गोविंद शर्मा का चौथा लघुकथा संग्रह खाली चम्मच 121 लघुकथाएं : लघुकथा लेखन-कथन

Dr. Mulla Adam Ali
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Govind Sharma's fourth short story collection : Khali Chammach : Laghukatha 121 (Hindi)

Khali Chammach : Laghukatha Lekhan

खाली चम्मच : 121 लघुकथाएं

हिन्दी लघुकथा संग्रह खाली चम्मच लघुकथा : लेखन-कथन

यह मेरा चौथा लघुकथा संग्रह है। इससे पहले 1. 'रामदीन का चिराग', 2. 'एक वह कोना', 3. 'खेल नंबरों का आ चुका है। 'खेल नंबरों का' में 151 लघुकथाएँ हैं। इस संग्रह की समीक्षा करते हुए सुपरिचित साहित्यकार श्री घनश्याम मैथिल अमृत ने लिखा है-

समय की हथेली पर यथार्थ की लकीरें खींचती लघुकथाएँ - खेल नम्बरों का (लघुकथा संग्रह) लघुकथाकार - गोविंद शर्मा

कुछ लोग कैसे प्रचलित कहावतों, मुहावरों अथवा नीतिपरक दोहों से ध्वनित अर्थों के विपरीत चलते हुए कोई ऐसी लकीर खींचते हैं कि देखने वाले दंग रह जाते हैं- यहाँ वरिष्ठ और सुपरिचित साहित्यकार गोविंद शर्मा के लघुकथा संग्रह के बारे में अपनी बात रखने के पूर्व मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ, जिसका जिक्र यहाँ करना मुझे समीचीन लग रहा है। हमारे अग्रज बाबा रहीम ने लिखा है-"एक साधे सब सधै सब साधे सब जाय, रहिमन मूलहिं सींचवो फूलहिं फलहिं अघाय।" अर्थ सहज है, सरल है, हम सब जानते हैं, साहित्य सहित जीवन के अन्य क्षेत्रों में जब भी कोई कदम रखता है तो उसको परामर्श दिया जाता है, 'भाई समय रहते अपना कोई एक रास्ता (विधा) पहचान कर चुन लो, इधर-उधर अनेक रास्तों पर दृष्टि रखोगे तो यहाँ के रहोगे न वहाँ के, यानी मंजिल से भटक जाओगे। एक रास्ता पकड़ना जरूरी है यानी एक साधे सब सधै..!" परन्तु मेरी दृष्टि में गोविंद शर्मा जी एक ऐसे विरले सृजनकार हैं जो एक नहीं अनेक मार्गों पर चले और हर मार्ग पर सतत चलते हुए सफलतापूर्वक शिखर तक पहुँचे।

वे राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में सांगरिया जैसे अल्पज्ञात कस्बे में शहरों महानगरों की भीड़ व चकाचौंध से दूर निरन्तर साहित्य सृजन में एक तपस्वी की भाँति लगे हुए हैं। कोई उन्हें बाल साहित्यकार के रूप में जानता है और जाने भी क्यों नहीं बाल साहित्य पर सभी विधाओं में उनकी लगभग तीन दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी रचनाएँ बच्चों के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं और उन्हें अनेक बालसाहित्य के प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं। इसके साथ ही गोविंद जी की दूसरी पहचान एक सिद्ध व्यंग्यकार की भी है। नियमित रूप से देशभर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनके व्यंग्य हमें पढ़ने को मिलते हैं और आपके दो व्यंग्य संग्रह "कुछ नहीं बदला" और "जहाज के नये पंछी" प्रकाशित होकर पाठकों का स्नेह पा चुके हैं। इसके साथ ही पाठक उनकी नियमित लघुकथाएँ भी लगभग प्रतिदिन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ ही रहे हैं और इसका प्रमाण रामदीन का चिराग', 'एक वह कोना' और 'खेल नम्बरों का लघुकथा संग्रह प्रकाशित होकर पाठकों के सम्मुख हैं, फिर साथ ही जीवनी साहित्य पर उनकी दो कृतियाँ 'स्वामी केशवानन्द' एवम् 'खूबराम-सत्यनारायण सर्राफ प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही सम्पादन के क्षेत्र में भी अपनी महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ दर्ज करवाते हुए अनेक पत्रिकाओं और कृतियों का सृजन किया है।

केवल उन्होंने हर विधा में लिखने के लिए ही नहीं लिखा है, सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए नहीं बल्कि जिस विधा में लिखा भरपूर लिखा और डूब कर लिखा, इसीलिए उन्हें हर विधा के पाठकों का भरपूर स्नेह प्राप्त है। समीक्ष्य लघुकथा कृति 'खेल नम्बरों का में उनकी समय-समय पर लिखी गई 151 बेहतरीन लघुकथाओं का संकलन है। उनकी इन लघुकथाओं के बारे में वरिष्ठ लघुकथाकर डॉ रामकुमार घोटड़ ने 'बुलंदियों की ओर कदम बढ़ाती ये लघुकथाएँ' शीर्षक से एक लंबा आलेख लिखा है जिसमें विस्तार से इन लघुकथाओं के कथ्य-शिल्प और सौंदर्य की चर्चा की गई है जो महत्त्वपूर्ण बात वे इस आलेख में लिखते हैं - गोविंद जी की लघुकथाएँ वास्तव में विशिष्ट शैली की लघुकथाएँ हैं जो वास्तव में लघुत्तम रूप लिए होती हैं, उनकी कोई भी लघुकथा, लघुकथा के मापदंडों से बाहर निकलती नहीं दिखाई देती। 'इस महत्त्वपूर्ण लघुकथा संग्रह की भूमिका लिखी है सुपरिचित रचनाकार डॉ. अखिलेश पालरिया (अजमेर) ने। वे लिखते हैं 'गोविंद जी की लिखी प्रत्येक लघुकथा किसी बिंदु व परिस्थिति को उजागर कर हमारे मष्तिष्क को भेदने की पूर्ण क्षमता रखती है।'

संग्रह की सभी लघुकथाएँ विषयों की विविधता लिए अपने तीखे तेवर और कलेवर के साथ पाठकों से मुखातिब होती हैं आपकी लघुकथाओं की भाषा में व्यंग्य का पैनापन उन्हें प्रभावी और मारक बनाता है। आइये सँग्रह में प्रकाशित उनकी कुछ लघुकथाओं पर दृष्टि डालें। 'ज्ञापन' पहली लघुकथा पढ़ते ही पाठक को अन्य लघुकथाओं का अनुमान हो जाएगा, कैसे एक राजनेता समय के साथ कुर्सी पाते ही पुरानी बातें भूल जाता है। उस पर सटीक प्रहार है। 'बोझ लघुकथा बताती है बच्चों के लिए घर के बुजुर्ग कैसे बोझ बन जाते हैं और वह वृद्धाश्रमों में रहने को विवश हैं। इसके लिए आर्थिक आधार कोई महत्त्व नहीं रखता। बड़ा तीर्थ' यानी रोटी जिसके लिए आदमी दिन भर खटता है, रोटी नहीं तो कुछ नहीं। सब तीर्थ व्यर्थ।

भूखे भजन न होहिं गोपाला। 'इज्जत यात्रा' आदमी की मक्कारी का चित्रण, जरा जमीन से ऊपर उठा वह प्नकृति और पेड का दुश्मन बन जाता है। 'गैस प्रभाव' आदमी ऑक्सीजन खींचता है और कार्बनडाइआक्साइड छोड़ता है। इस नाते पेड़ भाई-भाई होकर एक दूसरे को नहीं काटते जबकि आदमी कैसा भाई-भाई है जो एकदूसरे को काटते हैं। 'विश्वास' लघुकथा यानी पशुओं पर भरोसा किया जा सकता है। उसके सिर्फ सींग होते हैं, पर आदमी का भरोसा नहीं। उसके पास कौन कौन से हथियार होते हैं, किससे हमला कर दे। सँग्रह की शीर्षक लघुकथा है 'नम्बरों का खेल', इसमें भी धनपति, खेतपति और कुर्सीपति के माध्यम से राजनीति के विद्रूप चेहरे को बेनकाब किया गया है।

सँग्रह की एक लघुकथा 'बराबरी पर दृष्टि डालें 'नेता जी और मतदाता आमने-सामने खड़े थे। मतदाता बोला- 'बड़ी समस्या है। हमारे घर में रोजाना चूल्हा नहीं जलता है।'

नेता जी बोले-'यह समस्या तो हमें भी हैं। दावतों पर सपरिवार बुलाने के रोज ढेरों निमंत्रण आते हैं, जाना ही पड़ता है और हमारा चूल्हा भी आग को तरसता रहता है।' इस प्रकार हम यहाँ कितनी ही लघुकथाएँ उद्धृत कर सकते हैं जिनमें आदमी की स्वार्थपरता, लोलुपता, सिद्धांतविहीन राजनीति, गरीबी और शोषण, समाज में पनपता कट्टरवाद जहाँ भी अवसर मिला, जहाँ भी विषमता दिखी गोविंद जी ने सशक्त प्रहार इन लघुकथाओं के माध्यम से किये हैं। उनकी लघुकथाएँ सकारात्मक सन्देश मानवीय मूल्यों की पक्षधर और समाज में नीति और नैतिकता की ध्वज वाहक हैं। एक महत्त्वपूर्ण लघुकथा संग्रह के लिए गोविंद जी को बहुत-बहुत बधाई जो न सिर्फ लघुकथा पाठकों के लिए पठनीय है बल्कि लघुकथा क्षेत्र के जिज्ञासु शोधार्थियों, नवोदित लघुकथा लेखकों का मार्गदर्शन भी करता है।

इस चौथे संग्रह की अधिकांश लघुकथाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पाठकों से सराहना पा चुकी है। अब यह संग्रह आप पाठकों की अदालत में पेश हुआ है। प्रकाशन के लिये श्री हिमांशु वर्मा (साहित्यागार, जयपुर) के प्रति आभार। मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।

- आपका गोविंद शर्मा

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