आंध्र प्रांत के शासित राजवंश : सी .अन्नपूर्णा

Dr. Mulla Adam Ali
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                 अनेक इतिहासकार यहीं मानते हैं कि आंध्र वालों का इतिहास ई. पू. 700-300 के बीच प्रारंभ हुआ था। विंध्य पर्वत की दक्षिण दिशा की ओर, दक्कन पठार (దక్కన పీఠభూమి-Southern plateau) इसमें वर्तमान महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और ओड़िसा के साथ यह आंध्र प्रांत भी फैला हुआ है।

प्रमुख राजवंश :-

1. शातवाहन :
                      इतिहास से यह जानकारी मिलती है कि प्राचीन आंध्र राज्य में शातवाहन का शासन सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। ये “शातवाहन, सातवाहन, आंध्रभृत्यु” वंश इत्यादि नामों से व्यवहृत हुए हैं। ई.पू. 3 सदी से ई.सन 3 सदी तक राज्य किये थे।

                 इस वंश के 29 शातवाहन राजाओं ने शासन किया। इसकी जानकारी मत्स्य पुराण दे रहा है। शातवाहन राजाओं प्रमुख है- गौतमीपुत्र शातकर्णी और वसिष्ठी पुत्र पुलुमावि। इनकी राजधानी गुंटूर जिला के अमरावति था। गौतमीपुत्र शातकर्णी, गौतमीपुत्र यज्ञ श्री शातकर्णि, वसिष्ठी पुत्र शातकर्णी, वसिष्ठी पुत्र पुलुमावि, वसिष्ठीपुत्र शिवश्री पुलुमावि, वसिष्ठीपुत्र स्कंध शातकर्णि, वसिष्ठीपुत्र विजय शातकर्णि इत्यादि राजाओं ने अपना नाम और चित्रों के साथ सिक्कों को जारी की। इसके प्रमाण और जानकारी मद्रास संग्रहालय के अध्यक्ष श्री अरवमुक्तन् द्वारा नये रूप के सिक्के (कोत्तरकं विद्धांक नाणालु) नामक लेख लिखा गया है।

2. इक्क्ष्वाकु :
              इक्क्ष्वाकु वंश के राजाओं ने विजयपुरी को राजधानी बनाकर ई. सन् 3शति में शासन किया। इनमें प्रमुख राजा है प्रथम शातमूलुडु, वीर पुरुष दत्ता और द्वितीय शांतमुलुडु

3.बृहत्फलायन :
           इक्क्ष्वाकु राजाओं के बाद बृहत्फलायन राज वंश के राजाओं में श्री जयवर्मा प्रसिद्ध है।

4.आनंद गोत्रीक :
               गुंटूर के आजू-बाजू प्रांतों में इस वंश के राजाओं ने कुछ समय तक शासन किया।

5. शालंकायन :
            इस वंश के राजाओं ने ई. सन् 4 सदी में वेंगी प्रांत में शासन किया। इस शालंकायन राजावंश में मुख्य रूप से 4 राजाओं का नाम प्रचलित है - श्री हस्तिवर्मा, नंदिवर्मा, विजयवर्मा और विजय नंदिवर्मा

6. पल्लव :
          पल्लव वंश के राजा तेलुगु प्रांत में ही नहीं अपितु पूरे दक्षिणापथ को 5 शताब्दियों तक प्रशासन करने वाले सुदृढ़ राजवंश था। इनकी राजधानी महाबलिपुरम है। अनेक महान, बड़े- बड़े मंदिरों का निर्माण करवाया गया। पल्लव चक्रवर्तियों में महेंद्रवर्मा (ई.सन् 571-630) और नरसिंहवर्मा (ई.सन् 630-668) प्रसिध्द थे।

7. विष्णु कुंडिनुलु :
  इस वंश के प्रमुख राजा थे - इंद्रवर्मा, माधववर्मा और विक्रम देव वर्मा। दो, तीन शताब्दियों तक आंध्र प्रांत में शासन करने वाले पराक्रमी राजवंश था।

8. चेदि :
         चेदि या हैहय नामक राज वंश के राजाओं ने आंध्र प्रांत के साथ-साथ पूरे दक्षिण प्रांत में शासन किया। यह राजवंश पूर्वी चालुक्य राजाओं के हाथ से पराजित हो गये।

9. पूर्वी चाळुक्य - (पूर्व चाळुक्य ) :
          आंध्र प्रांत को 5 सदियों तक शासन करने वाले राजवंश था पूर्वी चाळुक्य राजवंश। ई. सन् 7 वीं सदी के प्रारंभ में श्री कृष्ण विष्णुवर्धन के द्वारा इस वंश का श्रीगणेश हुआ है। 11 वीं सदी के अंत तक इस राजवंश का शासन चला था। करीब 30 राजाओं के शासन में इस वंश के दूसरा तथा तीसरे विजयादित्य प्रमुख हैं। राज राज नरेंद्र ने ई.सन् 1022 से ई. सन् 1060 तक राजमहेन्द्र वरम् नगर को राजधानि बनाकर शासन किया। उनके दरबारी कवि नन्नयभट्ट से आंध्र महाभारतम् काव्य की रचना करवाया।

10.तेलुगु चोळुलु :
          आंध्र प्रदेश के विभिन्न प्रांतों का शासन वेलनाटि चोळुलु, रेनाटि चोळुलु, प्रोत्तपि चोळुलु, कोणिदेन चोळुलु, नन्नूरू चोळुलु, नेल्लूरू चोळुलुनामक विविध तेलुगु चोळा वंश ने किया।

11. काकतीय राजा :
             करीब 3 शताब्दियों तक काकतीय राजाओं ने आंध्र प्रदेश में शासन चलाया। पूरा आंध्र प्रदेश इनके शासन के अंतर्गत आ गया। काकतीय राजाओं में सुप्रसिद्ध राजा है गणपति देव। इनकी बेटी रुद्रमादेवी आंध्र प्रांत का शासन करने वाली पहली महाराणी थी। महाराणी रुद्रमादेवी महा शक्तिशाली राणी थी। उसने अनेक युद्ध किया। काकतीय राजाओं ने शैव धर्म का पोषण किया। वरंगल के आसपास अनेक मंदिरों का निर्माण किया। इन मंदिरों में प्रमुख हैं - हनुमाकोंडा के हजार खंभो (Pillars) का मंदिर, वरंगल किला के अंदर स्थित स्वयंभू मंदिर, पालम् पेटा के रामप्प मंदिर आदि। काकतीय राजाओं ने कृषि का विकास किया। उसके लिए अनेक तालाबों को खुदवाकर कई एकड़ों की भूमिको खेतीबाड़ी करने लायक बनवाया। वे आज भी कृषि के लिए सहायक हैं।

12.मुसुनूरि नायक :
           काकतीय राजाओं का पतन होने के बाद आंध्रप्रदेश मुसलमान राजाओं के हाथ से पाला गया। मुसलमान राजाओं के शासन से मुक्त करा कर मुसुनूरि नायक पोलय कापयनायक, कापय नायक ने शासन किया। उनके समय में वरंगल नगर को राजधानि बनाया गया। राजा कापय नायक को ‘आंध्रसुरत्राण’ नामक उपाधि प्राप्त हुई।

13.पद्मनायका :
              काकतीय राजाओं के पास सिंगम नायक ने मंत्री के रूप में काम किया था। वही सिंगम नायक ने राचकोंडा में पद्मनायक राज्य की स्थापना की। रेचर्ल वंश के वेलमनायकों ने 14-15 शताब्दी में राचकोंडा और देवरकोंडा को राजधानि बनाकर शासन किया।

14. रेड्डि राजा :
            इसी समय माने 14-15वीं सदी में ही प्रोलय वेमारेड्डी ने अद्दंकि में रेड्डि राज्य की स्थापना की। कुछ समय के बाद राजधानि के रूप में कोंडवीटि को बना दिया गया। इस रेड्डि राजवंश में प्रोलय वेमारेड्डि, अनपोता रेड्डि, अन वेमारेड्डि, कुमार गिरिरेड्डि और पेद कोमटि वेकट रेड्डि प्रमुख राजा थे। 15वीं सदी की शुरुआत में ही राजमहेंद्रवरम में भी और एक रेड्डि राज्य की स्थापना की गई। इसके संस्थापक से श्री काटय वेमा रेड्डि और एक प्रसिद्ध राजा थे वीर महेन्द्र रेड्डि। रेड्डि राजाओं ने तेलुगु और संस्कृत साहित्य, आर्युवेद, संगीत, नृत्य आदि ललित कलाओं का पोषण किया।

15.विजयनगर साम्राज्य :
           आंध्र प्रांत के इतिहास में विजयनगर राजाओं के शासन काल को स्वर्ण युग मानते हैं। इस राज्य के बारे में अनेक विदेशी यात्रियों ने भी विभिन्न प्रकार की रचनाएँ की। संगम वंशज राजा हरिहर और बुक्क रायलु नामक राजा द्वारा ई. सन् 1336 में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की गई। इस वंश में प्रौढ़ देवरायलु प्रसिद्ध राजा थे। संगम वंश के बाद विजयनगर साम्राज्य को साळुव, तुळुव और आरवीटी वंश के राजाओं ने शासन किया। तुळुव वंश के राजा श्री कृष्ण देवराय “साहितीसमरांगण चक्रवर्ती” के नामक शीर्षक से मशहूर हुए। इनकी प्रमुख रचना है ‘अमुक्तमाल्यद’ नामक प्रौढ़ प्रबंध काव्य। अपने दरबार में अनेक महान तेलुगु कवियों का भरण पोषण किया। उनके दरबार के कवियों को ‘अष्ट दिग्गज’ नाम से जाने जाते हैं।

16. मुसलमान राजाओं का युग :
              14 वीं सदी के प्रारंभ में ही मुसलमान लोगों ने दक्षिण भारत पर आक्रमण किया। ई. सन् 1323 में काकतीय राजाओं को हराकर आंध्र प्रांत में अपने शासन का श्रीगणेश किया। ई.सन् 1347 में गुलबर्गा में बहुमनी राज्य की स्थापना हुई। कुछ समय के बाद बहुमनी राज्य टुकड़ों में बांटा गया। गोलकुंडा को राजधानि बनाकर कुतुबषाही राजवंश के शासन का शुभारंभ हुआ। ई. सन् 1687 में औरंगजेब के हमले के कारण कुतुबषाही वंश का अंत हो गया। 18 वीं सदी के आरंभ में ही निजामुल मुल्क आस़फ़जाही वंशज का शासन शुरू हुआ है। इस वंश के राजाओं को ‘निजाम’ कहते हैं। इनके शासनकाल में अनेक ऐतिहासिक निर्माणों के साथ साथ हैदराबाद शहर का भी विकास हुआ। कुतुबषाही राजाओं के शासन काल में पर्षियन राजा भाषा के रूप में थी। इस कुतुबषाही वंश के राजाओं ने अपने दरबार में तेलुगु भाषा के कवि / साहित्यकारों का भी पोषण किया। आस़फ़ जाहि के शासनकाल के अंत में पर्षियन भाषा के स्थान को उर्दू भाषा ने आक्रमण किया। उर्दू राजा भाषा बन गई। दरबार, शिक्षा तथा प्रशासनिक स्तर पर भी उर्दू का वर्चस्व बढ़ गया और तेलुगु भाषा का प्रभाव कम हो गया। 1948 सितंबर में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने पोलिस की सहायता से हैदराबाद राज्य को स्वतंत्र भारत में विलीन कर दिया। इसके साथ निजाम वंशजों का पालन का अंत हो गया।

17. ब्रिटिश शासन :
            हैदराबाद राज्य में वंशजों के बीच लड़ाई हो रही थी। इसके बीच में बिचौलिया करने से ब्रिटिश लोगों को समुद्र तट वर्ती जिले और दत्तक मंडल प्राप्त हुए। हैदराबाद की रक्षा करने की नतीजे के फलस्वरूप ब्रिटिश लोगों को जिन प्रांतों का शासन मिला था, वे प्रांत मद्रास राज्य के अंतर्गत भाग थे। भारत देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद मद्रास राज्य के प्रांत 1953 में श्री पोट्टि श्रीरामुलु के प्रयासों से अलग आंध्र राज्य बन गया।


1948 में पुलिस की कार्रवाई से छोटे-छोटे रिज्वाडों को एक करके हैदराबाद राज्य बना गया। फलस्वरूप भाषा की दृष्टि से दोनों राज्यों को मिलाकर संयुक्तराज्य के रूप में बना दिया गया। इस प्रकार तेलुगु भाषा संयुक्त प्रांतों के रूप में (1956 में) पुनर्गठन किया गया। इस अवसर पर विशाल आंध्रा का निर्माण हुआ, जो आज आंध्रप्रदेश के नाम से विख्यात है।

                 आंध्र प्रदेश की रचना के अंतर्गत आने वाले प्रांतों का नाम इस प्रकार है – 1.तटीय प्रात (वर्तमान समुद्र तटवर्ती जिले) 2. दत्तक मंडल (वर्तमान रायलसीमा) 3. निजाम हैदराबाद (वर्तमान तेलंगाणा) थे। तीन मिलकर 1956 में आंध्र प्रांत का निर्माण हुआ। तटीय प्रांत और रायलसीमा प्रांतों पर खासकर कृष्णा, गुंटुरु, पूर्वी और पश्चिम गोदावरी जिलों पर ब्रिटिश शासन का ज्यादा प्रभाव पड़ा। इन प्रांतों में अंग्रेजी भाषा का प्रभाव भी ज्यादा है। तेलंगाणा में उर्दू का प्रभाव ज्यादा है। सांस्कृतिक या मंडलिक भेद, व्यवहार शैली में अंतर, इन दोनों प्रांतों की जीवन शैली की अपनी-अपनी विशिष्टता का कारण बन गये। ये अंतर शासन व्यवस्था और सामाजिक स्तर पर भी अपना प्रभाव दिखाते हैं।

                      भारतीय संविधान के द्वारा पहचानी गयी मुख्‍य भाषाओं में दक्षिण प्रांत की तेलुगु भाषा भी एक है। यह देश की प्रमुख और विस्‍तृत भाषा है। सन् 1956 में आंध्रप्रदेश राज्‍य का निर्माण हुआ है। (पहले आंध्र और तेलंगाना दोनों को मिलाकर आंध्रप्रदेश बोलते थे) हैदराबाद उसकी राजधानी थी। तेलुगु उसकी व्‍यावहारिक और बोलचाल की भाषा है। तेलुगु प्रमुख भाषा ही नहीं बल्कि उसकी राजभाषा भी है। परंतु जून 2, 2014 में आंध्रप्रदेश से तेलंगानाप्रांत अलग हुआ है। भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक तथा समाज, संस्‍कृति से प्रभावित होकर आंध्रप्रांत और तेलंगाना में अनेक भाषाएं और लोकभाषाएँ (जनजाति की भाषाएँ) बोलनेवाली जनता बडी संख्‍या में निवास करते हैं। तेलुगु समाज उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं के साथ-साथ बहुभाषिक और बहुसांस्‍कृतिक व्‍यवस्‍था से जुड़ा है।
  डॉ. अन्नपूर्णा .सी.
हिन्दी विभाग, मानविकी संकाय
 हैदराबाद विश्व विद्यालय, गच्ची बोली
  हैदराबाद -500046, तेलंगाणा।

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