नैतिक शिक्षा वाली हिंदी बाल कहानी: सोनू की चालाकी

Dr. Mulla Adam Ali
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“Sonu’s Cleverness” is a simple and engaging children’s story that teaches the importance of intelligence, courage, and presence of mind. It shows how smart thinking can overcome danger and help protect loved ones, even in difficult situations.

Sonu’s Cleverness: A Moral Story for Children

sonu ki chalaki bal kahani

यह कहानी “सोनू की चालाकी” बच्चों को समझदारी, साहस और सूझ-बूझ का महत्व सिखाती है। कहानी में बताया गया है कि कठिन परिस्थितियों में बल से नहीं, बल्कि बुद्धि और धैर्य से भी बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान किया जा सकता है। यह रोचक बाल कथा भाईचारे, सतर्कता और चतुराई की प्रेरक सीख देती है।

बुद्धिमानी से भेड़िये को हराने की प्रेरक बाल कहानी

सोनू की चालाकी

एक जंगल में एक बकरी का परिवार रहता था। वहाँ उनका अपना सुंदर-सा घर था। परिवार में दो बच्चे थे सोनू और मोनू। सोनू बड़ा था। इसलिए अपने माँ-बाप के साथ बाहर काम पर जाता था।

छोटा मोनू दिन-भर घर में रहता। बाहर जाते समय माँ-बाप उसे कह जाते कि वह उनके वापस आने से पहले किसी भी दशा में घर का दरवाजा न खोले, क्योंकि जंगू भेड़िया छोटे बच्चों को उठा ले जाता है।

एक दिन मोनू घर का दरवाजा खोलकर अपने घर के आगे खेलने लगा। उसे खेलते हुए अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि जंगू भेड़िया उधर आ निकला। जब उसने देखा कि मोनू अकेला खेल रहा है तो वह बड़ा खुश हुआ। जंगू को देखकर मोनू घर की ओर भागने लगा पर घर में घुसने से पहले जंगू ने उसे पकड़ लिया।

वह उसे पकड़कर अपने घर में ले आया। जंगू को अभी भूख नहीं थी। उसने सोचा शाम के समय इसे खाऊँगा। जंगू ने अपने घर का दरवाजा अंदर से बंद किया और सो गया।

शाम के समय जब सोनू और उसके माँ-बाप बाहर से आये तो उन्होंने देखा घर खुला पड़ा है और मोनू भी नहीं है। सोनू के पिता की निगाह भेड़िये के पाँवों के निशानों पर पड़ी। सोनू के पिता ने कहा, "अब हमें मोनू नहीं मिल सकता। उसे भेड़िया उठाकर ले गया। ऐसे काम वह चोर जंगू ही करता है।" यह सुनकर मोनू की माँ रोने लग गई।

सोनू ने कहा, "माँ, तुम रोओ मत। मैं अभो जाता हूँ और यदि मोनू जिन्दा हुआ तो जंगू की कैद से उसे छुड़ा लाऊँगा।"

सोनू के पिता ने कहा, "नहीं, नहीं, तुम अभी छोटे हो। वह हमारे ही काबू में नहीं आता है तो तुम्हारे क्या आयेगा। तुम्हें वह पकड़ लेगा।"

"नहीं, मैं उसके हाथ नहीं आऊँगा। सीधी लड़ाई की बजाय मैं उसे अपनी अक्लमंदी से हराऊँगा। आप चिन्ता न करें, मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। मैं मोनू को साथ लेकर ही वापस आऊँगा।" यह कहकर सोनू जंगू के घर की तरफ चल पड़ा।

जंगू का दरवाजा अभी तक बन्द पड़ा था। वह अन्दर सो रहा था। मोनू भी मिमिया-मिमिया कर चुप हो गया था। सोनू ने दरवाजे की झिरी में से देखा कि जंगू सोया पड़ा है। उसे अन्दर के कमरे में खड़े मोनू की पूँछ दिखाई दी। वह खुश हो गया। उसने अपनी बोली में मोनू से कहा, "मैं तुम्हें छुड़ाने आया हूँ। तुम अभी कुछ बोलना मत। जब यह दरवाजा किसी तरह खुल जाए तब फौरन बाहर आ जाना और जंगू के घर के सामने जो गड्डा है, उसमें छिप जाना। मैं घर के पीछे छिपूँगा। जंगू जब हमें ढूँढेगा तब यदि वह घर के पीछे होगा तो तुम घर के आगे से बोलना। जब वह घर के आगे आए तब तुम छिप जाना और मैं घर के पीछे से बोलूँगा। इस तरह हमें भाग निकलने का मौका मिल जायेगा।"

यह सुनकर अन्दर से मोनू बोला नहीं। जंगू के घर के बाहर खड़ा सोनू जोर-जोर से मिमियाने लगा। जंगू की नींद खुल गई। जब उसने घर के बाहर से बकरी के बच्चे के बोलने की आवाज सुनी तो यही सोचा कि मोनू बाहर भाग गया है। वह झटपट उठा और दरवाजा खोलकर बाहर आ गया। तब तक सोनू घर के पीछे चला गया था। जंगू दरवाजा खुला छोड़कर घर के पिछवाड़े की ओर भागा।

मोनू ने मौका देखा और घर से बाहर आ गया। वह जोर-जोर से मिमियाने लगा। जंगू ने सुना तो घर के पिछवाड़े से वापस घर के आगे की तरफ दौड़ा।

तब तक मोनू गड्ढे में छिप गया और पीछे से सोनू मिमियाने लगा।

अब जंगू कभी घर के पीछे की तरफ दौड़ता तो कभी घर के आगे की तरफ। इस भाग-दौड़ में उसके हाथ तो कुछ नहीं आया पर वह बुरी तरह से थक गया। वह हाँफता हुआ अपने घर में घुस गया और चारपाई पर गिर पड़ा। यह देखकर मोनू ने सोनू को आवाज लगाई और दोनों धीरे-धीरे जंगू के दरवाजे के पास आए। दोनों ने मिलकर घर का दरवाजा फटाक से बन्द कर दिया और दरवाजे पर लटकती जंजीर से दोनों किवाड़ों को बाँध दिया। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि जंगू को उठने का और कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला। वह दुष्ट अपने ही घर में कैद हो गया।

सोनू-मोनू दोनों अपने घर की ओर दौड़ पड़े। अभी वे रास्ते में ही थे कि उन्हें अपने माँ-बाप आते हुए दिखाई दिये। उन दोनों को जीवित देखकर उन्हें बहुत खुशी हुई।

- गोविंद शर्मा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि संकट के समय घबराने के बजाय समझदारी और धैर्य से काम लेना चाहिए। सोनू की तरह सूझ-बूझ और साहस से न केवल स्वयं को, बल्कि दूसरों को भी सुरक्षित किया जा सकता है।

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