दिन में सौ चाँद – बाल साहित्य की नींव को मजबूत करने वाली कालजयी कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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‘Din Mein Sau Chaand’ is a remarkable collection of children’s stories by Govind Sharma, blending values and imagination with simplicity and charm."

‘दिन में सौ चाँद’ : बालकथा संग्रह

दिन में सौ चाँद बालकथा संग्रह

बाल साहित्य की मजबूत नींव रखने वाले गोविंद शर्मा का नया बालकथा संग्रह

बात मजबूत आधार की...

कहते हैं जिस मकान, भवन, मीनार या दुर्ग की नींव मजबूत होती है, वह सदा सुरक्षित रहता है। उसके गिरने की आशंका नहीं रहती है। वैसे यह बात सिर्फ मकान-ईट-पत्थरों से बने ढाँचों के लिए ही नहीं, साहित्य के लिए भी कही जा सकती है। यह मुझे तब याद आया जब श्री गोविंद शर्मा के बालकथा संग्रह 'दिन में सौ चाँद' की पांडुलिपि को मैंने पढ़ा। श्री गोविंद शर्मा को बाल साहित्य की रचना करते पचास से अधिक वर्ष हो गए हैं। अकेले बाल साहित्य की उनकी पचास से ऊपर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। उनकी बीस के करीब पुस्तकों का अनुवाद उड़िया भाषा में तथा सात पुस्तकों का मराठी में और एक-एक, दो-दो का भारत की अन्य कई भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। मुझे खुशी है कि श्री गोविंद शर्मा की अधिकांश पुस्तकों का प्रकाशन हमारे संस्थान साहित्यागार से हुआ है। वह राजस्थान के एकमात्र हिंदी बालसाहित्यकार हैं जिन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च बाल साहित्य पुरस्कार 2019 में मिला। यह पुरस्कार हमारे यहाँ से प्रकाशित उनके बालकथा संग्रह 'काचू की टोपी' पर उन्हें मिला था।

अब बात करते हैं नींव के मजबूत आधार की। उन्होंने 1971-72 से लिखना शुरू किया था। प्रारंभ में बालकथाएँ और व्यंग्य ही लिखे। व्यंग्य की बात फिर कभी। अभी बाल साहित्य की बात करते हैं। पिछली सदी के सातवें दशक में लिखी गई बालकथाएँ 'दिन में सौ चाँद' में है। उन्हें पढ़ा तो यह जरा भी महसूस नहीं हुआ कि यह किसी नवोदित लेखक की प्रारंभिक रचनाएँ है, बल्कि ऐसा लगा कि जो परिपक्वता उनकी सद्यः लिखित बालकथाओं में है, वही इनमें भी है अर्थात पहले दिन से लिखी उनकी इन रचनाओं को उनके साहित्य की नींव माने तो नींव पूरी मजबूती का आधार लिए हुए हैं। उन्होंने पहले दिन से ही यह समझ लिया कि बाल रचनाओं में सीख और मनोरंजन दोनों का होना आवश्यक है। वे संस्कार देने वाली होनी चाहिए। क्योंकि समय कोई भी हो, बच्चों में भोलापन होता ही है। उन्हें सीख-संस्कार का ज्ञान दिया जाना आवश्यक होता है। उनमें उत्सुकता और जिज्ञासा भी होती है। साहित्य के जरिए उनकी इन आकांक्षाओं की पूर्ति भी आवश्यक है।

साहित्य लेखन शुरू करते समय इस शाश्वत सत्य की जानकारी उन्हें कहाँ से मिली? वह किसी एक गुरु का नाम नहीं बता पाते हैं। उनका कहना है कि यह सब उन्होंने पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं को पढ़कर ही जाना। इसलिए जब मेरे द्वारा सीखाने की बारी आई तो मैं बच्चों को किसी संस्कार-शिक्षालय में नहीं ले गया बल्कि अपने मन के भाव पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से ही उनके सामने प्रस्तुत किये। वह भी पूर्ण रोचकता के साथ। क्योंकि रोचकता होगी तभी तो बच्चे उसे पढ़ेंगे, आत्मसात करेंगे।

इस संग्रह में उनका प्रारंभिक रचना कर्म दर्ज है। आज के बच्चे के लिए उपयोगी और शानदार उपहार है यह। निःसंदेह आप पढ़ेंगे तो मुझसे सहमत होंगे।

शुभकामनाएँ।

- हिमांशु वर्मा
प्रकाशक, साहित्यागार

अपनी बात

din me sau chand children's stories

क्सर लोग पूछते हैं-आप बाल साहित्यकार ही क्यों बने, जबकि आपके अ लिखे व्यंग्य, आपकी रची लघुकथाएँ एवं अन्य रचनाएँ भी बहुत पसंद की जाती रही है। क्या जवाब दूँ इसका, यह कभी पूरा समझ में नहीं आया। पिछली सदी के सातवें दशक के प्रारंभ में जब साहित्य रचना शुरू की थी, तब पहले ही दिन दो बालकथाएँ लिखी थी। लिखी नहीं, टाइप की थी। कई वर्ष तक रचनाएँ, बालकथा हो, व्यंग्य हो, बाल उपन्यास हो या लघुकथा-सब सीधे टाइपराइटर पर ही प्रकट हुई। हाँ, लेखन शुरू होने के कोई पच्चीस वर्ष बाद टाइपराइटर ने जवाब दे दिया-यह कहते हुए कि अब सदा के लिए विश्रामावकाश ले रहा हूँ। वह स्थिर हो गया। पर मैं नहीं। मैं हाथ से रचना करने लगा। क्योंकि कंप्यूटर पर लिखना आया नहीं। लिखी हुई रचना कभी कहीं तो कभी कहीं टाइप होने लगी। क्रम थमा नहीं, बल्कि गति तेज हो गई। प्रारंभ में लिखी वे दो बालकथाएँ तो यहाँ प्रस्तुत नहीं कर रहा हूँ, पर सातवें में लिखी कुछ चुनिंदा रचनाएँ यहाँ इस संग्रह 'दिन में सौ चाँद' में प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह मेरे लेखन का शैशवकाल था। अब मेरे लेखन का इतिहास है। मेरी लेखन यात्रा का पुष्ट दस्तावेज है। आप पाएँगे कि मैं प्रारंभ से ही सीख और मनोरंजन का समावेश अपनी बालकथाओं में करता रहा हूँ। वही क्रम आज भी जारी है। यह भी कि कहानियों में पाठकों को बुद्धि इस्तेमाल करने की प्रेरणा देता रहा हूँ। बालकथाओं ने ही मुझे साहित्य के क्षेत्र में नाम दिया है, सम्मान दिलाया है। राजस्थान में अभी तक मैं एकमात्र हिंदी बालसाहित्य रचनाकार हूँ, जिसे केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार मिला है। सन् 2019 में मेरे बालकथा संग्रह 'काचू की टोपी' पर यह मिला था। प्रस्तुत है आपके लिए 'दिन में सौ चाँद'। जानना चाहूँगा कि आपको यह कैसा लगा। शुभकामनाएँ।

- गोविंद शर्मा
संगरिया, हनुमानगढ़
मो.नं.-94144-82280

दिन में सौ चाँद बालकथा संग्रह

अनुक्रमणिका

  1. दिन में सौ चाँद
  2. दोगुना धन
  3. सोनू की चालाकी
  4. हम अच्छे बने रहेंगे
  5. गिदी पिदी बन गए अच्छे
  6. शहद-मक्खी ने की भलाई
  7. पुरस्कृत पुस्तक
  8. सोनचिड़ी और सोन मछली
  9. मेल-मिलाप
  10. सवाल का बवाल
  11. जैसे को तैसा
  12. शेर को मिला सबक
  13. सुन्दर सजावट
  14. शहद का लालच
  15. मेहनत का सम्मान

पुस्तक विवरण:

  • पुस्तक का नाम: दिन में सौ चाँद
  • लेखक: श्री गोविंद शर्मा
  • प्रकाशक: साहित्यागार, जयपुर
  • श्रेणी: बालकथा संग्रह
  • मूल्य 175 ₹

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