संवेदना और कुंठा के अभिव्यक्ता : प्रेमचन्द

Dr. Mulla Adam Ali
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Kalam Ka Siphayi Munshi Premchand Jayanti

Munshi Premchand Jayanti

Munshi Premchand Birth Anniversary : मुंशी प्रेमचंद एक ऐसे साहित्यकार है जो संवेदनाओं को अपनी रचनाओं में समेट कर रखा है, उनके कहानियां और उपन्यासों में हमें यथार्थ जीवन का चित्रण देखने को मिलता है, आज उस महान साहित्यकार की जयंती पर उनके रचनाओं पर विशेष आलेख पढ़िए, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जन्मदिन पर विशेष।

संवेदना और कुंठा के अभिव्यक्ता : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमचन्द मानव मन की संवेदनाएँ एवं कुंठा के कुशल अभिव्यक्ता है। मानव संस्कृति के आंतरिक एवं बाह्य अनुभूतियों को व्यथा के रूप में प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करना ही सृजन कहलाता है। ये संवेदनाएँ ही मानव के गहन विराट स्वरूप का मानव रूप में मूल्यांकन पाती हैं। कथा मानव जीवन की मूल वृत्तियों एवं उसकी बौद्धिक आवेगों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति का स्रोत है।

प्रेमचन्द ने इन भावनाओं, संवेदनाओं, कुण्ठाओं को सहज रूप में प्रस्तुत किया जो मनुष्य की मूल प्रवृत्ति है। प्रेमचन्द के विशाल अनुभव की पकड़ के कारण प्रत्येक पात्र अपने आप में अपने पुरुषार्थ से भाग्य निर्माण करता है। समय के साथ बदलते हुये जीवन के मानदण्डों एवं मूल्यांकन का मूल आधार यही संवेदनाएँ हैं। मानव मन की निरन्तर परिवर्तनशीलता की प्रक्रिया सर्जनात्मक शक्ति की कसौटी बनती जाती है।

प्रेमचन्द ने परस्पर विरोधी स्थितियों, मान्यताओं, संघर्षों, आदशों के बीच सहज रूप से मानव मन की संवेदनाओं को चरम सीमा में पहुँचा कर ढलान पर उतार देने की क्षमता प्रदर्शित की है। वे आभिजात्य एवं भारतीय संस्कृति के परम्परागत रिवाजों, रूड़ियों, मूल्यों एवं निष्ठा के भी अवधारक थे। सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक एवं जन-जीवन की अवधारणा से सुपरिचित जागृत मनोविज्ञान वेत्ता थे। वर्ण व्यवस्ता, छुआछूत की अमानवीय क्रूरताओं एवं शोषण, तिरस्कार का जीवन्त परिप्रेक्ष उपलब्ध कराते थे कि वे संवेदनायें अपने अन्दर भी उथल-पुथल का चक्रवात पैदा करने में सफल होती हैं। प्रेमचन्द का जीवन आर्थिक अभावों, विषमताओं से प्रभावित था। भुक्त भोगी ही गरीबी की अभिव्यक्ति को प्राणवान बना सकता है। गरीबी के कष्टों का वर्णन करना और गरीबी भोगना में जमीन आसमान का अंतर होता है। प्रेमचन्द की संवेदनाएँ पात्रों के श्वास उच्छवास को भी प्रभावित करती थीं।

मानव मन की अनुभूतियों एवं संवेदनाओं को यथार्थ का जामा पहना कर कहानी को चिरस्मरणीय तत्वों से पूरित करने में प्रेमचन्द जनमानस के प्रिय चितेरे बन सके। प्रत्येक पात्र की जीवन शैली, वस्तु स्थिति समझने का मापदण्ड अलग-अलग होते हुए भी मनोविश्लेषणात्मक ढंग से उनका साहित्य अद्वितीय रहा है। व्यक्ति अनुभूति जब समष्टि वनती है तब वह लोकजीवन का प्रतिनिधित्व करने लगती है और रचनाकार का शिल्पविधान सृजनात्मकता की कसौटी होने लगता है। प्रेमचन्द के कथा पात्र नायक-नायिकाएँ आज भी हमारे समाज में आज भी जीवन्त हैं।

प्रेमचन्द की कहानियों का परिवेश अलग-अलग होने पर भी सामाजिक, मानवीय समस्याओं और वृत्तियों एवं क्रिया कलापों को अलग-अलग परिणाम देकर मानव सहज भाव पैदा कर उन्होंने पाठकों को अभिभूत किया है। कहानियों की वेदना, कुण्ठा भारतीय संस्कृति की अवधारणाओं से गहनतम रूप से अभिभूत है। आदर्श और उदात्त चेतना दबकर मूल आन्तरिक परम्परा को पोषित करने में सफल होती है। कितनी भी परिवर्तनशील परिकल्पना हो विफल होने में देर नहीं लगती।

निर्मला हो जालपा, होरी या विधवा दुलारी, महावीर चमार या अलगू चौधरी और जुम्मनशेख, पूस की रात का हल्कू किसान, ठाकुर का कुआँ की गंगी इनकी करुण संवेदनाएँ अपना स्थायी प्रभाव समाज पर प्रभाव डालती है। आजीवन पाठक इन पात्रों को नहीं भूल पाता।

अनुभूति और अभिव्यक्ति का शिल्प विधान ही किसी रचनाकार की रचना की सदा- काल जयी बनने की क्षमता प्रदान करता है। यह कला-रचना ही प्रेमचन्द को उपन्यास सम्राट की पदवी देने में सहायक हुआ है। प्रेमचन्द की संवेदना, कल्पना, भाव अनुभूति का गहन ज्ञान ही हर नये पात्र की अनुभूति को प्रकट करने की क्षमता प्रदान करती है।

प्रेमचन्द की कहानियों में नवीन चेतना की ज्योति, मान्यतायें और उनके मानवीय मूल्यों का टकराव कदम-कदम पर दिखाई देता है। गाँधी विचारधारा, पाश्चात्य संस्कृति एवं अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव उनके कथ्य के पृष्ठभूमि को सुदृढ़ करता है।

प्रेमचन्द के नारी पात्र पुरुष पात्रों के मुकाबले अधिक संवैद्य एवं कुंठित वेदना ग्रस्त होने के बावजूद अपने नैतिक कर्तव्यों से बंधे हुए हैं। रूढ़ियों की पकड़ ढीली करने की छटपटाहट उनमें अभिव्यक्त हुई है। प्रेमचन्द नारी मनोभावों के प्रखर ज्ञाता होने के कारण वे नारियाँ आज भी समाज में जीवन्त हैं। उनके नारी पात्र बहुत मंजे हाथों निखार पाती हैं। नारी शक्ति का परचिय देने में वे सफल हैं।

- डॉ. कान्ति अय्यर

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