गोलू मेरा दोस्त – दादाजी और पोते की प्यारी बाल कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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“गोलू मेरा दोस्त” एक भावनात्मक और सीख देने वाली बाल कहानी है, जिसमें गोलू अपने दादाजी से प्रेम, लगाव और सच्ची दोस्ती का सुंदर उदाहरण पेश करता है। यह कहानी दादा-पोते के रिश्ते में छिपे स्नेह, संवाद और प्रकृति प्रेम को बड़ी सहजता से उजागर करती है।

Golu Mera Dost Hindi Story

गोलू मेरा दोस्त हिंदी बाल कहानी

दादू और गोलू की दोस्ती की दिल छू लेने वाली कहानी

गोलू मेरा दोस्त

गोलू घर पर बैठा पापा के आने का इंतज़ार कर रहा था। पापा के आते ही बोला- 'मुझे आपका मोबाइल चाहिए।' 

'क्यों? क्या देखना है फ़िल्म, वीडियो? इन्हें देखने के लिए मैंने मना कर रखा है न।'

'नहीं-नहीं, मुझे बात करनी है।'

'किससे? रोनू से, मोनू से या बिरजू से?'

'नहीं पापा, मुझे दादू से बात करनी है।'

'हाँ हाँ, उनसे तुम्हारी बात कई दिन से नहीं हुई है। लो, कर लो बात।'

पापा फ़ोन देकर दूसरे कमरे में चले गये। गोलू ने अपने दादू का नंबर लगाया। उधर से दादू की हैलो सुनते ही गोलू बोला- 'बताइए मैं कौन बोल रहा हूँ?'

'यह तो तुम ख़ुद ही बोल रहे हो।'

'मेरा नाम बताइये।'

'गोलू, तुम्हें तुम्हारा नाम मालूम होना चाहिए।'

'वाह, दादू आपने तो पहचान लिया। मेरे कई दोस्त नहीं पहचान पाते हैं। आप कैसे हैं दादू?'

'मैं अच्छा हूँ।'

था?' 'यह बताइये, पापा ने आपको नया मोबाइल किसलिए दिलवाया

'बात करने के लिये.....'

'तो फिर आपने मुझसे बात क्यों नहीं की? चलो, मैं ही करता हूँ। आप यहाँ मेरे पास कब आ रहे हैं?'

'अभी तो मुझे यहाँ गाँव में काम है। कुछ दिन बाद आऊँगा।'

'नहीं, आप बहाना बना रहे हैं आपको वहाँ कोई काम नहीं है। पहले आप खेत में काम करते थे। अब वह काम आपसे होता नहीं। बस, कभी कभी खेत का चक्कर लगा लेते हो। हाँ, आपके दोस्त बहुत है वहाँ। आप उनको छोड़कर मेरे पास नहीं आते हैं।'

'नहीं-नहीं, तुम भी तो मेरे दोस्त हो।'

'मैं जानता हूँ। वहां आपके उड़ने वाले दोस्त भी हैं। आप बरगद के नीचे उनके लिए दाना पानी का इंतज़ाम करते हो। अब आप उन दोस्तों से कुछ दिन की छुट्टी लेकर यहाँ मेरे पास आइये। मेरे पास भी आपके लिए कुछ नए दोस्त हैं। आपके लिए सरप्राइज़ है।'

'अच्छा तो तुमने नए खिलौने ख़रीदे हैं। उनमें ज़रूर तोता-मोर-चिड़िया होंगे।'

है।' 'नहीं दादू, मैंने नए खिलौने नहीं ख़रीदे हैं। आपके लिए सरप्राइज़

'क्या है बताओ?'

'यह बताया नहीं जाता है। आप यहाँ आओगे, तभी पता चलेगा। आप खुश हो जाओगे।'

'तुम्हारे पास आकर खुश तो मैं हो ही जाता हूँ। फिर भी बताओ....।'

'नहीं, क्या आप ने आज तक मुझे बताया कि मेरा नाम अभिनव स्कूल में हैं तो घर पर सब गोलू क्यों कहते हैं?'

'भई, वह तो इसलिए कि जब तुम छोटे थे तो एकदम गोलमटोल थे।'

'गोल तो मैं समझता हूँ। यह मटोल क्या होता है?'

'मटोल.... यानी मोटे थे। फिर बड़े हुए तो बॉल से खेलने लगे। तुम बॉल पर ठोकर लगाते और बॉल दीवार से टकरा जाती तो गोल-गोल चिल्लाते। बस तुम बन गये गोलू।'

'ओह दादू! अब यह मत कहना कि धरती गोल है, चांद गोल है, सूरज गोल है, इसीलिए तुम भी गोल यानी गोलू हो।'

दादू ने हँसते हुए कहा- 'तुमने यह कैसे जाना कि ये सब ग्रह-नक्षत्र गोल है?'

'आप ही तो लाए हो बाज़ार से ख़रीद कर एक किताब 'दादाजी की अंतरिक्ष यात्रा'। उसमें ये सब है।'

'वाह, तुम किताबें पढ़ने लगे हो।'

'नहीं, दादू, मैं ये नहीं पढ़ पाता। मुझे तो कभी पापा तो कभी मम्मी पढ़कर सुनाते हैं। मेरे दोस्तों को भी उनके पापा-मम्मी अच्छी अच्छी कहानियों वाली किताबें पढ़कर सुनाते हैं। हम दोस्त एक दूसरे को वही कहानियां सुनाते हैं। हमें तो मज़ा आता ही है, सब से ज्यादा खुश बिरजू होता है।'

'बिरजू क्यों?'

'क्योंकि उसके पापा को काम से बार बार बाहर जाना होता है।

वह उनसे किताब की बातें सुन नहीं पाता है। हम उसे सुनाकर खुश कर देते हैं।'

'यह तो बहुत अच्छी बात है। अब तुम सरप्राइज़ वाली बात बताओ।'

'नहीं दादू नहीं, वह तो आपको यहाँ आने पर पता लगेगी।'

'फिर तो मैं जल्दी ही आ रहा हूँ तुम्हारे पास।'

'बिलकुल, जल्दी आइए। अब मैं पापा की तरह कहूँगा-बस में आओ या ट्रेन में, रिज़र्वेशन करवा कर ही आइए। ध्यान से आना।'

'अच्छा मेरे......'

'दोस्त ही कहना, कुछ और नहीं।'

कुछ दिन बाद ही गाँव से चलकर गोलू के दादू शहर आ गये। घर में पैर रखते ही हैरान रह गये। वे जो देख रहे थे, उस पर उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने देखा-आंगन में गोलू एक कुर्सी पर बैठा है। आंगन में अनाज के दाने बिखरे हुए हैं। एक चिड़िया चुग रही है। इस घर में जो चारों तरफ़ से बंद था, ऐसे दृश्य की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

गोलू ने दादू को देखा तो चहक उठा और उनके पास दौड़ कर गया। बोला- 'दादू है ना ये सरप्राइज़? अपने घर के आंगन में चिड़ियाँ दाने चुग रही है, जैसे अपने गाँव वाले घर में चुगती है।'

'हाँ, गोलू ये तो सरप्राइज़ ही है। पर यह कैसे संभव हुआ?'

'दादू, मुझे पता चल गया था कि आपको दाना चुगते पक्षी देखना बहुत पसंद है। इसलिए मैंने पापा से कह कर कमरे की जाली एक

जगह से खुलवाकर वहाँ जालीदार खिड़की लगवा दी है। अब हम सुबह-शाम वह खिड़की खोल देते हैं। उससे चिड़िया अंदर आ जाती है। रात में खिड़की बंद रखते हैं। यह सब मैंने आपको यहाँ बुलाने के लिए किया। अब तो दाना चुगती चिड़िया को देखना मुझे भी अच्छा लगने लगा है।'

'वाह, गोलू वाह।'

'इतने में एक और चिड़िया आ गई। उसे देखकर गोलू बोला-दादू रोज़ तो एक ही चिड़िया आती है। आज यह दूसरी नई चिड़िया आयी है। लगता है यह गाँव से आपके पीछे पीछे आयी है। ये आपकी दोस्त है क्या?'

'यहाँ तो मेरा एक ही दोस्त है।'

'कौन?'

'गोलू मेरा दोस्त.......' कहते हुए दादू ने गोलू को गले लगा लिया। यह देखकर घर के सब लोग हँसने लगे।

- गोविंद शर्मा

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