सच्चे दोस्त की भूमिका का निर्वहन करती तीन बिल्लियाँ की बाल कहानी : चिंपू के सच्चे दोस्त

Dr. Mulla Adam Ali
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Chimpu's true friends : Children's story of three cats playing the role of true friends

Chimpu ke sachhe dost bal kahani

विश्वास और दोस्ती की अनमोल धारा की बाल कहानी चिंपू के सच्चे दोस्त : राजस्थान के ही नहीं सम्पूर्ण भारत में ख्याति प्राप्त बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा राजस्थान के ऐसे एकलौते बाल साहित्यकार है जिनको केंद्रीय साहित्य अकादमी ने बाल साहित्य का पुरस्कार 2019 में प्रदान किया है। बाल कहानियों में सिद्धहस्त लेखक गोविंद शर्मा जी का बालकथा संग्रह हवा का इंतजाम में चौथी कहानी है चिंपू के सच्चे दोस्त। जानवर भी समझदार होते हैं इस बात की पुष्टि करती है और सच्चे दोस्त की भूमिका का निर्वहन करती तीन बिल्लियों की कहानी है चिंपू के सच्चे दोस्त।

बच्चों के लिए अनोखी दोस्ती पर मनोरंजक कहानियाँ

चिंपू के सच्चे दोस्त

चिंपू के पास हैं तीन बिल्लियाँ। पर वह उन्हें न बिल्ली कहता है, न कहने देता है। वह उन्हें अपने दोस्त बताता है। उनके नाम हैं-कैटी, पूसी और दूसी। कोई नया देखने वाला तो पहचान ही नहीं पाता कि कैटी कौन है, पूसी या टूसी कौन है। चिंपू तो अंधेरे में ही पहचान लेता है। उसने अपने दोस्तों को सच बोलना सिखाया है।

एक बार घर में आए अखबार को किसी और से पहले चिंपू के इन दोस्तों ने देख लिया। लगे पढ़ने या कहो फाड़ने। तीनों बिल्लयों ने कुछ ही देर में अखबार को टुकड़ों में फाड़ दिया।

चिंपू के पापा ने अखबार की यह दशा देखी तो गुस्से में चिल्लाए यह अखबार किसने फाड़ा?

घर के सब लोग यहाँ इकठ्ठा हो गये। टुकड़े-टुकड़े हुए अखबार को देखकर सभी हैरान रह गये। चिंपू भी। अचानक उसकी निगाह अपने दोस्तों की तरफ चली गई। तीनों सिर झुकाए पास-पास बैठी थीं।

चिंपू ने धीरे से कहा-पापा, मेरी दोस्त झूठ नहीं बोलती हैं......।

तो, इन बिल्लियों से पूछ कर बताओ कि अखबार किसने फाड़ा है।

पापा, इन्हें बिल्लियाँ नहीं कहता हूँ। इनके नाम कैटी, पूसी और दूसी है। देखिये, कैसे लाइन में सिर झुकाए बैठी हैं। इसका मतलब है यह कारनामा इनका है और अब माफी माँग रही हैं। यह भी कह रही हैं कि आज के बाद ऐसा कभी नहीं करेंगी।

सचमुच चिंपू के दोस्तों ने बाद में ऐसा कभी नहीं किया। पर आज तो गजब ही गया। चिंपू की मेज पर माँ ने दूध का गिलास रखा था। चिंपू दूध पीना शुरू करे इससे पहले उसके एक दोस्त का फोन आ गया। फोन पर बात करते-करते कमरे से बाहर चला गया। बातें करके कमरे में आया तो देखा, दूध का गिलास नीचे गिरा पड़ा है। दूध भी मेज पर और फर्श पर बिखरा हुआ है। उसकी तीनों दोस्त इधर-उधर घूम रही है।

चिंपू ने अपने उन दोस्तों से पूछा-बताओ, यह किसने किया है। किसी एक ने या तीनों ने मिलकर शरारत की है और दूध का गिलास गिरा दिया?

कैटी, पूसी या दूसी में से कोई उसके पास नहीं आया। किसी ने भी सिर नहीं झुकाया। चिंपू जोर से बोला अच्छा तो अब तुम झूठ भी बोलने लगी। यह गलत है। तुम्हें सजा मिलेगी।

बिंपू की माँ भी यहाँ आ गई। चिंपू बोला- देखो, माँ, मेरी इन दोस्तों ने दूध भी गिरा दिया और अपनी गलती भी नहीं मान रहीं। माफी माँगना तो दूर की बात है. जब भी मैं इन्हें अपने पास बुलाता हूँ, गत्ते के उस बड़े कार्टून के पीछे झाँकने लगती हैं।

यह फिस का खाली डिब्या तुमने यहाँ क्यों रखा है? ये तुम्हारी दोस्त इसके पीछे वयों झाँक रही हैं?

कुछ दिन पहले एक चुहिया तो दिखी थी। हो सकता है वही चुहिया इस डिब्बे के पीछे चली गई हो। हो सकता है मेरी तीनों दोस्त उसी के पीछे पड़ी हों। देखता हूँ, वहाँ क्या है?

चिंपू ने देखा तो हैरान रह गया। वहाँ एक बॉल थी। ऐसी बॉल से गली में बच्चे फुटबाल खेलते हैं।

यह बॉल यहाँ कहाँ से आई? चिंपू ने अभी यह सोचा ही था कि बाहर से कुछ बच्चों की आवाज सुनाई दी। वह और माँ कमरे से बाहर आये। गेट पर कुछ बच्चे थे। उनमें से एक बोला-आंटी, हमें माफ करना। हम गली में फुटबाल खेल रहे थे। हम में से किसी एक की गलती से यह बॉल आपके किसी कमरे की खुली खिड़की से भीतर आ गई। हो सकता है आपका कुछ नुकसान भी हुआ हो। आप हमें यह बॉल वापस कर दीजिए। हम वादा करते हैं कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा।

इतना सुनते ही चिंपू ने अपने हाथ में पकड़ी बॉल वहीं छोड़ दी और तेजी से अपने कमरे की तरफ गया। भीतर जाने की उसकी तेजी देखकर माँ भी हैरान रह गई। वह भी बिना कुछ बोले चिंपू के पीछे भीतर आने लगी। बाहर से आए बच्चे भी हैरान रह गये। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि बॉल इतनी जल्दी, इतनी आसानी से मिल जायेगी। आंटी से डाँट तो खानी ही पड़ेगी। ऐसा कुछ नहीं हुआ तो खुशी, हैरानी और अपनी बॉल के साथ बाहर चले गये।

माँ ने देखा, चिंपू ने अपने तीनों दोस्तों को गोद में उठा रखा है। उन पर स्नेह से हाथ फेरते बोल रहा है- सॉरी दोस्त, मैंने फिजूल ही तुम पर शक किया कि दूध का गिलास तुमने लुढकाया है। यह तो उस खुली खिड़की से आई बॉल का काम था। तुम तीनों ने बार-बार बड़े डिब्बे के पीछे झाँक कर ऐसा बताने की कोशिश भी की, पर मैं ही नहीं समझा। मेरे दोस्तो। तुम सच्चे थे और सच्चे रहोगे।

यह सुनकर माँ ने संतोष की सांस ली और दूध का दूसरा गिलास लाकर चिंपू की मेज पर रख दिया।

कैटी चिंपू के सिर पर बैठ गई। पूसी कंधे पर तो दूसी गोद में। चिंपू दूध पीने के लिए जैसे ही गिलास मुँह के पास ले जाता, कभी कैटी, कभी पूसी तो कभी इसी अपने आगे के पंजे चिंपू के मुँह पर रख देती। जैसे ही वह गिलास नीचे करता, वे अपना हाथ कहो या पैर उसके मुँह से हटा लेती। ऐसा कई बार हुआ तो चिंपू बोला-दोस्तो, मैं पहले ही सॉरी बोल चुका हूँ। एक बार और बोलता हूँ-तुम तीनों सच्चे दोस्त हो और रहोगे। मुझे भूख लगी है। मुझे दूध पीने दो। तुम तीनों ने तो सुबह-सुबह ही दूध पी लिया था।

कैटी, पूसी, टूसी मान गई, तभी चिंपू दूध पी सका।

- गोविंद शर्मा

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