🎭 धूर्तता (ग़ज़ल)
हो मुखौटे पास कितने, खोट छिप पाता नहीं
दूध कितना भी पिलाओ, सर्प विष जाता नहीं
धूर्तता हावी हुई जब, खो गई मासूमियत
कुटिलता में लीन तन मन, लब हँसी लाता नहीं
हो खड़े बगुला भगत से, अवसरों की चाह में
लूटते सुख चैन जिनका, क्या कभी नाता नहीं
है अहम का खेल या फिर, दुष्टता दिल में बसी
जो उजाड़े घर बया का, सीख सुन पाता नहीं
ये तुम्हारी खैरख्वाही, शहद में लिपटी जुबां
फिर नया षडयंत्र कोई, दोस्त चौंकाता नहीं
क्यों निरंतर डस रहे तुम, आसतीनों में छिपे
सामने आ जहर उगलो, "कुमुद" घबड़ाता नहीं
अशोक श्रीवास्तव 'कुमुद'
राजरूपपुर, प्रयागराज
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