दिन में सौ चाँद: चतुर खरगोश और राजा शेर की मजेदार बालकथा

Dr. Mulla Adam Ali
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यह एक मनोरंजक और शिक्षाप्रद बाल कहानी है, जिसमें चतुर खरगोश अपनी बुद्धिमानी से राजा शेर को दिन में सौ चाँद दिखा देता है। कहानी सिखाती है कि समझदारी और सूझबूझ से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

हिंदी बाल कथा: दिन में सौ चाँद

हिंदी बाल कथा दिन में सौ चाँद

चतुर खरगोश और राजा शेर की मजेदार बाल कहानी

दिन में सौ चाँद

एक दिन राजा शेर ने अपने नवरत्नों की परीक्षा लेने की सोची। उसने सभी को रात के समय जंगल के मैदान में इकट्ठे होने के लिए कहा। वह पूर्णिमा की रात थी। चारों तरफ चाँदनी छिटकी हुई थी। राजा शेर ने पूछा, "बताइये, इस समय सबसे ज्यादा सुन्दर क्या है?"

हाथी बोला, "राजा साहब, इस समय तो आप ही सबसे ज्यादा सुन्दर दिखाई दे रहे हैं।"

"अरे, हाथीराम, यह चमचागीरी दिन के लिये छोड़ दो। कोई और बताये", राजा शेर बोला।

बघेरे ने कहा, "राजा साहब, इस समय तो हमारे राजा और हम आपके नवरत्न ही सबसे ज्यादा सुन्दर दिख रहे हैं।"

"अपने मुँह मियाँ मिट्टू मत बनो। कोई अक्ल की बात करो।"

सब अपनी-अपनी कह चुके तो नन्हें खरगोश की बारी आई। उसने कहा, "राजा साहब, इस समय तो चन्द्रमा ही सबसे ज्यादा सुन्दर लग रहा है। न केवल अकेला वही, बल्कि जहाँ-जहाँ भी उसकी किरणें पहुँच रही हैं, सुन्दरता बिखरी पड़ी है।"

"वाह, खरगोश तुमने तो मेरे मन की बात कह दी। मैं चाहता हूँ कि बस इस चाँद को देखता रहूँ।

पर थोड़ी देर बाद ही नींद आ जायेगी। यह चाँद अगर दिन में दिखाई दे तो मैं इसे सारा दिन देखता रहूँ। क्या तुममें ऐसा कोई है जो दिन में चाँद दिखा दे?"

राजा शेर की बात सुनकर कोई नहीं बोला। थोड़ी देर बाद खरगोश ने कहा, "दिन में एक ही चाँद क्यों, मैं आपको सौ चाँद दिखा सकता हूँ।"

उसकी यह बात सुनकर शेर सहित सब हँस पड़े। शेर बोला, "खरगोश, थोड़ी देर पहले तुमने जितनी बुद्धिमत्ता की बात कही थी, अब उतनी ही मूर्खता की बात कह रहे हो। दिन में चाँद कैसे दिखाओगे?"

"अगर मैं दिखा दूँ तो?"

"तुम्हें मुँहमाँगा इनाम दिया जायेगा।"

दूसरे दिन दोपहर के समय राजा शेर और उसके सारे दरबारी एक बड़े पेड़ के नीचे बैठे थे। खरगोश अभी आया नहीं था। आये भी कैसे, वह शर्त जीतने के लिये तैयारी कर रहा था।

मोरों से बात करके वह उस बड़े पेड़ के नीचे बैठे राजा शेर के पास पहुँचा। उसे देखते ही शेर बोला, "भाई खरगोश, अभी तक सौ तो क्या तुमने हमें एक भी चाँद नहीं दिखाया है। कब दिखा रहे हो?"

"अभी कुछ ही मिनटों में आपकी यह इच्छा पूरी हो जायेगी। देखिये वे मोर आ रहे हैं। इन्हें मैंने ही बुलाया है। ये आपको नाच दिखायेंगे। आप कुछ देर अपना मन मयूर नृत्य देखकर बहलायें। फिर आपको अनेक चन्द्रमा दिखाऊँगा।"

मोरों ने अपने पंख फैलाये और नाचना शुरू कर दिया। उनका नाच इतना मनमोहक था कि राजा शेर मुग्ध हो गया। नाच पर मोहित शेर को छेड़ते हुए खरगोश बोला, "क्यों साहब, मोर कैसे लग रहे हैं?"

"सुन्दर, बहुत सुन्दर।"

"मोरों का नाच कैसा लग रहा है?"

"सुन्दर, बहुत सुन्दर।"

"मोरों के पंख कैसे लग रहे हैं?"

"सुन्दर, बहुत सुन्दर।"

"मोरों के पंखों के सिरे पर जो चंदोवा या चाँद है, वह कैसा लग रहा है?"

"सुन्दर, बहुत सुन्दर।"

"आपको ऐसे सुन्दर कितने चाँद दिखाई दे रहे हैं?"

"मैंने गिने नहीं, पर सौ से ज्यादा चाँद तो दिखाई दे ही रहे हैं।"

"बस, मैं आपके मुँह से यही सुनना चाहता था।"

खरगोश ने इशारा किया और मोरों ने नाचना बन्द करके अपने पंख समेट लिये। खरगोश बोला, "राजा साहब, आपने सौ से ज्यादा चाँद देख लिये हैं। मैं शर्त जीत गया हूँ।"

राजा शेर अपने मुँह से कह चुका था कि वह चाँद देख रहा है। इसलिये ना नहीं कर सका। शेर ने खरगोश की अक्ल का लोहा माना और उसे खूब इनाम दिया।

- गोविंद शर्मा

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