पेड़ों का महत्व पर अंतरराष्ट्रीय मेरा वृक्ष दिवस विशेष बाल कहानी : पेड़ बच गया

Dr. Mulla Adam Ali
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Motivational Children's story on International My Tree Day : Bal Kahani Ped Bach Gaya

Bal Kahani Ped Bach Gaya

अंतरराष्ट्रीय मेरा वृक्ष दिवस पर पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी प्रेरक बाल कहानी पेड़ बच गया : इंटरनेशनल माय ट्री डे हर साल जुलाई के अंतिम रविवार को अंतरराष्ट्रीय मेरा वृक्ष दिवस मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय मेरा वृक्ष दिवस की शुरुआत 2010 में जिला शहीद भगत सिंह नगर में नवांशहर से हुई थी। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि आज यह दिवस विश्व स्तर पर मनाए जाने लगा है। अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए हमें पेड़ को बचाए रखना जरूरी है, प्रकृति की रक्षा करना हमारा प्रथम कर्तव्य है। बच्चों में पेड़ों के लिए प्रेम भावना जगाने के लिए पेड़ों का महत्व को समझाने के लिए कहानी एक सर्वश्रेष्ठ मध्यम है, बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा ने इसलिए पर्यावरण संरक्षण पर बच्चों में जागरूकता हेतु दिलचस्प पर्यावरण बाल कथाएं : पेड़ और बादल लिखी है। पेड़ और बादल कथा संग्रह है, इसमें पर्यावरण से संबंधित बालकथाएं है, ये कथाएं पर्यावरण चेतना की कहानियां हैं। तो चलिए पढ़ते है पर्यावरण दिवस पर वृक्षों का महत्व पर रोचक बाल कहानी पेड़ बच गया।

Moral Stories for Kids : The tree survived

पेड़ बच गया

नहर के किनारे पर है वह पेड़। उतना ही पुराना, जितनी पुरानी नहर। पानी की कमी नहीं थी, फल-फूल रहा था। उस पर अनेक पक्षियों ने अपना बसेरा बना लिया था तो राहगीर उसकी छाया को वरदान कहने लगे। जो भी उसे देखता, कोई न कोई तारीफ जरूर करता। कोई कहता, इसके पत्ते सुंदर हैं, कोई टहनियों, शाखाओं के विकास को सुंदर बताता। कोई उसके तने को ऐसे देखता जैसे किसी बॉडी बिल्डर के पैक्स को देखा जाता है। इन तारीफों से पेड़ गद्गद् हो जाता, पर उसी पेड़ की जड़ नाराज होने लगी। सबसे ज्यादा उपयोगी तो मैं हूँ, मेरा कोई नाम नहीं लेता है। मैंने धरती को मजबूती से पकड़ रखा है। इसलिए कोई भी आंधी-तूफान इसे गिरा नहीं सका है। आसपास से पानी और शक्ति चूस कर मैं इस पेड़ के शरीर का पोषण करती हूँ, पर मुझे कोई श्रेय नहीं देता। मेरे त्याग, मेरे काम की कोई तारीफ नहीं। जड़ कुछ दिन तो उदास रही, पर एक दिन उसने हड़ताल करने का फैसला ले लिया। उसने पेड़ से साफ कह दिया-काम मेरा और नाम तुम्हारा, ऐसा नहीं चलेगा।

आज से मैं पानी चूसकर तुम्हारी नसों में पहुँचाना बंद करती हूँ। अब यदि आंधी- तूफान आया तो मैं धरती को पकड़कर बैठी नहीं रहूँगी।

पेड़ को उसकी बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ। बोला, क्या कह रही हो तुम। सब जड़ों की तारीफ करते हैं। जड़ों से जुड़े रहने की सीख देते हैं। उसी पेड़, भवन, किले को मजबूत माना जाता है, जिसकी नींव, जड़ मजबूत हो। अगर तुम धरती से पानी या दूसरी शक्ति मुझ तक नहीं पहुँचाओगी तो मेरे साथ तुम भी सूख जाओगी। यदि आंधी- तूफान में तुम धरती को पकड़े नहीं रखोगी तो मैं तो गिरूँगा ही, तुम भी धरती से बाहर आ जाओगी।

जड़ बोली-अच्छा ही होगा, मैं भी बाहर की दुनिया देख लूँगी। मैं क्यों जमीन में दबी रहूँ।

पेड़ ने उसे बहुत समझाया, पर उसने एक भी बात नहीं मानी। उसने जल हड़ताल शुरू कर दी। कुछ दिन बाद की बात है। प्यास के मारे पेड़ का गला सूख रहा था। वह बोल नहीं पा रहा था। लेकिन सुन सब कुछ रहा था। वहाँ दो आदमी आए। नहर का रख-रखाव उनकी जिम्मेदारी थी। उनमें से एक बोला- यह पेड़ बहुत पुराना हो गया है। इसकी जड़ें दूर-दूर तक फैल गई होंगी। इसकी जड़ से कभी भी नहर की दीवार टूट सकती है। यदि दीवार टूट गई तो नहर का पानी बेकार बहेगा। साथ ही आस पास के मकानों और खेतों को नुकसान पहुँचेगा। इसलिये इस पेड़ को यहाँ से हटा देना चाहिए।

दूसरा बोला-इसका तना बहुत मजबूत है। इससे बहुत-सा सामान बन सकता है। पर हमें तो इसकी जड़ों की चिंता करनी चाहिए। हम पहले इसकी जड़ काटकर फेंकेंगे ताकि वे नहर की दीवार की ओर न बढ़ें। फिर पेड़ तो अपने आप..... उखड़कर गिर पड़ेगा। पर... नियमानुसार हमें पहले अपने उच्चाधिकारियों से अनुमति लेनी होगी।

वे दोनों बात करके चले गये। उनकी बातें सुनकर पेड़ का गला और ज्यादा सूख गया। उनकी बातें जड़ ने भी सुन लीं। पेड़ और जड़ दोनों चिंता में डूब गये। पेड़ मुश्किल से बोला-अब तो खुश हो न ? तुम्हें उखाड़कर बाहर फेंक देंगे। उसके बाद दुनिया देखते रहना... मेरा बोझ उठाने से, मेरा काम करने से मुक्ति मिल जायेगी।

जड़ ने कहा-नहीं, नहीं। मैं यह नहीं चाहती थी। मैं जहाँ हूँ, वहीं ठीक हूँ। मुझे न तारीफ चाहिए, न बाहरी दुनिया।

पता नहीं, कैसे मुझे तुमसे ईष्यां हो गई थी। बताओ, हम क्या करें कि दोनों यहाँ इसी तरह रह सकें?

अब मैं क्या बता सकता हूँ। चलती आदमी की मरजी ही है। यदि आदमी ने अपना भला सोचा तो निश्चय ही हमारा भी भला हो जायेगा। हम खड़े रहते हैं, आदमी भागता- दौड़ता है। उसे ऑक्सीजन और शुद्ध पर्यावरण तो हम ही देते हैं।

कुछ देर बाद एक कार वहाँ आकर रुकी। उसमें से वही दो आदमी और एक अन्य उतरे। वह कोई अधिकारी था। उसने पेड़ को देखा, जहाँ पर पेड़ था, वहाँ से नहर की दूरी नापी। फिर कहा-नहीं, इस पेड़ को हटाने की जरूरत नहीं है। इस वर्ग के पेड़ की जड़ सीधे नीचे की ओर जाती है, इधर-उधर कम फैलती है। इस पेड़ से अभी कई वर्ष तक नहर की दीवार को कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा।

यह बात करके वे लोग तो वहाँ से चले गये। उनकी बात ने पेड़ और जड़ दोनों को प्रसन्न कर दिया। जड़ खुश-खुश धरती से पानी चूसकर पेड़ को पहुँचाने लगी। पेड़ खुशी से झूम उठा। उस समय उस पेड़ के नीचे बैठे एक राहगीर ने कहा - अहा, कितनी ठंडी छाया दे रहा है यह पेड़। हवा भी कितनी शीतल है इसके पास। दिल करता यहीं बैठा रहूँ।

पेड़ ने खुश होकर जड़ से कहा-सुनो, किसी का भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता। सभी काम अच्छी तरह सफल तभी होते हैं, जब मिल-जुलकर करें। यदि तुम अपना काम बंद कर दोगी तो मेरे सारे पत्ते सूख कर झड़ जायेंगे। मैं खुद भी सूख कर दूँठ हो जाऊँगा। फिर मुझे यहाँ कोई नहीं रहने देगा। जड़ ने कहा- नहीं-नहीं, मैं अपना काम कभी बंद नहीं करूंगी। मैंने धरती को मजबूती से पकड़ लिया है, तुम जितना मरजी, झूम सकते हो...।

- गोविंद शर्मा

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