हिन्दी की 12 प्रतिनिधि लघुकथाएँ : समकालीन हिन्दी लघु कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Best 12 Short Stories in Hindi by Govind Sharma Ki Laghukathayein

Best 12 Short Stories in Hindi

नवनीत 12 हिंदी लघुकथाएं : लघुकथा हिन्दी संकलन खाली चम्मच संग्रह से गोविंद शर्मा की बारह लघुकथाएं 1. किरकिरी 2. बेघर 3. निर्दोष 4. लुप्त 5. बंदर 6. झूठ का वक्त 7. दहेज 8. डर 9. पेड़ बच गया 10. बाजार 11. महक 12. खनक आदि। बारह लघु कहानियां रोचक, ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद है, ये लघु कथाएं बच्चों और बड़ों को पसंद आयेंगे, गोविंद शर्मा की प्रतिनिधि लघुकथाएं समकालीन समाज के सभी पक्षों को लेकर लिखी हुई है, आधुनिक हिन्दी साहित्य जगत में लघुकथाकार के रूप में प्रसिद्ध है गोविंद शर्मा जी और वे प्रमुख बाल साहित्यकार और व्यंग्यकार भी है।


A Collection of Hindi Short Stories : 12+ Great Short Stories

किरकिरी हिन्दी लघुकथा : Kirkiri Laghu Kahani

1. किरकिरी

संवाददाता ने संपादक जी को फोन किया-सर, एक गलती हो गई-मैंने हमारे कस्बे की सड़कों के बारे में एक खबर भेजी थी कि...

हां, आज के पेपर में वह खबर छप गई है। अखबार नहीं देखा क्या अभी तक?

सर, खबर तो छप गई है। पर उसके साथ वह फोटो नहीं छपी, जो मैंने यहां के सड़कों पर बने गड्ढों की भेजी थी। उस फोटो की जगह चाँद पर बने गड्ढों की फोटो छाप दी गई है। सर, मैं तो चाँद पर कभी नहीं गया। लोग फोटो देखकर मजाक उड़ा रहे होंगे। मेरी किरकिरी हो रही होगी।

बिल्कुल नहीं, तुम्हारे यहाँ की नगरपालिका के अधिकारी का आश्वासन मैसेज भी आ गया है कि इन गड्ढों को पाटने का काम ठेकेदार को दे दिया गया है। कुछ दिनों में एक भी गड्ढा नजर नहीं आयेगा। तुम ज्यादा चाँद चाँदकर अपनी किरकिरी अपने हाथों मत करवाना।


हिन्दी बेघर लघु-कथा : Beghar Hindi Kahani

2. बेघर

पार्क के एक कोने में पेड़ पर घौंसला है। उसमें चिड़िया दंपति। पत्नी ने पति से कहा- उधर देखो, पार्क सूना है। फिर भी एक बैंच पर एक वृद्ध और एक वृद्धा बैठे हैं। ये लोग रोजाना ही यहाँ बैठकर अपना दिन काटते हैं। क्यों?

तुम कभी उड़ कर लोगों के घरों की तरफ नहीं जाती। तुम्हें सिर्फ खेत अच्छे लगते हैं। मैं जाता हूँ। अच्छा, बताओ, अपने बच्चे कहाँ है?

बड़े होते ही उड़ गये। कहीं अपना घौंसला बनाकर रह रहे होंगे।

हमारे बच्चे और इनके बच्चों में यही अन्तर है। हमारे बच्चे अपना घर खुद बनाते हैं। इनके वाले इनके घर के मालिक बनकर इन्हें बेघर कर देते हैं।


Innocent Short Story : Nirdosh Laghu-Katha

3. निर्दोष (Innocent)

उसकी अपनी सास से कभी नहीं बनी। वह कसूरवार नहीं थी। पर सास होने की धौंस में बहू को हर समय कटघरे में खड़ा रखा। एक दिन वह कटघरे से बाहर आकर सीधे सास के सामने खड़ी हो गई। बोली, आप हर समय मेरी गलतियाँ निकालती रहती हैं। किसी न किसी बात को लेकर मुझ पर दोष लगाती रहती हैं। आज मैंने सोचा है कि आपकी इस समस्या को दूर कर देती हूँ। कोई भी व्यक्ति संपूर्ण नहीं होता है। किसी में कोई तो किसी में कोई कमी होती है। फिर भी आप मुझे मेरी पाँच कमियाँ बता दें। मैं उन्हें दूर कर दूँगी। जरूरी नहीं कि अभी बताएँ, आप कल तक भी बता देवें। बस, एक बात का ध्यान रखें कि जो कमी या मेरी गलती आप बताएँ, वह गलती, कमी आपकी सास ने आप में न बताई हो और न ही मेरे ससुरजी आप में बताते रहे हों।

अगले दिन बहू को निर्दोष होने का प्रमाण-पत्र मिल गया।


लघु कहानी लुप्त : Hindi Short Story Extinct

4. लुप्त (Extinct)

चौराहे पर तांगों में जुड़े वे दो घोड़े पास-पास ही खड़े थे। एक ने दूसरे से कहा- कभी इस सड़क पर हम जैसे घोड़े बहुत होते थे। सब गायब हो गये। हम दो भाग्यशाली ही बचे हैं।

भाग्यशाली? इन सड़कों पर चलने वाले हम भाग्यशाली हैं क्या? ये टीं-टीं, पों-पों इतना धुआं छोड़ते हैं कि सांस लेना मुश्किल हो जाता है। हरेक टीं-टीं, पों-पों का धुआं पीछे की तरफ निकलता है। आदमी को दूसरे की आँख का तिनका दिखाई दे जाता है, पर अपनी आँख का शहतीर नहीं दिखता। इसलिये वह प्रदूषण के लिये दूसरों को दोष देकर खुद बेपरवाह बना रहता है। ऐसे भाग्यशाली होने की अपेक्षा लुप्त होना अच्छा है।


Hindi Monkey Short Story : Bandar Laghu-Kahani

5. बंदर (Monkey)

हमारे इलाके में बंदर नहीं होते हैं। कभी कोई भूला-भटका आ आता है तो वह सबके लिये अजूबा होता है। वह एक तमाशा होता है। उस दिन ऐसा ही हो रहा था। एक छोटी दीवार पर चढे बंदर को कोई केला दे रहा था तो कोई कुछ और। बंदर बड़े नखरे के साथ ले रहा था। बीच-बीच में उछल कूद कर नाच जैसा भी दिखा रहा था। लोग खुश हो रहे थे, ताली बजा रहे थे।

एक वह दूर खड़ा उस बंदर को देख रहा था। मैं उसके पास गया और पूछा क्या सोच रहे हो?

यही कि काश मेरे भी पूँछ होती। मैं भी बंदर की तरह तमाशा बन जाता। लोग मेरा नाच देखने के लिये केले या कुछ और खाने को देते, इंसान बन कर भूखा रहने से तो बंदर बन कर रहना ज्यादा ठीक लग रहा है।


Short Story Time to Lie in Hindi : Jhooth Ka Wakt Laghukatha

6. झूठ का वक्त (Time to lie)

उन्हें लगा, उनका 7-8 वर्ष का बेटा कुछ ज्यादा ही झूठ बोलने लगा है। उसकी यह आदत छुड़ाने के लिये कुछ करना ही होगा। एक दो बार उसे टोका। एक दिन उन्होंने डंडा उठा लिया और बोले- बता झूठ बोलना छोड़ेगा या नहीं? बेटा डंडे की मार का दर्द जानता था। बोला, अब झूठ नहीं बोलूँगा।

कभी नहीं बोलेगा?

हाँ, झूठ बोलने के वक्त ही झूठ बोलूँगा।

झूठ बोलने का वक्त?

यह क्या होता है?

जब आप घर के भीतर होंगे और बाहर दरवाजे पर खड़े अंकल को यह कहने के लिये मुझे भेजेंगे कि पापा घर पर नहीं है। बस, तभी झूठ बोलूँगा।

Dowry Short Stories in Hindi : Dahej Kahani

7. दहेज (Dowry)

सुधारकों के भाषण सुनकर, लेखकों के लेख पढ़कर मैंने निर्णय कर लिया था कि अपने बच्चों की शादी में न दहेज दूँगा, न लूँगा।

कुछ वक्त तो लगा, पर बेटी की शादी बिना दहेज दिये ही हो गई। पर रिश्तेदारों ने, कुछ परिचितों ने बुलाने पर भी शादी में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं की, यह सोचकर कि इस भुक्खड़ के यहाँ क्या जायें।

कुछ समय मन खिन्न रहा। फिर उन सबको मैंने खुश कर दिया, आने पर मजबूर कर दिया, बेटे की शादी में खूब दहेज लेकर।


Fear Short Stories Hindi : Dar Kahani Hindi Laghu-Katha

8. डर (Fear)

अभी सरकारी उद्घोषाणाएँ साकार होकर उन तक नहीं पहुँची हैं। इसलिये 14-15 वर्ष के वे दोनों सुबह ही अपनी-अपनी झोली उठाकर निकल पड़ते हैं। गलियों, बाजारों में फेंके हुए प्लास्टिक, बोतल, कार्टन, कागज संग्रह करते हैं। यह संग्रह ही उन्हें नाश्ता, लंच, डिनर देता है। एक जब बाईं तरफ वाली गली में मुड़ने लगा तो दूसरा बोला- इधर नहीं, उस आगे वाली गली से चलेंगे।

यार, क्या बात है तुम इस गली से नहीं निकलते हो? किसका डर सताता है तुम्हें वहाँ? उसका जिसने एक बार अपने को चोर कह कर पीट दिया था ? डर मत, आजकल वह इस गली में नहीं रहता है या लालकोठी वाले कुत्ते का? अरे यार, मुझे डॉगी कहना चाहिए था। आजकल कुत्ते को कुत्ता कह दो तो कुत्ता और उसका मालिक दोनों नाराज हो जाते हैं। उस डॉगी को आजकल बाँधकर रखा जाता है। तू उससे डर मत।

पहले को हँसी आ गई। बोला- डॉगी कहो या कुत्ता, वह खुला हो या बंधा, हम पर तो भौंकता ही है। उससे क्या डरना।

फिर क्या डर है तेरा उस गली में?

यार, उस गली में रोटियों की दुकान है। उस दुकान से बाहर आती हवा से भूख बढ़ जाती है। उस तकलीफ से बचने के लिये इस गली में नहीं जाता।


लघुकथा पेड़ बच गया : Short Story the tree was saved

9. पेड़ बच गया (The tree was saved)

पहले यहाँ सिर्फ गली और घर थे, तब भी वह बड़ा पेड था। फिर धीरे-धीरे बाजार भी इधर खिसक आया, तब भी पेड़ वहीं रहा। पहले पेड़ दुपहरी की गर्मी काटने, बड़े-बूढों के बतियाने, बच्चों के खेलने के काम आता रहा। फिर बाजार वालों की कारें, बाइक, आवारा' सांड ने इसकी छाया को घेर लिया। विकास हुआ और इसकी छाया पर नशेड़ियों, मनचलों और गुंडा टाइप ने कब्जा कर लिया। तब कुछ बाजार वालों की, बचे-खुचे घरों वालों की आँखें खुलीं और पेड़ के खिलाफ आवाजें उठने लगीं। इन सबका अगुआ वह था। एक दिन पता लगा कि पेड़ को जड़ से उखाड़ कर फेंकना मंजूर हो गया है। वह खुश हो गया।

अगले दिन उसकी बूढ़ी माँ ने उससे कहा- रात को मेरे सपने में वे आए थे। कह रहे थे- पेड़ को मत काटने दो।

वाह, माँ, गुंडे, नशेड़ी तुम्हारे सपने में आते हैं?

नहीं, वे नहीं। सपने में चिड़िया, तोता, कव्वा वगैरह आए।

वे मायूस थे कि हमारा घर उजड़ जायेगा। आधे कह रहे थे कि हम

इंसानों की तरह परजीवी नहीं है। हम अपने हाथों तत्काल अपना घाँसला दूसरी जगह बना लेंगे। पर माँ वह तुम्हारे से बहुत दूर होगा। ऐसे में हमें तुम्हारे द्वारा चुग्गा फेंकना बहुत याद आयेगा। बेटा, पेड़ न कटे तो...

बेटा यह सुनकर बिना बोले बाहर चला गया। माँ ने यह सपना कुछ और को भी सुनाया। पेड़ बच गया, पेड़ कटा नहीं। क्योंकि माँ ने पक्षियों की बात सुनी थी। बेटे और कुछ लोगों ने माँ की बात सुनी थी।

Laghukatha Bazar Hindi : Short Stories Bazar

10. बाजार (Bazaar)

मेरा मित्र क्रांतिकारी सामाजिक कार्यकर्ता है। वर्षों से नौकरी के साथ ही जनसेवा करता आ रहा है। आजकल वह बाजार, बाजारवाद के खिलाफ अभियान चला रहा है। लोगों को आगाह कर रहा है कि बाजार ने हमारी जिंदगी पर कब्जा कर लिया है। उससे बचने की जरूरत है।

मैं काफी समय के बाद मिला तो उसने बताया कि बाजारवाद के खिलाफ उसने एक किताब लिखी है काफी मोटी है, कीमत सिर्फ एक हजार रुपये है।

एक हजार रुपये? आजकल कुछेक को छोड़ दें तो अधिकांश पुस्तकें लेखक के खर्च पर ही छपती हैं। तुम अपनी तनख्वाह से इतना धन बचा लेते हो कि इतनी मोटी किताब छपवा सको?

कहाँ यार, तनख्वाह से तो घर का खर्च भी नहीं चलता। मैंने क्या किया, घर की बैठक में थोड़ा परिवर्तन कर उसे दुकान बना दिया। उसका अच्छा खासा किराया आने लगा। यही मानो कि उस दुकान के किराये की आय से ही, बाजारवाद के खिलाफ यह पुस्तक छपवा सका हूँ। बाजार- सा बन गया है। सोचता हूँ साथ वाले कमरे को भी दुकान बनाकर किराये पर चढ़ा दूँ। हम सब भीतर वाले एक कमरे में शिफ्ट हो जायेंगे। थोड़ी तकलीफ तो होगी, पर दुनिया में ऐसे परिवार भी बहुत हैं जिन्हें एक भी कमरा नसीब नहीं है।


महक छोटी सी लघुकथा : Hindi Short Stories

11. महक (Mehak)

वह अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने जा रहा था। फूल बेचने वाले ने उसकी चाल से ही पहचान लिया। बोला- साहब, आप गर्लफ्रेंड से मिलने जा रहे है। उसके लिये ये फूल लेते जाएं, बहुत प्यारी महक है इनमें। वह सूंघ कर खुश हो जायेगी।

कितने का है यह गुलदस्ता?

साहब, सिर्फ एक सौ रुपये का।

'अच्छा लाओ' कहते हुए उसने अपनी जेब से पर्स निकाला, उसमें झांका। पैसे निकालने को हुआ, फिर वापस पर्स को अपनी जेब में रख लिया।

हैरान फूल वाला बोला- क्या हुआ साहब, क्या पर्स में एक सौ रुपये नहीं है?

है।

सौ सौ के कई नोट हैं।

फिर आप महक का यह तोहफा खरीद क्यों नहीं रहे?

मुझे याद आ गया। उसे फूलों से ज्यादा नोटों की महक प्यारी लगती है।

फूल वाला कह नहीं सका कि मुझे भी वह महक चाहिए।


खनक हिन्दी कहानी छोटी सी : Laghukatha Lekhan

12. खनक (The sound of a sound)

वह भूखा भी भूखों की लाइन में मेरे साथ ही बैठा था। लंगर वालों को भोजन के साथ हमारी ओर आते देख, दूसरों की तरह मेरी बुझी आँखों में भी चमक आ गई थी। पर उसकी आँखें और ज्यादा बुझ गई। उसे गुस्सा भी आ गया। गुस्से में लंगर वालों के लिये गालियाँ बड़बड़ाने लगा। मुझे हैरानी हुई, पूछा तो बोला- अब ये खाना खिला देंगे, भूख मिट जायेगी। उसके साथ ही ताकत चली जायेगी। अब किसी के आगे हाथ फैलाकर नहीं कह सकूंगा कि कल से भूखा हूँ। दस पाँच रुपये दें ताकि खाना खा सकूं। इसके जवाब में दस जगह से दुत्कार मिलती है तो कुछ जगह से एक दो के सिक्के भी मिल जाते हैं। जेब में कुछ सिक्के हों तो उनकी खनक सुनाई देती रहती है। सिर्फ रोटी के लिये कौन रोता है, सारी दुनिया में सदा से ही, संन्यासी हो या गृहस्थी, अमीर हो या गरीब, सेवक हो या शासक सब सिक्कों की खनक सुनते रहना चाहते हैं। उसी खनक के पीछे दौडते हैं. इस खनक के लिये युद्ध-महायुद्ध होते हैं, लोग मरते हैं, रोटी का क्या है, कहीं भी मिल जाती है।

वह लंगर वालों द्वारा वितरित खाना तो खा रहा था, पर लगा, जैसे उसका आज का दिन मारा गया।

- गोविंद शर्मा

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