Life Lessons from Ramayana: आंध्र तथा हिंदी साहित्यों में रामायण और जीवन मूल्य

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आंध्र तथा हिंदी साहित्यों में रामायण और जीवन मूल्य

डॉ. मुल्ला आदम अली

 मानव जीवन के आरंभ के बाद ही साहित्य रचा गया। राम काव्य भी बाद में ही रचा गया, किंतु राम कथा भारत में मानव जीवन विधान को नियमान एवं नियंत्रण करती है। राम कथा भारतीयों के रोम रोम में प्रसारित उनका आत्मदर्श है।

 रामायण संस्कृत आदि काव्य के रूप में विख्यात है। यह महाकाव्य वाल्मीकि महर्षि के द्वारा लिखा गया है।

                       “रामस्य अशन इत रामायण”

 वाल्मीकि के मुख से वेद के रूप में रामायण काव्य निकला है, ऐसी मान्यता है। रामायण काव्य सात कांडों में विभक्त है। इसमें पाँच सौ सर्ग हैं और चौबीस हजार श्लोक हैं। इसलिए इसका नाम “चतुर्विशदी सहस्त्र संहिता” पड़ा है। पूरे संसार में इसे आदिकाव्य माना जाता हैं।

 हिंदी में रचित ‘रामचरित मानस’ का कवि तुलसीदास है। उन्होंने अपनी कृतियों द्वारा न केवल राम साहित्य को समृद्ध किया बल्कि हिंदी को भी समृद्ध किया। रामचरित मानस उनकी अमर कृति है। इस महाकाव्य में भगवान राम को आधार बनाकर मानव जीवन के आदर्श को प्रस्तुत किया है।

 “आंध्र तथा आंध्र वासियों के समस्त जीवन मूल्य और आचार-संस्कार संहिता भी श्री राम और सीता को ही अपना आदर्श मानती है। आंध्र राम की चरण धूलि से पुणीता पावन भूमि है। आंध्रों का साहित्य, संस्कृति और कलाएँ राम कथा से अत्यंत प्रभावित है। आंध्रों की संस्कृति के अनेक पहलू इसके साक्ष प्रमाण प्रस्तुत करते है। जीवन मूल्यों की व्याख्या के लिए आंध्र वासी राम कथा को ही प्रामाणिक मानते है।“1

 ‘रामायण’ का विश्लेषण रूप ‘राम का अयन’ है, जिसका अर्थ है ‘राम का यात्रा पथ’ क्योंकि अयन यात्रापथ वाची है। रामायण के चरित नायक भगवान राम है। जो पूर्ण ब्रह्मा है। दशरथ और कौशल्या के पुत्र के रूप में उन्होंने धरतीपर अवतार लिया। वे मर्यादा पुरुषोत्तम है। वाल्मीकि और तुलसीदास दोनों ने ही उनकी जीवन-गाथा का अत्यंत पवित्र भाव से अंकन किया है।

रामचरित मानस में जीवन के विविध प्रसंगों के मध्य रामचंद्र जी का जो रूप ऊभर कर आया है वह प्रातः स्मरणीय है। सभी पात्रों का चित्रण उच्चस्तरीय है। परिवार, समाज और राष्ट्र सभी स्तरों पर राम का चरित्र आदर्श की सीमा है।

जीवनमूल्य: मूल्यों का आयाम अत्यंत व्यापक है। मूल्य का संबंध प्रतिमान से होता है। यह प्रेम, पवित्रता, शील, नैतिकता तथा मानवीय सौंदर्य को स्थायी गुण देता है। मूल्य हमारे मार्गदर्शक है, आचरण के नियामक हमारी सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक हैं। मूल्य वह दृष्टि है, जो आपने विवेक द्वारा अतीत की महत्ता को सिद्ध करके उसे नया आयाम देता है। उसे जीवंत करता है। मूल्य एक ऐसा मापदंड है कि जिसके द्वारा सम्पूर्ण संस्कृति एवं समाज महत्ता को प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि जो भी तत्व मानव मात्र के लिए हितैषी है, आनंददायक है। ऐसे सारे तत्व जीवन मूल्य की श्रेणी में आ जाते हैं। जीवन मूल्यों के अंतर्गत प्रेम, मानवीय करुणा, ईमानदारी, भातृत्व, परोपकार, त्याग, निष्ठा, उत्तरदायित्व, दया, अच्छाई से सरोकार आदि समाहित हैं। साहित्य में रचनाकार सभी मूल्यों को जन जीवन की व्यावहारिकता के आधार पर चित्रित करता है। रचनाकार यह उम्मीद करता है कि उसने मानव को उचित दिशा प्रदान की है। ऐसी उम्मीद तभी कर सकता है कि जब वह स्वयं जीवन मूल्यों से प्रेरित हो। जीवन मूल्य परिवर्तनशील होते हैं। श्रेष्ठ साहित्यकार मूल्यों का सही विश्लेषण करके उन मूल्यों को नकारता है जो समाज की प्रगति में बाधक होते हैं। तभी रचनाकार को अपनी रचना प्रक्रिया में अनुभूति की वास्तविकताओं से गुजरने का सौभाग्य प्राप्त होता हैं। समाज में आदर्शों की स्थापना के लिए तुलसीदास ने अपने साहित्य में इस कि विशद चर्चा की है। उनकी चर्चा उपदेशमूलक न होकर चरित्र के सहज अंग के रूप में प्रकट हुई है। परिवार व समाज में शांति की स्थापना के लिए मर्यादा अनिवार्य है। इसके अलावा सत्य, अहिंसा, दया, आचरण की पवित्रता, मूल अधिकार एवं उत्तम कर्म सभी की अपेक्षा इस समाज को है। तुलसीदास ने अपने इन गुणों को अपने चरित्रों में डालकर पेश किया है। उन्होंने सभी गुणों की प्रतिष्ठा की है। श्री राम सर्व गुण संपन्न और सद्गुण मूर्तिमान थे। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनके सद्गुण निरूपित हुए है। वे आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श राजा, आदर्श मित्र, आदर्श आश्रयदाता, आदर्श वीर योद्धा, आदर्श धर्मपालक आदि आदर्श रूप थे। इस रूप में वे असाधारण एवं अप्रतिम मनुष्य थे। पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन के मधुर आदर्श तथा उत्सर्ग की भावना रामचरित मानस में सर्वत्र बिखरी पड़ी है। तुलसी की काव्य चेतना में जीवन मूल्यों एवं मानव मूल्यों का समन्वय है और यह मूल्य निरूपण भारतीय संस्कृति में उदात्त मूल्यों एवं नैतिकता के आदर्शों से अनुप्राणित है। कर्तव्य परायणता, शिष्टाचार, सदाचरण, कर्मण्यता, निष्कपटता, सच्चाई, न्यायप्रियता, क्षमा आदि नैतिक मूल्यों का क्षेत्र सीमित नही है, इसलिए यह काव्य अग्रस्थन प्राप्त किये हुए दिखाया गया है ताकि समाज एवं लोक जीवन उन्नत बने।

निष्कर्ष: राम कथा कहनेवाली रामायण मानव जीवन का सर्वस्व है। उसके पठन से, पालन करने से राम राज्य की सुख-सुविधाएँ प्राणी मात्र को प्राप्त होने की पूरी संभावना है।

संदर्भ:-

1. राम कथा: जीवन, साहित्य एवं कला – संपादक: डॉ.एम.रामनाधम

2. रामचरित मानस में जीवन मूल्य- अमितरानी सिंह

ये भी पढ़ें;

* भारतीय भाषाओं में राम साहित्य की प्रासंगिकता : लोकतंत्र का संदर्भ

* एक देश बारह दुनिया (पुस्तक समीक्षा) : ममता जोशी

* लोकतंत्र, मीडिया और समकाल : डॉ. ऋषभदेव शर्मा

बिश्नोई समाज : जीवनशैली और पर्यावरण संरक्षण" - मिलन बिश्नोई

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