Sondhi Mahak Pustak Samiksha: सोंधी महक पुस्तक समीक्षा - पूनम सिंह

Dr. Mulla Adam Ali
0

Sondhi Mahak Book Review by Poonam Singh

"ग्रामीण मनोभावों की ठंडी बयारों में से आती खुशबु के सोंधेपन को इस काव्य कृति 'सोंधी महक' में महसूस करेंगे" - पूनम सिंह 

पुस्तक - सोंधी महक (काव्य संग्रह) 

लेखक - अशोक श्रीवास्तव 'कुमुद'

पृष्ठ संख्या - 128

मूल्य - 175 

Sondhi Mahak Book Flipkart Link: https://dl.flipkart.com/s/2uf1F3NNNN

 ख्यातनाम लेखक आदरणीय अशोक श्रीवास्तव जी सर इलाहाबाद प्रयागराज से आते है। आप पिछले कई वर्षो से लेखन क्षेत्र में सक्रिय हैं और आपकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। आप के द्वारा लिखित अब तक की प्रकाशित पुस्तकें - एकल काव्य संग्रह, - अंतर्नाद, ( छंदबध) " सुरबाला , सोंधी महक, प्रकाशनाधीन - "तरंगीनी"

साँझा संकलन में भी प्रकाशित पुस्तकें पाठकों के दिल में अपना स्थान बना चुकी है। उदहारणत: - "अभिव्यंजना, अभिनव हस्ताक्षर, ओस के मोती, काव्य अक्षत, हमारी शान तिरंगा हैं।, अभिनव अभिव्यंजना। 

आदरणीय अशोक श्रीवास्तव जी सर को कई ख्यातनाम मंचों से सम्मानित किया गया हैं। जिनमें साहित्य संगम संस्थान दिल्ली, सच की दस्तक पत्रिका द्वारा सम्मानित, प्रयागराज द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान से सम्मानित है। इत्यादि....

चिंतन और मंथन मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है। सार्थक चिंतन इंसान को इंसानियत की ओर अग्रसर करती है। सकारात्मक भाव विशिष्ट के निवारण हेतु हो तो प्रशंसनीय है। परिवर्तन की अकांछा से प्रेरित रचनाएँ पढ़ने को आकृष्ट करती है। और इन्हीं विचारों के मद्देनज़र आदरणीय अशोक श्रीवास्तव जी की भावनाएं उनकी कृति सोंधी महक में मुखरित हुई है। सामाजिक समस्याएं, आर्थिक व्यवस्था, राजनैतिक परिवर्तन की गुजारिश है। आपने समाज की आंतरिक दशा, मनोदशा पर तीखी निगाह रखी है और रचनाओं में आंचलिक भाषा से रचनात्मक शैली प्रभावशाली व मोहक बन पड़ी है। वहाँ के परिवेश, माहौल का व्यक्ति विशेष में भावनाओं को गहराई से जोड़ पाना सकारात्मक तथ्यात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है। 

काव्य संग्रह में - गांव की पद्धति, रहन-सहन, वैचारिक स्तर के समुचित व्याख्यान को ग्रामीण मनोभावों की ठंडी बयारों में से आती खुशबु के सोंधेपन को इस काव्य कृति 'सोंधी महक' में महसूस करेंगे। 

 पर्यावरण, नेतागिरी, कन्या शिक्षा, चुनाव ,ग्रामीण अस्पताल, स्कूल, महिला सशक्तिकरण इत्यादि व अकाल पड़ने पर गाँवो के नदी तालाब सुख जाने के कारण लोगों को मनरेगा पर काम करने को मजबूर हुए। जैसे अन्य ऐसे ही कई सामाजिक संदर्भों पर आपका जिम्मेदाराना नज़रिया वाजिब है। गाँव की मूल भूत समस्याओं को बुधियार बुधिया के माध्यम से कहने का प्रयास किया है। 

    प्रथम अध्याय श्री गणेश तथा सरस्वती वंदना से आरंभ होता है। गांव में भारतीय संस्कृति के दर्शन मिलते हैं। हमारा देश उत्तरोत्तर वृद्धि की ओर अग्रसर है। किंतु गाँवो में आज भी कई मूलभूत समस्याएं मूहँ बाये खड़ी है। व्यवस्था है तो समझ नहीं , विलोमतः। अल्पज्ञता वश अधिकतर जगह ठगे जाने का भय बना रहता है अनुशासनहीन न्याय प्रणाली में एक आम आदमी को अपने ही खेत छुड़ाने में चमड़ी और दमड़ी लग जाती है किंतु उसे न्याय नहीं मिलता। जैसा कि हम देख सकते हैं -  

तारीख पर तारीख का चक्कर /गजब अदालत का मेला / खतम ना होए चलता जाए /हाकिम अफसर का मेला

महंगाई हर वर्ग के लिए जेब काटने के समान है। फिर बात जब गाँव की हो तो कमजोर तबके के लोगों की मानसिक स्थिति व आर्थिक हालत समझी जा सकती है। 

सब्जी भर का तेल नही बा/ कसमसाय बुधिया तड़पे दिया तेल जलावे का

उचित अर्थव्यवस्था हो या शिक्षा संबंधी व्यवस्था की खामियां लोगों को गाँव से शहरों की ओर पलायन हेतु मजबूर कर रही है। बड़े बुजुर्गों का एकाकीपन बरगद से की गई तुलनात्मक व्याख्या चिंतनीय है। तो वहीं अज्ञानता वश गिटपिट अंग्रेज़ी बोलने वालो से प्रभावीत होकर बच्चों को उनसे शिक्षित करवाना खाई में धकेलने के बराबर है। 

आधुनिकता की ओर बढ़ते समाज में बेटी पढ़ाओ, सर्वशिक्षा अभियान के बावजूद हमारे जकड़न भरे विचारों में कमी नहीं आई है , की ओर ध्यान आकर्षित करती ओर देश बढ़ाओ का अलख जगाती रचना "औरत " में विचारणीय है। 

ज्यों ज्यों औरत बढ़ती आगे

त्यों त्यों देश बढे आगे/ कंधे कंधे जब मिलि चलिहे/ भारत भाग्य तबै जागे। 

"बुधिया और चुनाव" रचना में जात पात धर्म के नाम पर वोट बटोरने वाले नेताओं पर बुधिया की खीज वाजिब है। 

समाज अगर तरक्की करेगा तो उसके फायदे है तो नुकसान भी। नये प्रबंधन में हैंड पंप आने से पूर्व संचालित रोजगार कुएं से पानी खींचने की नौकरी से बुधिया हाथ धो बैठता है।जैसा की हम देख सकते है। कविता - विद्यालय में हैंड पंप " विद्यालय में लड़कन खातिर पानी साफ पिलावै का/ सरकारी अनुदान मिला है/ हैंड पंप लगावै का।

  यूरिया के अधिकतर इस्तेमाल से खेतों की क्षीण होती जा रही उर्वरा शक्ति के "कंपोस्ट खाद" की ओर रुझान होने के सकरात्मक विचार को दर्शाया है। 

जैसे की - सही समय पर सही खाद हो/ 

संग संग कंपोस्ट खाद भी, / बात सबै संमझावे का।" 

 शराब की लत से उजड़ते घर और बच्चों की रुकती पढ़ाई लिखाई की ओर एक जिम्मेदराना नज़रिया पेश किया है।

"बुधिया देखत मन में सोचें /बिरजू गड़बड़ या दारू / लड़कन फीस के दारू पिया/ गहना गुरिया सब कुछ बिकगै, बचा नहीं कुछ टेंटे में। 

 गांव में आबादी हेतु कटते जा रहे वृक्ष पर "पर्यावरण" सरंक्षण की ओर ध्यान आकृष्ट करती रचना में कवि की चिंतनीय दृष्टि है- दूर दूर तक पेड़ दिखे ना/ सड़क विकास नजारा बा/ होम हुआ सब लालच बेदी / पर्यावरण हमारा बा। 

लड़के और लड़की के मध्य शिक्षा के मतांतर को दर्शाती रचना - कंप्यूटर पर काम करती करे का/ बिटिया का मनवा चाहे / घर में कोई साथ ना देता शादी की सबको जल्दी बा ।

दस का बड़ा मुनु बा पर, / चिंता खूब पढावे का। 

 आजकल की राजनीति पर करारा व्यंग्य करती रचना "नेतागिरी" में, अगर कुछ ना कर पाओ तो नेता बन जाओ और झूठ बोलने की तर्ज पर पैसे कमाओ। 

कोरोना की विभीषिका में सिमटती दुनिया और उससे उपजे दुष्प्रभाव को "कोरोना के ज्वार "रचना में बढ़िया लिखा तो वहीं आपसी एकता भी बढ़ी है इसका भी वर्णन है।

 चुनाव का मौसमी बहार "अबकी चुनाव" रचना में गांव की रंगत बदल देती है गांव वालों को मुफ्त का राशन पानी और दारू दवा, भंडारे की सेवा भी मुफ्त में मिलने लगती है। 

 आधुनिक युग में भी भूत-प्रेत भगाने की आड़ में ठगी का बाजार गर्म है। 

अज्ञानता इंसान की समझ को पंगु बना देती है । आर्थिक समस्याएं भी जनसंख्या वृद्धि में कारक है। इसकी एक बानगी "परिवार नियोजन" रचना से - ज्यादा लड़के बोझ ना/ रमुआ कहत बा / ज्यादा मजदूरी आवै खर्चा चलत बा। 

पंचायत में टीवी, घरेलू स्कूल, बसेसर बारात में " जैसी रचनाओं में हास्य व्यंग्य का छौंक सरसता बनाये हुए है। 

रचनाएँ सरल व सरस है। हर वर्ग के लिए पठनीय व संग्रहनीय है। विशेषकर वर्तमान पीढी जो गाँवों की सभ्यता, पारंपरिक रीति रिवाज, अर्थोपार्जन के साधन, तरीके समस्याएं, प्रसाशनिक ढाँचा, से अनभिज्ञ है उनके लिए ये पुस्तक जानकारी परक होगी।

कागजों की गुणवत्ता उत्तम है। 

पुस्तक की भूमिका आदरणीय इम्तियाज अहमद गाजी जी ने लिखी है। 

आदरणीय अशोक श्रीवास्तव जी सर को इस पुस्तक की सफलता हेतु उन्हें बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ देती हूँ।

पूनम सिंह
दिल्ली

ये भी पढ़ें; सोंधी महक पुस्तक समीक्षा : मनोरमा जैन पाखी

Sondhi Mahak Pustak Samiksha in Hindi, Sondhi Mahak Book Review in Hindi, Ashok Srivastava 'Kumud' Sondi Mahak Book Review, Hindi Book review....

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top