Nanhi Duniya : Bal Kavita - वे ही दिन बस अच्छे लगते

Dr. Mulla Adam Ali
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Ve Din Bas Achhe Lagte Hai

poem on childhood memories

Bal Kavita In Hindi : मुट्ठी में है लाल गुलाल (बाल कविता संग्रह) से प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल कविता वे ही दिन बस अच्छे लगते, बालमन की रोचक हिंदी बाल कविता वे ही दिन बस अच्छे लगते, पढ़िए मजेदार बाल गीत (bachpan poems in hindi) और शेयर कीजिए।

Poem on Childhood Memories

वे ही दिन बस अच्छे लगते


मुझसे पूछो, माँ बापू से,

मैं क्यों कर गुस्सा रहती हूँ?


बापू ऑफिस जा चुकते हैं,

जब तक हूँ मैं सोकर उठती।

रात देर जब घर आते वे,

मैं उनको हूँ सोती मिलती।

रविवार के दिन ही केवल,

मैं बापू से मिल सकती हूँ।


माताजी मुझको मोटर में,

सुबह आठ पर रख आतीं है।

मुझे मानतीं मात्र पार्सल,

डाक समझकर भिजवाती है।

सात दिनों में पूरे छ:दिन,

मैं यह सब सहती रहती हूँ।


तीन बजे जब छुट्टी होती,

मैं शाळा से घर आती हूँ।

माँ चल देती किटी पार्टी,

मैं ही घर में रह जाती हूँ।

अपना दर्द बताऊँ किसको,

कहने में भी तो डरती हूँ।


कभी-कभी ही दादा-दादी,

यहाँ गाँव से आ पाते हैं।

परियों या राजा-रानी के,

किस्सों से मन बहलाते हैं।

वे ही दिन बस अच्छे लगते,

जब झरना बनकर झरती हूँ।


- प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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