‘गोलू की सड़क सेवा’ एक प्रेरक बाल कहानी है जो हमें स्वच्छता, जिम्मेदारी और समाज सेवा का सुंदर संदेश देती है। यह कहानी बच्चों को यह सिखाती है कि छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देकर भी हम अपने आसपास की दुनिया को बेहतर बना सकते हैं।
A Moral and Inspirational Story for Children
जिम्मेदारी और स्वच्छता सिखाने वाली हिंदी बाल कहानी
गोलू की सड़क सेवा
गोलू की सड़क सेवा? है न अजीब बात। अजीब करना ही तो गोलूपना है। हर शनिवार को गोलू के स्कूल में बालसभा होती है। हर बार बोलने वाले छात्रों को एक विषय दे दिया जाता है और कहा जाता है कि इस विषय पर कुछ बोलें। जो सबसे ज्यादा अच्छा बोलेगा उसे मिलेगी ढेर सारी शाबाशी। सिर्फ दो दिन के लिये उसका नाम स्कूल के नोटिस बोर्ड पर भी लिखा जायेगा।
इस बार गोलू और कुछ दूसरे लड़कों के बोलने की बारी थी। बोलने वाले सभी लड़के तैयारी करके आए थे। क्योंकि बोलने का विषय उन्हें पहले ही बता दिया गया था। शायद गोलू ने भी तैयारी की थी।
बाल सभा शुरू हुई। प्राचार्य जी, अध्यापक, बच्चे सब थे उस सभा में। एक लड़के का नाम लेकर उसे बोलने के लिए बुलाया गया।
उसने माता-पिता और घर परिवार में जो बुजुर्ग हैं, उनकी सेवा करने पर अपना भाषण दिया।
दूसरे लड़के ने अध्यापकों की सेवा करने की बात कही। कहा-वे हमारे गुरु हैं। हमें ज्ञान देते हैं। उनकी सेवा का फल अच्छा ही मिलेगा।
बच्चों ने ताली बजाई, पर किसी ने कुछ बोलकर प्रतिक्रिया नहीं की।
एक और बच्चे ने पेड़-पौधे, जानवर और पक्षियों की सेवा करने की बात कही। उसने कहा- इनकी सेवा का नाम इनकी रक्षा और जल सेवा है।
जब कई लड़के बोल लिये तो गोलू की बारी आई। अध्यापक और कई छात्र सजग हो गये। क्योंकि उन्हें उम्मीद थी यह कोई अजीब बात ही कहेगा।
हां, अजीब बात ही कही उसने। उसकी बात सुनकर एक बार तो सन्नाटा छा गया। पर शीघ्र ही सारे लड़के एक साथ हंस पड़े।
गोलू ने अपने भाषण में कहा- माता-पिता, बुजुर्ग, अध्यापक, जानवर, परिन्दे सब की सेवा करनी चाहिए। पर इसके साथ ही हमें गली-मुहल्लों की सड़कों की सेवा भी करनी चाहिए।
उसकी बात सुनकर कहीं से आवाज आई-क्या सड़क बीमार है?
हो सकती है-गोलू ने कहा।
लगता है सड़क के गड्डों को गोलू ने सड़क के जख्म मान लिये हैं। गोलू भैया, हमें तो उनकी मरहम पट्टी करना नहीं आता।
सही बात है। सड़क के गड्ढे भरने के लिये सामान या औजार हम बच्चों के पास नहीं होते हैं। पर सड़क और भी सेवा मांगती है। वही बताने जा रहा हूं।
हम बच्चे जब भी छुट्टी होती है, कहीं न कहीं खेलने जरूर जाते हैं। जिनके घरों से खेल मैदान दूर होते हैं, वे अपनी गली की सड़क पर ही खेलते हैं। सड़क पर सबसे ज्यादा क्रिकेट ही खेला जाता है। क्रिकेट खेलने के लिये हम सबके पास विकेट वगैरह नहीं होते हैं। तब हम क्या करते हैं? कहीं से ईंट पत्थर लाते हैं, उनसे विकेट बनाते हैं या किसी और खेल में कंकर पत्थर का इस्तेमाल करते हैं।
खूब मजे से खेलते हैं और खेल के बाद अपने अपने घर चले जाते हैं। वे ईंट-पत्थर-कंकर जिनसे हम खेले थे सड़क पर यूं का यूं छोड़ देते हैं।
नहीं तो क्या, उन्हें अपनी जेब में डालकर घर ले जाएं? - एक बच्चा बीच में बोल पड़ा।
मैंने यह नहीं कहा है। होता यह है कि हम तो उन्हें सड़क के बीचोंबीच छोड़कर चले जाते हैं। कभी कोई साइकिल सवार तो कभी स्कूटर-बाइक सवार उनकी वजह से दुर्घटना का शिकार हो जाता है। कंकर के ऊपर साइकिल के पहिये आने से लोगों की साइकिल डगमगाते मैंने कई बार देखा है। ट्रक या किसी बड़ी गाड़ी के नीचे आने से ईट को चूरा बनते देखा है। वह सड़क पर दूर दूर तक फैलता जाता है। हमें ईंट-पत्थर को सड़क से उठाकर किसी कोने में छोड़ना चाहिए।
उसकी बात सुनकर एक बार फिर सन्नाटा छा गया। पर अचानक सभा में बैठे सब लड़के खड़े होकर ताली बजाने लगे।
जब तालियां थम गई तो गोलू बोला- मैं समझ गया कि आप सबने मेरी बात का समर्थन किया है। आप सबका धन्यवाद।
जी हां, दो दिन के लिये गोलू यानी अभिनव का नाम स्कूल के बोर्ड पर चमकने के लिये लिख दिया गया था।
- गोविंद शर्मा
निष्कर्ष: गोलू की कहानी हमें सिखाती है कि सेवा केवल लोगों की ही नहीं, बल्कि हमारे परिवेश की भी होनी चाहिए। छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ निभाकर हम बड़े बदलाव ला सकते हैं।
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