कह-कहावत और गोलू: कहावतों से सीख देने वाली दो मजेदार बाल कहानियाँ

Dr. Mulla Adam Ali
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एक चंचल और जिज्ञासु बालक है, जो हर बात को अपने अनोखे अंदाज़ में समझने की कोशिश करता है। कहावतों से प्रेरित उसकी मासूम समझ कभी हंसी का कारण बनती है तो कभी सीख का। “कह-कहावत और गोलू” की ये दो मनोरंजक कहानियाँ बच्चों को न केवल मुस्कुराना सिखाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि कहावतों का सही अर्थ समझना कितना जरूरी है।

Kah-Kahavat Aur Golu : Hindi Children Stories

हिंदी बाल कहानी कह-कहावत और गोलू

हंसी, सीख और समझ से भरी दो बाल कहानियाँ

कह-कहावत और गोलू-1

घर के आगे की खाली जमीन पर गोलू के घर वालों ने कुछ पौधे, कुछ बेल लगा रखे थे। दादाजी इसे क्यारी कहते थे। कभी कभी शहर का छोटा खेत भी कह देते थे। बाकी घर के लोग किचन गार्डन कहते थे।

गोलू के किचन गार्डन में लगी बेलों में खरबूजे लग गये थे। पर अभी कच्चे ही थे। जल्दी पकने वाले भी नहीं लग रहे थे। उनका रंग अभी हरा ही था। सभी सोच रहे थे कि पता नहीं, कब पीले होंगे।

एक दिन गोलू ने उत्साह से कहा- इन्हें पीला करने का मुझे एक रास्ता सूझा है...।

क्या? क्या करोगे तुम? क्या इन्हें इंजेक्शन लगाओगे? कोई दवा छिड़कोगे या पीला रंग लगाओगे?

हीं-नहीं, ऐसा करना गलत होता है। किसी भी फल या सब्जी के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से फल-सब्जी जहरीले हो जाते हैं।

फिर क्या करोगे?

कुछ मैं करूंगा, कुछ आप। आप मुझे बाजार से पके हुए पीले रंग के खरबूजे लाकर दीजिए। मैं उन खरबूजों के साथ इन खरबूजों को भी रखूंगा। मैंने स्कूल में एक कहावत सुनी है-खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। उन पीले खरबूजों को देखकर अपने वाले हरे खरबूजे अपना रंग बदल लेंगे।

ऐसा ही किया गया। आज चार दिन बाद गोलू ने खरबूजों को संभाला। पहले तो उन्हें देखकर हैरान रह गया। फिर उदास हो गया।

घर में किसी ने पूछा- क्या हुआ गोलू जी। क्या आपके खरबूजों ने रंग नहीं बदला? क्या आपकी कहावत गलत साबित हो गई?

है। नहीं, कहावत गलत साबित नहीं हुई। खरबूजों ने रंग भी बदला

फिर आप इतने मायूस क्यों नजर आ रहे हैं?

खरबूजों ने रंग तो बदला है, पर अपने वालों ने नहीं। बाजार से लाए गए खरबूजे अपने किचन गार्डन के खरबूजों को देखकर हरे हो गये।

यह सुनकर सभी ने कहकहा लगाया। दादाजी बोले-होता है, कई बार ऐसा ही होता है। यदि तुम किसी बिगड़े लड़के को दोस्त बनाओगे तो हो सकता है वह सुधर जाए। यह भी हो सकता है कि वह सुधरे नहीं और तुम्हें भी बिगाड़ दे। इसलिये किसी को दोस्त सोच समझकर ही बनाना चाहिए। चिंता मत करो, अगले मौसम में हम खरबूजों के अच्छी किस्म के बीज बोएंगे।

फिर उन्हें रंग बदलवाने के लिए दूसरे खरबूजे नहीं दिखाने पड़ेंगे। - गोलू के इतना कहते ही फिर एक कहकहा लगा।

कहकहा रुकने पर दादाजी बोले- पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ कि खरबूजे एक बार पीले होने पर, फिर हरे हो जाएं और पकने के बाद फिर कच्चे हो जाएं। यह हुआ कैसे?

उनकी यह बात सुनकर गोलू जी के एक चाचू ने अपने कान पकड़े और बोले- यह मेरी गलती है।

गलती? यदि तुमने ऐसा किया है तो तुम तो बहुत बड़े वैज्ञानिक बन गये। कैसे किया तुमने यह?

आप सबको मालूम ही है कि मुझे भूलने की आदत है। गोलू के हरे खरबूजों को दिखाने के लिये बाजार से पके हुए पीले रंग के खरबूजे लाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई थी। मैं बाजार से खरबूजे लाना भूल गया। मैंने गलती की कि किचन गार्डन से बड़े से हरे खरबूजे लिये और उन पर पीला रंग लगा दिया। वे ऐसे लगने लगे कि जैसे पके हुए पीले खरबूजे हैं। उन्हीं को गोलू जी ने अपने हरे खरबूजों के पास रख दिया। बाद में मुझे याद आया कि किसी फल सब्जी पर रंग नहीं लगाना चाहिए। एक दिन गोलू के स्कूल जाने पर मैंने रंग वाले खरबूजे वहां से हटा दिये। बाजार से पके खरबूजे लाना मैं फिर भूल गया। तब एक बार फिर मैंने फिर वहां हरे खरबूजे रख दिये। उन्हें ढक दिया। सोचा, अब जब भी सब्जी मंडी जाऊंगा वहां से पके खरबूज लाकर रख दूंगा। यह सोचना भी गोल हो गया। मैं खरबूजे बदल ही नहीं सका। आज मुझे याद था। पर आज गोलू ने ढके हुए खरबूजे उघाड़ कर देख लिये।

चाचू की रंग कहानी सुनकर सब स्तब्ध रह गये। फिर हंस पड़े गोलू जी के सिवा। चाचू ने उनकी और देखकर कहा-गोलू जी तुम भी हंस दो ताकि मैं अपने कान छोड़ दूं।

हां, चाचू हंस रहा हूं क्योंकि मैने पहली बार आपको कान पकड़े देखा है।

बच्चों के लिए शिक्षाप्रद और मनोरंजक कहानी

कह-कहावत और गोलू हिंदी कहानियां

कह-कहावत और गोलू-2

गोलू जी के घर रंग रोगन का काम होना था। दो कारीगर आए थे। उन्हें पूरा घर दिखाया गया। सामान क्या-क्या चाहिए-इसकी सूची बनाई जा रही थी। पता लगा उनमें से एक का नाम राम और एक का श्याम है। दोनों की शक्ल भी आपस में काफी मिलती थी।

गोलू ने पूछ ही लिया-क्या आप दोनों आपस में रिश्तेदार हैं?

हां, हम रिश्तेदार हैं।

आप जरूर चाचा-भतीजा हैं?

नहीं, हम भाई-भाई हैं।

क्या आप सगे भाई हैं?

नहीं, हम मौसेरे भाई हैं।

इतना सुनना था कि गोलू जी उछल कर खड़े हो गये। उन दोनों को देखते हुए बोले- तो तुम दोनों चोर हो?

चोर शब्द सुनते ही सभी चौंक गये। दादाजी तो कुछ नहीं बोले, पर गोलू जी के पापाजी को थोड़ा गुस्सा आ गया। बोले- गोलू, तुम इन काम करने वालों को चोर क्यों कह रहे हो?

सब कहते हैं इसलिये। हमारी किताब में लिखा है। हमारे सर ने भी एक दिन कक्षा में पढ़ाया था कि....।

क्या कह रहे हो तुम? इन दोनों कारीगरों के बारे में तुम्हारी किताब में लिखा है? तुम्हारे कौन से सर इन्हें जानते हैं? मैं अभी उनसे फोन पर बात करता हूं कि आप बच्चों को क्या पढ़ा-सिखा रहे हो। किस किताब में लिखा है, क्या लिखा है, मुझे वह दिखाओ।

हिन्दी की किताब में है। लिखा है- चोर-चोर मौसेरे भाई.....

इतना सुनते ही पापा एक बार तो चुप हो गये। फिर दादा-पापा का कहकहा एक साथ सुनाई दिया।

राम श्याम हैरान से बैठे थे अब तक। उन्हें पापा ने बताया- यह पुरानी कहावत है कि चोर-चोर मौसेरे भाई। इसका मतलब तो यह है कि बदमाशी करने वाले आपस में मिले हुए होते हैं। एक दूसरे का साथ देते हैं। यह हमारा गोलू जी वास्तविक भाई समझ बैठा।

तब तक वह कहावत सबको याद आ गई। एक कहकहा और लगा। उन राम श्याम में से एक बोला- गोलू जी, हम मौसेरे भाई इसलिये हैं कि मेरी मां और इसकी मां सगी बहनें हैं। मेरी मां इसकी और इसकी मां मेरी मौसी है। इसलिये हम मौसेरे भाई हैं। हम घरों में ही काम करते हैं। हम चोर तो क्या कामचोर भी नहीं हैं। जितनी मजदूरी मिलती है, उतना काम तो करते ही हैं, कभी कभी ज्यादा भी करते हैं।

अब गोलू जी सोच रहे थे कि ये कहावतें कहकहा लगवाने के लिये होती हैं क्या?

- गोविंद शर्मा

निष्कर्ष: गोलू की कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि कहावतें केवल बोलने के लिए नहीं, बल्कि समझने और जीवन में अपनाने के लिए होती हैं। हंसी-मज़ाक के बीच छिपी ये छोटी-छोटी बातें हमें सही सोच और व्यवहार की दिशा देती हैं। Kah-Kahavat Aur Golu : Mazedar Kahaniyan by Govind Sharma.

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