने लगा, पुलिका को यह सब कैसे पता चला। इसका मतलब है यह औरों के साथ भी होटल के कमरों में आ चुकी है। यानी पूरी चालू है। खैर, हमें क्या। चालू न होती तो मुझे कैसे मिलती।

कई महीने के बाद संयोग से उसी होटल में उसे फिर आना पड़ा। इस बार साथ में पत्नी थी। इसलिये इस बार पटाने की वरजिश करने की जरूरत नहीं थी। वह अभी पत्नी के पास आकर लेटा ही था कि पत्नी उठकर बैठ गई और बोली- पहले चैक कर लो, कहीं कोई छिपा कैमरा तो नहीं है। आजकल बड़े होटलों के कर्मचारी यह धंधा करने लगे हैं। बल्ब, पंखा, ट्यूब, टीवी के मोडम के आस पास की जगह चैक करलो। हो सकता है... आगे वह सुन नहीं सका। वह चैक करने के लिये उठ नहीं सका। पर चालू शब्द भी उसे नहीं सूझा।


Aadmi Ziddi Short Kahani : आदमी जिद्दी कहानी

5. आदमी जिद्दी (Stubborn Man)

चौक। वहाँ धूप से बचने के लिये दोपाए, चौपाए सभी एक पेड़ के नीचे इकट्ठे होते रहते हैं। सांड यूँ ही सांड नहीं कहलाते, पता नहीं कब आपस में सींग उलझा लेंगे कोई कह नहीं सकता। कुत्ते के एक बच्चे ने कहा- मैं कई दिनों से देख रहा हूँ कि जब भी कोई दो सांड आपस में लड़ते हैं, हमारे में से कोई उन पर भौंकना शुरू कर देता है और उन्हें अलग-अलग करके ही चुप होता है। लड़ना छोड़ते ही दोनों सांड यूँ खड़े रहते हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। ऐसा क्यों होता है?

क्योंकि दोनों की लडाई गलतफहमी से होती है। अनावश्यक होती है।

कई बार आदमी भी आपस में लड़ बैठते हैं। आप उनकी लड़ाई तो नहीं रुकवाते?

आदमी अपने को बहुत दिमागदार मानता है। वह इतना जिद्दी है कि मानता ही नहीं कि उसकी लड़ाइयां भी अनावश्यक होती हैं। बड़े कुत्ते ने उस कुत्ते को समझाया और एक अनजान कुत्ते को आता देख चौकन्ना हो गया।


छोटी सी कथा ऊपर तक : small story in Hindi

6. ऊपर तक (Up to the top)

ट्रैफिक पुलिस के आदमी ने उस बाइक सवार को रोक लिया - हेलमेट क्यों नहीं पहन रखा? गाड़ी के कागज दिखाओ, लाइसेंस दिखाओ।

- साहब, इनमें से मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। यह बाइक एक भक्त की मांग कर लाया हूँ।

- टोटल हुआ पाँच सौ रुपये। निकालो पाँच सौ रुपये।

- यह तो बहुत ज्यादा है।

- हमें यह ऊपर तक पहुँचाना होता है।

यह काम तो मैं भी करता हूँ। पर हमारी रेंज सवा पाँच, सवा ग्यारह रुपये से शुरू होती है।

- पहले क्यों नहीं बताया कि हमारी जमात के हो। और यह रेंज पिछली से पिछली सदी की है। इतने पिछडे क्यों हो?

मैं तो पुजारी हूँ। मुझे तो भक्तों का चढ़ावा ऊपर भगवान तक पहुँचाना होता है।

जाओ, किसी दिन मेरी कुंडली देखकर बताना, दोष कहाँ है, आजकल सब तुम्हारे जैसे फोकटिये ही मिल रहे हैं।


Vardan Hindi Kahani Short : वरदान हिन्दी कहानी

7. वरदान (Blessing)

चेयरमैन साहब बाबू पर नाराज हो रहे थे - मैंने तुम्हें एक बार नहीं, कई बार कहा है कि मकानों के नये नंबर लगाते वक्त मेरे मकान का नंबर 51 या 101 होना चाहिए। यह अंक शुभ होते हैं और तुमने मेरे मकान को नंबर दिया है...

सर, नंबर बीच में बदला नहीं जा सकता। मैंने कई तरफ से नंबर लगाने शुरू किये। किसी भी तरफ से आपके मकान का इक्यावन या एक सौ एक नंबर नहीं आ रहा था। इसलिये मैंने यह...

इतना भाँडा नंबर ? कोई और नंबर दे देता।

नहीं सर, यह नंबर भौंडा नहीं है। यह आपके अनुकूल है। यह नंबर तो आशीर्वाद है, वरदान है, सर

सत्ताईस?

हाँ सर, इस नंबर को सत्ता ईश कहते हैं। इसका मतलब है आप सदा सत्ता के ईश बने रहेंगे यानी आप सदा सत्ताधारी बने रहेंगे।

अगले दिन चेयरमैन साहब उस बाबू की पदोन्नति के नोट के नीचे यस लिखने के लिये कलम उठा रहे थे।


Khali Chammach Laghu Kahaniyan : खाली चम्मच कहानी

8. खाली चम्मच

सड़क किनारे नाला। नाला के पास उस परिवार का अवैध रहवास। सब भूख को भुलाने में लगे थे। एक बेटा बोला- मां, मैं आज एक नेता का भाषण सुनकर आया हूँ, जल्दी ही ऐसा होगा कि हम भूखे नहीं सोया करेंगे।

बहुत दिनों से सुन रही हूँ, मैं यह।

नहीं-नहीं, वह छिपकर नहीं, सरेआम यह कह रहा था। उसने मुँह के आगे माइक लगाकर, ऐसा कहा है। उसने मुँह के आगे माइक ऐसे लगा रखा था, कह कर बेटे ने खाली चम्मच उठा कर मुँह के आगे माइक की तरह लगा ली।

माँ ने उसे देखा और भूखी मुस्कान के साथ कहा- हाँ बेटे, खाली चम्मच चटाते उन्हें बहुत साल हो गये हैं।


साल के दिन कथाएं लघु कहानी : Small Story

9. साल के दिन

मैडम गुंजन ने कहा- आपने वह गीत तो सुना होगा-तुम जिओ हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार...

सुना है मैडम, पर न तो कोई हजारों साल जीता है ओर न ही किसी साल में पचास हजार दिन होते हैं।

अगर कोई यह कहे कि साल में तीन सौ पचहतर दिन होते हैं, तो? हमें तो हँसी आयेगी।

आज कक्षा में एक बच्ची ने यह कहा और वजह बताई तो मैं नहीं हँस सकी।

अच्छा? ऐसा क्या कहा उसने?

जब बच्ची ने 375 दिन कहा तो मैंने उसे बताया कि 365 दिन होते हैं। तुम गलत क्यों बता रही हो? तब उसने जो कहा, उसे सुनकर मैं चुप हो गई।

ऐसा क्या कहा उसने?

उसने कहा-मैडम, मेरे पापा सेना में हैं। पिछली बार छुट्टी पूरी करके जाने लगे तो उन्होंने मुझ से वादा किया कि ठीक एक साल बाद मैं वापस आऊँगा तुम्हारे पास, तुम्हारे लिये।

मैं उसी दिन से एक-एक दिन गिनने लगी। अभी चार दिन पहले मेरे पापा आए हैं। तब पूरे 375 दिन हुए थे। मेरे पापा झूठा 'प्रामिस' नहीं करते हैं।


इनाम और सजा हिंदी छोटी सी कहानी : Short Story Reward and Punishment

10. इनाम और सजा (Reward and punishment)

उस अकेले पेड के नीचे पाँच कुत्ते लेटे हुए थे। कुछ आदमी आए और कुत्तों को वहाँ से भगाने लगे। कुत्तों ने जाने से इंकार कर दिया और आदमियों का सस्वर विरोध भी किया। एक आदमी बोला- तुम देख नहीं रहे, कितनी तेज धूप है। इस पेड़ के अलावा यहाँ छाया कहीं नहीं है। यह पेड़ हमारे किसी बुजुर्ग ने लगाया था। इसकी छाया का इनाम हम आदमियों को ही मिलना चाहिए।

सारे कुत्ते एक साथ भौंकने लगे। कोई अपनी जगह नहीं छोड़ रहा था। सब जानते थे कि पेड़ की छाया से बाहर आते ही धूप झुलसा देगी। एक बुजुर्ग कुत्ते ने उन्हें शांत किया और आदमियों से सवाल किया- पिछले वर्ष यहाँ पाँच पेड़ और थे। किसी की छाया में तुम लोग बैठे रहते, किसी की छाया में हम। वे कहाँ गये? क्या किसी कुत्ते, बिल्ली, गधे, बैल ने उन्हें काट दिया?

धूप में तपता आदमी हँसा और बोला-ये जीव पेड़ नहीं काट सकते। यह काम आदमियों में से ही किसी ने किया है।

जब तुम्हारे किसी आदमी ने यह पेड़ लगाया और इसकी छाया इनाम में मांग रहे हो तो तुम आदमियों ने दूसरे पेड़ काट दिये, उसकी सजा भी तुम्हीं भुगतो। जाओ, हमें भौंकने पर मजबूर मत करो।


On the wall short stories : Diwar Par Kahani

11. दीवार पर (On the wall)

बचपन के बाद जवानी, जवानी के बाद बुढ़ापा। अम्मा को इस बुढ़ापे ने घेर लिया था। अम्मा को घर में एक कोना दे दिया गया। बाकी सारे घर पर बेटे-बहुओं, पोतों ने कब्जा कर लिया। अम्मा ने इस नियति को स्वीकार कर लिया। पर उनकी एक इच्छा अभी अधूरी थी। बेटों से कहा, बहुओं से कहा, पोतों से भी। सबने सुनकर अनसुना कर दिया। इच्छा थी कि बरामदे की दांई तरफ वाली दीवार के पास उनकी चारपाई रखी जावे। वहाँ से सारा घर दिखाई देता है। घर के लोग भी आते-जाते दिखते हैं। कभी-कभी तो गली में खेलते बच्चे भी दिखाई दे जाते हैं। पर किसी ने भी उनकी बात नहीं मानी।

बचपन से जवानी, जवानी से बुढ़ापा । बुढ़ापे से... वही दिन आ गया। अम्माजी ने अंतिम सांस ले ली।

अगले दिन एक दुखी बेटे के हाथ में फोटो थी, दूसरे के हाथ में कील और हथौड़ा। दोनों शोकग्रस्त थे। पर बड़ी सुघड़ता से फोटो दीवार पर टांग दिया। घर में से किसी ने एक फूलमाला भी फोटो को पहना दी।

किसी के दिल से आवाज निकली आज अगर अम्मा जी जीवित होती तो देखती कि उसी दीवार के पास होने की उनकी वर्षों पुरानी तमन्ना पूरी हो गई है। उन्हें सदा के लिये उसी दीवार पर टांग दिया गया है।


Dosh Hindi Short Kahani : Stories Short

12. दोष

एक बडा कागज हवा के साथ उड़ता आया और लकड़ी के किवाड़ के साथ चिपक गया। किवाड़ को बहुत बुरा लगा। गुस्से में बोला- अरे ओ पतलू, हट जा मेरे पास से। मैं किसी भी समय बंद हो सकता हूँ। अगर मेरे और चौखट के बीच में आ गया तो तेरा कचूमर निकल जायेगा।

ठीक कहते हो तुम। पर तुम्हारा मालिक तुम्हें बंद करने आयेगा। तब या फिर हवा का झौंका ही मुझे तुमसे दूर करेगा। क्यों न तब तक हम दोस्त बनकर थोडी देर बात करलें।

बात और तुमसे? हम लकड़ी के किवाड़ कमजोरों को मुँह नहीं लगाते हैं। गरीब की झौंपड़ी से लेकर राजाओं के महलों-किलों तक सब जगह हमें विश्वसनीय चौकीदार माना जाता है। और तुम......।

क्या फर्क पड़ता है इससे। हम दोनों एक ही जगह पैदा होते हैं। पेड़ को काट कर सुखा कर लकड़ी बनाई जाती है। तुम लकड़ी ही तो हो। पेड़ को काटकर उससे ही कागज बनाया जाता है। ताकत मुझ में भी कम नहीं है। सदियों से लकड़ी से किवाड़ बनाये जाते हैं, लकड़ी को जलाकर रोटी बनाई जाती है। फिर भी किसी ने नहीं कहा कि इनकी वजह से जंगल नष्ट हो गये? हम कागजों की ताकत के आगे दुनिया पस्त है। सब कहते हैं जंगल बचाना है तो कागज का उत्पादन कम करो। ज्यादा काम पेपर लेस हो।

किवाड़ की लकड़ी ने कहा-शुक्र है जंगल खत्म करने का दोष मुझ पर नहीं लगा। कागज कुछ कहे, इससे पहले ही हवा फिर उसे उड़ा ले गई।


गौर कहानी हिन्दी में : Laghukatha

13. गौर

मिसेज रोका और उनकी सहेली बॉलकनी में बैठे बातें कर रही थीं। पास में उनका 7-8 वर्षीय पुत्र इधर-उधर घूम रहा था। मिसेज रोका बोली-हमारा राजू हर चीज को बड़े गौर से देखता है। अब भी इसका ध्यान पेड़-पौधों, उडने वाले परिन्दों और सडक पर आने जाने वालों पर है। अचानक राजू बोला- मम्मी देखो, सड़क पर वह जो आंटी जा रही है. वह रोज इस समय कहीं जाती है।

बेटे, वह काम पर जाती है।

मम्मी, मैं छह महीने पहले घर आया था, तब भी इन्हें देखा था। यही सूट पहन रखा था। कल परसों भी यही पहने देखा था। जबकि आप ने इतने समय में बीस बदल लिये होंगे।

बेटे, यह गरीब हैं। हम नहीं हैं। इन्हें दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिलता है। रोज-रोज नये सूट कहाँ से पहनें।

पर मम्मी, इन लोगों के साथ एक बात अच्छी होती है। ये दिन-ब- दिन मोटे नहीं होते। वरना पहनने के कपडे जुटाना इनके लिये मुश्किल हो जाता।

मिसेस रोका ने अपने शरीर की तरफ देखा और फिर मन ही मन कहा-बेटे, इतने गौर से भी नहीं देखना चाहिए।


Govind Sharma Stories : रैम्प कहानी

14. रैम्प

उसने इस गली में मकान खरीदा। उसकी कुछ मरम्मत करवाई और घर के आगे रैम्प बनवाने लगा। सामने वाले पड़ोसी ने इस पर एतराज जता दिया। दूसरे पडोसियों को अपने साथ मिलाने के लिये उस पड़ोसी ने कहा- यह नया बाशिंदा अपनी गाड़ी का रौब दिखाने लिये रैम्प बनवा रहा है। हम क्यों बनवाने दें। चलो, उसे रोकते हैं।

उसने कहा-क्या आप लोग चाहते हैं, मैं इस घर में अपने पिता के साथ रहूँ। यदि हाँ तो मुझे रैम्प बनाने दें।

वाह, अपनी ही नहीं, पिता की गाड़ी का भी रौब ? खैर, बनाने दो, एक दिन तुड़वा ही देंगे।

रैम्प बन गया। मुहूर्त का दिन आगया।

वह, उसकी पत्नी, बच्चे सब आ गये। घर के बाहर खड़े रहे तो एक ने पूछ लिया कि घर के भीतर क्यों नहीं जा रहे?

पहले मेरे पिता प्रवेश करेंगे। वे पीछे गाड़ी में आ रहे हैं।

गाड़ी वाले तो हर कहीं पहले पहुँचते हैं। वे कहाँ अटक गये?

वे अपनी गाड़ी खुद चलाते हैं। किसी की मदद नहीं लेते।

अचानक लोगों ने देखा, एक प्रौढ़ अपनी दिव्यांगों वाली ट्राईसाईकिल में बैठे उसे खुद चलाते हुए वहाँ आये हैं। उन्होंने खुद ही उसे चलाते हुए रैम्प पर चढ़ाया और घर के भीतर प्रवेश किया, फिर सब घर में गये।

रैम्प विरोधी अब चुप थे। उनमें से कुछ ने अपने वृद्ध माता-पिता की तरफ देखना शुरू कर दिया था।


हिन्दी लघु कहानी उनकी तड़प : Unki Tadap

15. उनकी तड़प

भूतपूर्वी के नेता ने अपने भूतपूर्वी को बुलाया और कहा- एक दो साल बाद चुनाव होंगे। अब हमें नींद से जाग जाना चाहिए।

सर, हम तो जिस दिन भूतपूर्व हुए थे, उस दिन से हमारी नींद उड़ी हुई है।

तो निकालो तरकश से तीर। वर्तमानों पर, उनकी पार्टी पर, उनकी सरकार पर आरोपों की वर्षा कर दो। उन्हें पसीना आ जाना चाहिए। क्या आपके पास झूठे-सच्चे आरोप हैं?

सर, आरोप कभी झूठे नहीं होते, पर उन्हें सच्चे साबित करना ही मुश्किल होता है। यदि आपने गंभीर और अकाट्य आरोप लगाने है तो मेरे पास एक आइडिया है। क्यों न हम में से पाँच सात दस यह पार्टी छोड़कर उन वर्तमानों की पार्टी में चले जायें। हमारा रिकार्ड आपके पास है ही, आप हम पर आरोप लगा कर उन्हें पसीना-पसीना, पानी-पानी कर सकते हैं। अपने पिछले संघर्ष काल में उनकी पार्टी ने यह हथकंडा अपनाया था। तब आपकी क्या दशा हो गई थी ? वही साँप छछंदर वाली। न गटकते बना, न थूकते........

भूतपूर्वी के नेता ने माथा पीटते हुए कहा- यह लोग भी....चुनाव से पहले ही वर्तमान होने के लिये तड़प रहे हैं।


कहानी समझ हिन्दी में : Samajh Story Hindi

16. समझ

शहर में पले-पढ़े बच्चे को ग्राम्य जीवन का अनुभव करवाने के लिये कुछ दिनों के लिये गाँव में रिश्तेदार के घर भेज दिया गया। बच्चे को पड़ोस में रहने वाली एक आंटी और उसकी बातें, कहानियाँ अच्छी लगने लगीं। पर वह घर पर बहुत कम मिलती। सुबह-सुबह घर से निकलती, सांझ ढले आती।

एक दिन बच्चे ने पूछ लिया-आंटी, आप सारा दिन बाहर क्या करती हैं?

- काम। बेटे, सारा दिन काम करती हूँ, तब शाम को दो रोटी बनती है।

- वाह आंटी, दो रोटी बनाने के लिये इतने घंटे क्यों बरबाद करती हैं आप। आप तो मैगी बनाया करो। दो मिनट में बन जाती है।


Toll free Short Story : टोल फ्री कहानी

17. टोल फ्री (Toll free)

वह जरूरी काम से नेता 'जनसेवक' जी से मिलने गया। कार्यालय के बाहर खड़े चपरासी ने उसे भीतर जाने से रोक दिया।

वह बोला - मुझे बहुत जरूरी काम है।

साहब भी बहुत-बहुत जरूरी काम निपटा रहे हैं। तुम्हारे पास जरूरी काम का क्या सुबूत?

अभी दिखाता हूँ, कहते हुए अपनी पैंट की जेब में हाथ डाला। भूल से वह दायीं तरफ वाली जेब में हाथ डाल बैठा, जबकि दिखाने, चाहने वाला पत्र तो बाईं तरफ वाली जेब में था। जब उसका हाथ बाहर आया तो उसमें पचास का एक नोट था। चपरासी ने झपटते हुए कहा- जाओ भीतर। इतना सुबूत काफी है।

कुछ देर बाद वह बाहर आया और चपरासी के पास रुका तो चपरासी ने कहा-' चले जाओ, बाहर जाने की इजाजत मुझसे लेने की जरूरत नहीं है।

वह बोला-पहले भी मैं कई बार आया हूँ। पहले तो तुमने ऐसा सुबूत कभी नहीं मांगा?

पहले तुम जनता के साथ ही मतदाता भी थे। मतदाता का आना- जाना टोल फ्री होता है, अब चुनाव हो चुके, अब तुम सिर्फ जनता हो।


कहानी सांड हिन्दी लघुकथा : Bull Short Kahani

18. सांड (Bull)

गली में कई लावारिस सांड खड़े थे। एक छोटा था, बाकी सब बड़े। वह साहब घर से बाहर आये और पोलिथिन में भरा बासी खाना सांडों की तरफ फेंक दिया।

एक छोटे सांड के अलावा कोई भी उस पोलिथिन की तरफ नहीं लपका। उसे भी एक बड़े सांड ने रोक दिया। कहा- नहीं दोस्त, उसकी तरफ मत बढ़ो। आदमियों का ही नारा है बचाव में ही बचाव है। आदमी - को न अपनी और न हमारी परवाह है। यदि परवाह होती तो पोलिथिन में बांध कर खाना न फेंकता। खाने के साथ हमारे पेट में गया पोलिथिन गोबर के साथ बाहर नहीं आता, उसे पेट चीर कर निकालना पड़ता है। आदमी के भरोसे मत रहो, अपना बचाव खुद करना सीखो।

छोटे सांड ने तुरंत अपना बचाव सीख लिया। क्यों न सीखे ? पशु था, आदमी नहीं।


Short Story Pollution : Pradushan Laghukatha

19. प्रदूषण (Pollution)

एक ने कहा- हमारे शहर में कितना प्रदूषण है। हवा खराब है। वाहनों और फैक्टरियों के धुँए से शहर धुआँधार है। हवा को शुद्ध करने वाले पेड़-पौधे बहुत कम है। गाँव में ऐसा नहीं होता है। काश, हमारा शहर गाँव बन जाए।

दूसरे ने कहा- बिल्कुल। शहर में कोशिश करने पर भी मैं न विधायक बन सका न नगरपालिका का अध्यक्ष। यह शहर गाँव बन जाए तो सरपंच तो बन ही जाऊँगा। क्यों, ठीक सोच रहा हूँ न?

हाँ, पर यह भी एक तरह का प्रदूषण है।


Kahani Sadak in Hindi : Sadak Short Story

20. सड़क

चहकता मुन्ना कमरे में आया और बोला- पापा आज मैंने एक नई चीज देखी है। बताओ क्या?

तुम भी अपने भैया के साथ काफी समय मोबाइल में डूबे रहते हो। वहाँ कुछ देखा होगा।

नहीं-नहीं, असली वाली। आप मेरे साथ चलें तो आपको दिखा सकता हूँ।

वह क्या है, यह तो बताओ।

पापा, मैंने सड़क देखी है।

वाह, क्या तुमने अब से पहले कभी सड़क नहीं देखी ?

देखी है पापा, पर तब जब आप कार में शहर से बाहर ले जाते हैं। आज तो मैंने अपने घर के आगे देखी है। जहाँ रोज मुझे बस, ट्रक, कार, बाइक ही दिखाई देते हैं। आज उनमें कोई नहीं था। सिर्फ सड़क, घर के आगे चौड़ी सड़क। लंबी, दूर तक दिखाई दे रही थी।

दुनिया में बहुत सी चीजें हैं, पर हमारा सुविधा प्रेम, उन्हें हमें देखने नहीं देता।

शायद मुन्ना की समझ में यह बात नहीं आई। वह फिर बोला- कल तो मैंने चाँद देखा। ऐसा चमकदार पहले कभी नहीं देखा।

बेटे, प्रकृति के पास बहुत कुछ है। उसका असली रूप तभी दिखे, जब प्रदूषण की चादर हटे। लाकडाऊन ने प्रदूषण को कुछ कम किया तो चाँद चमकदार दिखा।

बात मुन्ना की समझ में नहीं आई। हम सब भी तो 'मुन्ना' बने हुए हैं।

- गोविंद शर्मा

ये भी पढ़ें; गोविंद शर्मा की लघुकथा संकलन से 15 लघुकथाएँ हिन्दी में

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top