True friendship knows no boundaries—neither distance, nor differences. This story of the golden sparrow and the golden fish reminds us that real friends stand by each other in every situation. Though one lived in the sky and the other in the water, their bond was filled with care, trust, and kindness. This heartwarming tale teaches that friendship is about helping, understanding, and valuing one another.
Friendship Story in Hindi
सच्ची दोस्ती रंग, रूप या रहने की जगह नहीं देखती। कभी-कभी सबसे अलग दिखने वाले भी सबसे अच्छे दोस्त बन जाते हैं। यह कहानी सोनचिड़ी और सोन मछली की है, जो भले ही एक पानी में रहती थी और दूसरी आसमान में उड़ती थी, पर उनके मन में एक-दूसरे के लिए सम्मान, विश्वास और प्यार था। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची मित्रता में न कोई भेद होता है, न कोई स्वार्थ—बस साथ, समझ और मदद का भाव होता है।
साहस और मदद की प्रेरक हिंदी बाल कहानी
सोनचिड़ी और सोन मछली
पानी में रहती थी सोन मछली। पेड़ पर रहती थी सोनचिड़ी। दोनों में दोस्ती हो गई। दोनों कई देर तक बातें करती रहतीं। अन्य पक्षी उन पर हँसते। यह कैसी बेमेल दोस्ती है? एक पानी के भीतर रहने वाली तो दूसरी जमीन, पेड़ और हवा में रहने वाली। एक यदि पानी से बाहर आ जाए तो मर जाए। दूसरी अगर पानी के भीतर चली जाए तो मर जाए।
पर मछली और चिड़िया ने लोगों की हँसी की परवाह नहीं की। दोनों का विचार था कि सच्ची दोस्ती से बढ़कर कोई बड़ी बात नहीं होती है। कोई भी ऐसा नहीं होता, जो किसी दूसरे के काम न आए।
दोनों दोस्त साथ-साथ घूमते भी थे। सोन मछली पानी के भीतर-भीतर चलती। पानी के भीतर से ही वह पानी के ऊपर-ऊपर उड़ने वाली सोनचिड़ी को देखती रहती।
एक दिन की बात है। सोनचिड़ी पानी के ऊपर उड़ रही थी। सोन मछली पानी के भीतर चल रही थी। अचानक एक बाज आ गया। उसने सोनचिड़ी को दबोचना चाहा। सोनचिड़ी किसी तरह बाज के पंजों से आजाद हो गई। पर घायल होने के कारण उड़ न सकी। वह सीधे नदी के पानी में गिर पड़ी। वह डूबने को थी कि वहाँ सोन मछली आ गई। सोन मछली डूबती चिड़िया के नीचे आई और जोर से ऊपर की ओर उछली । उसकी इस उछाल से चिड़िया भी पानी से बाहर ऊपर की ओर उछल गई। सोन मछली बार-बार उछलती रही और इस तरीके से चिड़िया को पानी में नहीं गिरने दिया! उसे किनारे तक ले आई। किनारे पर सोनचिड़ी घास में छिपकर सुस्ताने लगी। कुछ ही देर में वह ठीक हो गई। वह अपने घोंसले में चली गई।
दूसरे दिन सोनचिड़ी ने सोन मछली को धन्यवाद दिया कि तुमने मुझे पानी में डूबने से बचाया, इसका अहसान मैं कभी नहीं भूलूँगी।
सोन मछली ने कहा "दोस्ती में कोई अहसान नहीं होता है। दोस्त एक-दूसरे की मदद करते ही हैं।"
उस नदी में एक मगरमच्छ रहता था। वह हर रोज अपना खाना खाकर नदी के किनारे आकर लेट जाता। वह अपना मुँह खोलकर बैठ जाता। सोनचिड़ी आती और उस के खुले मुँह में घुसकर मगरमच्छ के दाँतों के बीच फँसे मांसकणों को अपनी चोंच से निकाल देती। इस तरह सोनचिड़ी को भोजन मिल जाता और मगरमच्छ के दाँत साफ हो जाते। अगर मगरमच्छ का मुँह बंद होता तो भी सोनचिड़ी को देखते ही खुल जाता।
एक बार की बात है। मगरमच्छ किनारे पर आया ही था। वहाँ पानी बहुत कम था। उस कम पानी में सोन मछली बैठी थी। वह किनारे पर एक डाली पर बैठी अपनी दोस्त सोनचिड़ी से बात कर रही थी। मगरमच्छ ने सोन मछली को देख लिया। उसने मछली को भागने का मौका नहीं दिया और उसे अपने मुँह से पकड़ लिया। यह घटना अचानक हुई थी पर सोनचिड़ी की तेजी ने मछली को बचा लिया। हुआ यह कि मगरमच्छ ने अभी सोन मछली को पकड़ा ही था। उसमें दाँत नहीं गड़ाए थे। चीं-चीं करती सोनचिड़ी मगरमच्छ के मुँह के पास आ गई। सोनचिड़ी को आया देख, आदत के अनुसार मगरमच्छ ने मुँह खोल दिया। मुँह खुलते ही सोन मछली उछलकर बाहर आ गई और गहरे पानी की तरफ भाग गई। चिड़िया के कारण उसकी जान बच गई।
सोनचिड़ी को गुस्सा आ गया। उसने कहा- "अब कभी मैं इस मगरमच्छ के दाँत साफ नहीं करूँगी। इसके कारण मेरी दोस्त की जान चली जाती।"
वह वापस मुड़कर उड़ने को थी कि उसने सोचा कि आज यदि मुझे देखकर यह मगरमच्छ अपना मुँह न खोलता तो सोन मछली नहीं बचती। अगर मैं इसके दाँत साफ नहीं करूँगी तो यह मुझे देखकर मुँह खोलना भूल जाएगा।
सोनचिड़ी ने मगरमच्छ के दाँत साफ करने शुरू कर दिए। वह खुश थी कि उसकी दोस्त मरने से बच गई।
उधर पानी के भीतर से सोन मछली झाँक रही थी कि यह मगरमच्छ जाए तो वह अपनी दोस्त सोनचिड़ी को जान बचाने के लिये धन्यवाद दे।
- गोविंद शर्मा
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चे दोस्त हमेशा एक-दूसरे के काम आते हैं, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो। दोस्ती में न कोई अहसान होता है और न कोई स्वार्थ—सिर्फ सहयोग, विश्वास और प्रेम होता है। यदि हम भी इसी भावना से एक-दूसरे की मदद करें, तो दुनिया और भी खूबसूरत बन सकती है।
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