Ritu Verma's "Uljhan" is a heartfelt reflection on the inner turmoil between the heart and mind. Through simple yet powerful questions, the poet captures the pain of accepting truth and the lingering weight of past memories. The poem resonates with anyone who has silently struggled with emotional chaos.
Mann Ki Uljhane
यह कविता "उलझन" मन के उस गहरे द्वंद्व को दर्शाती है जहाँ सच सामने होते हुए भी उसे स्वीकारना कठिन हो जाता है। भावनाओं, दर्द और आत्ममंथन से भरी एक संवेदनशील रचना।
मन की उलझन
न जाने ये मन क्यों इतना उलझा रहता है..
जानता है वास्तविकता क्या है?
पर उसे स्वीकारना क्यों नहीं चाहता है?
मन के इस कशमकश में
एक व्यथा सी रहती है,
सच से अवगत होते हुए भी
वो बातें इतनी क्यों चुभती है?
मन के इस कोलाहल में
इतनी भीड़ क्यों रहती है?
दिल और दिमाग के द्वंद्व
में सब कुछ उथल-पुथल सा लगता है,
लगता है कोई पीड़ा नहीं जीवन में
फिर क्यों इतना दर्द सा रहता है?
सब कुछ है जीवन में फिर भी
क्यों रिक्त सा लगता है?
कभी-कभी सच को स्वीकारना
इतना कठिन क्यों हो जाता है?
माना कि सब बीत चुका है फिर
वो आज में हावी क्यों हो जाता है?
जब भी जीवन में लगता सब ठीक हो रहा
कुछ बीती बातें इतना दर्द क्यों दे जाता है?
जीवन में सब रंग आते-आते अचानक
सब बेरंग क्यों हो जाता है।
- रितु वर्मा
नई दिल्ली
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