This inspiring tale teaches us that true strength lies not in power, but in wisdom and kindness. When the mighty lion began misusing his power and troubling other animals, a clever jackal stepped forward to teach him an unforgettable lesson. This story beautifully shows how intelligence can overcome arrogance and restore peace.
A Wise Jackal and the Arrogant Lion
यह कहानी हमें सिखाती है कि शक्ति और पद का दुरुपयोग कभी भी सम्मान नहीं दिलाता, बल्कि घमंड हमेशा पतन का कारण बनता है। जंगल का शक्तिशाली शेर जब कमजोर और छोटे जानवरों को तंग करने लगा, तब एक छोटे-से गीदड़ ने अपनी बुद्धि से उसे ऐसा सबक सिखाया कि वह अपने व्यवहार से शर्मिंदा हो गया। यह कथा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समझदारी, साहस और विनम्रता का संदेश देती है।
A Short Moral Story for Children
शेर को मिला सबक
जंगल के शेर की आदत बिगड़ गई। वह भूख मिटाने के लिए शिकार करने के अलावा भी छोटे जानवरों को मारने लगा, सताने लगा। रात में बिना कारण ही जोर से दहाड़ता और जानवरों की नींद हराम कर देता। नदी के किनारे पानी पीने के लिए आने वाले जानवरों को भगा देता।
सारे जानवर परेशान हो गये। वे आपस में सलाह करने लगे कि शेर से छुटकारा कैसे मिले। कोई रास्ता नजर नहीं आया। लोमड़ के पास उसका एक मित्र गीदड़ आया हुआ था। गीदड़ इस जंगल में नहीं रहता था। वह दूर एक खेत में रहता था। जानवरों की परेशानी सुनकर उसने कहा "दो-चार दिन में इस मुसीबत से छुटकारा दिला दूँगा।"
उसकी बात सुनकर जंगल के जानवर हँसने लगे। हिरण ने कहा "तुम तो मेरे से भी छोटे हो। खेत के जीव हो। खेत में से खरबूजे चुराकर खाने और ऊँची आवाज में 'हू' 'हू' करने के अलावा क्या कर सकते हो?"
"हम खेत में काम करने वालों, खेत में रहने वालों को कम मत समझो। हम मेहनती तो होते ही हैं, कई बार हमारी अक्ल की करामात लोगों को हैरान कर देती है।" गीदड़ बोला।
उसी दिन दोपहर में गीदड़ शेर की गुफा के दरवाजे पर पहुँचा और जोर से चिल्लाया "अरे, ओ शेर बाहर आ।" उसकी आवाज सुनकर शेरनी बाहर आई। उस समय शेर गुफा में नहीं था। वह गीदड़ जैसे छोटे जानवर को इस तरह बोलते देखकर हैरान रह गई। उसने पहले कभी गीदड़ नहीं देखा था। यह क्या बला है? शेरनी ने पूछा-"कौन हो तुम? क्या काम है, तुम्हें शेर से?"
"मैं कोई भी हूँ। शेर मुझसे एक शर्त हार गया था। इसीलिये मुझे शेर के मुँह पर दस तमाचे लगाने हैं। तुम भीतर जाओ और शेर को बाहर भेजो" गीदड ने निडरता से कहा।
"शेर गुफा में नहीं है" कहकर शेरनी भीतर चली गई। शेर के वापस आने पर शेरनी ने शेर को कुछ नहीं बताया। दूसरे दिन गीदड़ फिर शेर की गुफा पर गया। तीसरे दिन भी गया। अब तो शेरनी ने शेर को बता दिया कि तुम्हारे जाते ही एक छोटा-सा जानवर आता है और तुम्हें पूछता है। कहता है कि शेर के गालों पर तमाचे लगाने हैं। तीन दिन से लगातार आ रहा है। मुझे तो उससे डर लगने लगा है।
शेर यह सुनकर खूब हँसा। बोला, "किसमें हिम्मत है जो शेर से शर्त लगाये? शेर को हराये और फिर तमाचे लगाये? आज मैं गुफा में ही रहूँगा। उस छोटे जानवर को ऐसा सबक सिखाऊँगा कि उसकी सात पीढ़ियाँ याद रखेगी।"
गीदड़ फिर आया। उसने जैसे ही शेर को आवाज लगाई, शेर दहाड़ता हुआ बाहर आया। शेर को आता देख गीदड़ भाग छूटा। अब आगे गीदड़, पीछे शेर। भागते-भागते वे काफी दूर निकल गये। शेर को खूब गुस्सा आ रहा था। गुस्सा अंधा कर देता है। यही हुआ। सामने एक पेड़ के दो तने थे। दोनों के बीच संकरा-सा रास्ता था। गीदड़ उसमें से आसानी से निकल गया। शेर भी उसी रास्ते से निकलने लगा। शेर का मुँह तो आगे निकल गया मगर गला वहाँ फँस गया। अब शेर न आगे जा सका न पीछे निकल सका। शेर पूरी तरह फँस गया।
गीदड़ रुक गया और बोला "मैं तुम्हें यहीं फँसाना चाहता था। तुम इस जंगल के जानवरों को बहुत परेशान करते हो, अब मैं तुम्हें सबक सिखाऊँगा।"
वह शेर के मुँह पर थप्पड़ें लगाने लगा। इतने में वहाँ शेरनी आ गई। उसने कहा-"आपका इंतजार करते काफी देर हो गई तो मैं देखने आ गई कि क्या हो रहा है? यह छोटा जानवर तुम्हारे मुँह पर थप्पड़ लगा रहा है। तुम कुछ नहीं कह रहे हो। इसका मतलब है शर्त हारने पर तुम्हें तमाचे लगवाने ही थे। जब तमाचे लगवाने ही थे तो इतनी दूर भागकर क्यों आये? गुफा में ही लगवा लेते।"
शेर ने शेरनी की बात का जवाब नहीं दिया। गीदड़ से बोला "भैया, तुम मुझे छोड़ दो। आज के बाद मैं किसी जानवर को परेशान नहीं करूँगा। शेरनी के सामने तो मेरी बेइज्जती हो गई। दूसरे जानवर आ जायें, इससे पहले मुझे छोड़ दो। मैं तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलूँगा।"
गीदड़ ने उसे माफ कर दिया और कहा- "अपनी शेरनी से कहो, जोर लगाकर दो तनों के बीच के इस रास्ते को चौड़ा करे। तभी तुम निकल सकोगे।"
उस दिन के बाद शेर ने किसी जानवर को तंग नहीं किया। गीदड़ जब अपने खेत की तरफ जाने लगा तो जानवरों ने कहा "भैया, जब खरबूजे खत्म हो जायें तो हमारे पास आ जाना। तुम्हारी 'हू' 'हू' सुनकर शेर का दिमाग ठीक रहेगा। जंगल में शांति बनी रहेगी।"
- गोविंद शर्मा
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बल से नहीं, बल्कि बुद्धि से बड़े से बड़ा काम किया जा सकता है। घमंड करने वाला व्यक्ति चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में उसे अपने गलत व्यवहार की सज़ा मिलती ही है। विनम्रता, समझदारी और दूसरों के प्रति सम्मान ही सही नेतृत्व और सच्ची शक्ति के गुण हैं।
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