गोलू मेरा नाम – एक प्यारी बाल कहानी नाम और पहचान की

Dr. Mulla Adam Ali
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"गोलू मेरा नाम" एक प्यारी बाल कहानी है जो एक बच्चे की अपनी पहचान और नाम को लेकर मासूम सोच को दर्शाती है। दादाजी और गोलू के संवाद के माध्यम से यह कहानी बच्चों को सिखाती है कि नाम केवल पहचान नहीं, बल्कि अपनापन और प्यार का प्रतीक भी होता है।

Golu Mera Naam : Bal Kahani

शिक्षाप्रद बाल कहानी गोलू मेरा नाम

बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानी

गोलू मेरा नाम

दादाजी समझ गए कि आज गोलू परेशान है। उनको यह तो पता था कि आज किसी ने उसे डांटा नहीं। क्योंकि गोलू के माता-पिता बाहर गए हुए हैं। उनके अलावा कोई गोलू को डांटने की हिम्मत भी नहीं करता है। स्कूल में इसके साथ कुछ हुआ क्या? वैसे स्कूल अच्छा है। वहां इतने छोटे बच्चों को कोई नहीं डांटता है। फिर क्या बात हुई? दादाजी ने सोचा अभी नहीं पूछूंगा। अभी गोलू को उसकी कोई समस्या है तो उस पर उसे ही सोचने देते हैं।

गोलू तो दादा जी को अपना दोस्त मानता है। दादाजी भी तो यही कहते हैं- 'गोलू मेरा दोस्त'। हां, यह दोस्ती गोलू को याद आ गई। वह दादा जी से बोला- मेरी एक प्रॉब्लम है......।

क्या? इतने छोटे बच्चे के पास प्रॉब्लम यानी समस्या है? क्या है भई?

मैं छोटा जरूर हूं, पर मेरी दोस्ती तो आप जैसे बड़े से है। बता रहा हूं। मेरे सारे छोटे दोस्त जो गली में है, स्कूल में है, सब मुझे गोलू कहते हैं।

अब गोलू को गोलू न कहेंगे तो क्या मोलू कहेंगे?

दादाजी बीच में ही बोल पड़े।

तो फिर स्कूल में मेरा नाम अभिनव क्यों लिखवाया है। वहां भी गोलू ही लिखवाते। वहां मेरा नाम अभिनव है। इसलिए सबको चाहिए कि मुझे अभिनव ही कहें ।

हां, यह बात तो ठीक है। पर तुम्हें मेरे अलावा गोलू कहने वाले तुम्हारे दोस्त कौन-कौन हैं?

कौन नहीं है। स्कूल में कप्पू, पप्पू, बबलू, डब्लू, रिंकी-पिंकी.... सब यही कहते हैं। गली में इट्टा यानी अर्चना भी यही कहती है। किन्ना के चाचा, हम्पी की बुआ, टिन्नी - मन्नू की मम्मी भी यही कहती है। मैं परेशान हो गया हूं, उनके मुंह से गोलू सुनते-सुनते। यह सब मुझे अभिनव क्यों नहीं कहते? मैं इन सब को न सही, कुछ को तो मैं बता चुका हूं कि मेरा नाम अभिनव है।

यह सुनकर दादा जी को हंसी आ गई।

आप क्यों हंसे दादाजी? मैंने अपनी प्रॉब्लम आपको हंसाने के लिए नहीं बताई है।

मुझे हंसी इसलिए आ गई कि उस दिन वाली बात हो गई।

किस दिन वाली?

एक दिन मैं चॉकलेट खा रहा था। तुम भी चॉकलेट खा रहे थे। चॉकलेट खाते-खाते तुम मेरे पास आए और बोले दादाजी, चॉकलेट नहीं खाना चाहिए। यह नुकसान करता है। पापा ऐसा कहते हैं।

वाह, इसमें चॉकलेट वाली बात क्या हो गई? मेरी प्रॉब्लम यह है कि मेरे ये सारे दोस्त मुझे अभिनव न कहकर गोलू क्यों कहते हैं।

तुमने अभी अपने जिन दोस्तों के नाम लिए थे, उनके स्कूल में क्या नाम है?

कोई अर्चना है तो कोई रमेश, सबके कहां याद रहते हैं।

बेटे यही बात है चॉकलेट वाली। खुद चॉकलेट खाओ, दूसरों को रोको। तुमने अपने सभी साथियों के नाम स्कूल वाले नहीं लिए, बल्कि वे लिए जो उनके घरों में लिए जाते हैं।

हां, यह बात तो है चॉकलेट खाने वाली। मैं भी उनके नाम स्कूल वाले नहीं लेता। आगे से मैं उनके गोलू कहने पर नाराज नहीं होऊंगा।

क्योंकि गोलू भी मेरा नाम है।

पर अब मैं तुम्हें कहूंगा अभिनव मेरा दोस्त।

नहीं-नहीं-नहीं, आप तो वही कहना - गोलू मेरा दोस्त।

अब दोनों हंस रहे थे।

- गोविंद शर्मा

निष्कर्ष; कहानी “गोलू मेरा नाम” यह सिखाती है कि नाम चाहे जैसा भी हो, उसमें अपनेपन और प्रेम की मिठास छिपी होती है। सच्ची पहचान दूसरों के बुलाने में नहीं, बल्कि अपने मन की मुस्कान में होती है। My Name is Golu Hindi Children's Story by Govind Sharma.

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