कला के सम्मान को लेकर लिखी गई रोचक बाल कथा : कला की कद्र

Dr. Mulla Adam Ali
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Appreciation of art : An interesting children's story written on respect for art

Kala ki kadr bal kahani in hindi

शिक्षाप्रद बाल कहानी कला की कद्र : जानेमाने हिन्दी बाल साहित्यकार, व्यंग्य एवं लघुकथा लेखन में सक्रिय गोविंद शर्मा जी का बालकथा संग्रह हवा का इंतजाम में तीसरी बाल कहानी कला की कद्र है, यह कला के सम्मान को लेकर लिखी गई रोचक शिक्षाप्रद बाल कहानी है। सम्मान के विषय पर हिंदी बाल कहानी कला की कद्र, काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता, हर किसी का काम उसके लिए महत्व रखता है और उसके पेट भरने का माध्यम है। कला का सम्मान करना चाहिए इसी बात को रोचक ढंग से समझाती है ये बच्चों की कहानी।

Kala Ki Kadr Bal Kahani in Hindi

कला की कद्र

हमारे शहर के सेठ गुप्तानंद कला प्रेमी हैं। जब भी कोई सुंदर-सा चित्र, मूर्ति या कुछ और बनाकर लाता, सेठजी उस कलाकार से वह कलावस्तु खरीद लेते, पूरी कीमत देते। यहाँ तक कि कुछ कला वस्तुओं के लिये अलग से इनाम भी देते।

एक दिन एक कलाकार मिट्टी से बना कर हाथी की मूर्ति थाली में रखकर लाया। सेठ जी को वह मूर्ति कला का सुंदर नमूना लगी। उन्होंने उसे खरीद लिया। उन्हें बताया गया कि यह केवल मिट्टी से बनी है। इस पर रंग नहीं किया गया है। इसका हाथी जैसा यह रंग मिट्टी का ही रंग है। पर मूर्ति है बहुत कमजोर। जरा सी ठेस लगने पर टूट सकती है।

सेठ जी बोले-तुम फिक्र मत करो। मैं इसे संभाल कर रखूँगा ताकि न केवल मेरे पास आने वाले मेरे मित्र-संबंधी ही देखें बल्कि भावी पीढ़ियाँ भी कला के इस अनुपम नमूने को देखे ।

उस वक्त सेठजी के पास उनके कुछ मित्र भी बैठे थे। उन्होंने भी मूर्ति की प्रशंसा की। सेठ जी ने मूर्तिकार को कुछ रुपये इनाम में दिये और बोले- इसे संभाल कर रखने की जिम्मेदारी अब मेरी है। इसलिये मैं इसे अपने हाथों से शोकेस में रखूँगा।

सेठ जी थाली में रखी मूर्ति लेकर चले। उसी समय उनका एक नौकर पानी भरे गिलास ट्रे में रखकर कमरे में आया। कमरे के फर्श पर बिछे कालीन के एक कोने में सेठ जी का पैर, कुछ इस तरह उलझा कि वे गिरने को हो गये। सेठजी के मित्र भागकर आये और उन्होंने सेठजी को गिरने से पहले ही पकड़ लिया। मगर मूर्ति. रखी थाली उनके हाथों से छूट गई। थाली को नीचे गिरते देखकर मूर्तिकार घबरा गया। पर पानी लेकर कमरे में आये नौकर ने हाथ की ट्रे को एक तरफ फेंका और थाली को लपक कर पकड़ लिया। थाली और मूर्ति जमीन पर गिरने से बच गये। यह देखकर मूर्तिकार ने संतोष की सांस ली। सेठ जी ने पुनः थाली को संभाल लिया। सेठ जी के मित्र सेठजी की तारीफ करने लगे-वाह। आज आपके कुशल हाथों ने एक कीमती कलावस्तु को नष्ट होने से बचा लिया।

जब सारे मित्र सेठजी की सराहना कर रहे थे, तब मूर्तिकार ने देखा, सेव जी का वह नौकर नीचे गिरे गिलास उठा रहा है, फर्श पर गिरा पानी साफ कर रहा है। मूर्तिकार बोला-सेठ जी, इस कलात्मक हाची को बनाने के लिये मेरी सराहना हुई, आपने अच्छी कीमत देकर कला को खरीदा और इसे भावी पीढ़ियों के लिये सुरक्षित रखने की सोची-यह सब अच्छी बातें हैं। पर इस कलाकृति को बचाने का बेय आपके इस सेवक को भी जाता है। यदि यह अपने हाथ में पकड़ी ट्रे को छोड़कर इस मूर्तिवाली थाली को न थामता तो यह कलाकृति आज ही नष्ट हो जाती। मैं दूर खड़ा देख रहा था, आपके मित्र आपको गिरने से बचाने में लगे थे। कलाकृति तो इस सेबक के कारण ही बची है। मुझे मिला आज का यह इनाम में इसे सौंपता हूँ। मेरे विचार में कलाकृति को बनाने और उसे खरीदने वाले से भी बड़ा उसे संभालने वाला होता है।

सेठजी ने कहा-मूर्तिकार जी, पहले तो मेरे मन में आपकी कलाकारी के प्रति ही सम्मान था, अब आपके उच्च विचारों से ज्यादा प्रभावित हूँ। आपकी बात ठीक है, महत्त्वपूर्ण है विरासत को संभाल कर रखना। आप अपना इनाम अपने पास रखें। मेरे इस सेवक को मैं पर्याप्त सम्मान और पुरस्कार दूँगा। मूर्तिकार की खुशी का अब कोई ठिकाना नहीं था।

- गोविंद शर्मा

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