Ritu Verma Poetry in Hindi
Kavita Man
रितु वर्मा की कविताएं
मन
मेरे मन को न जाने
कब क्या अच्छा लगता हैं?
कभी भीड़ तो कभी अकेलापन
बेहद अच्छा लगता है।
रहता है जब मन भीड़ में तो
उसे तन्हा रहना अच्छा लगता हैं।
और ये जब तन्हा रहता है ,
तब भीड़ ढूंढता रहता हैं।
मन के इस उथल-पुथल में
सब कुछ उलझा सा लगता हैं।
पर देखती हूँ!अचानक मैं किसी को
विषम परिस्थितियों में घिरे हुए
और वह उन सभी स्थितियों में
एक समान सा रहता हैं।
तब ऐसा लगता है मुझको
अपना हर पल अच्छा चल रहा है
ऐसा उस पल में लगता हैं।
जिन पलों में उलझी हुई हूँ,
वो उलझन तो कुछ है ही नहीं
मन को तब ऐसा ये लगता हैं।
मना ले जब मन को हम अपने
ये सब जीवन का एक हिस्सा है।
तब ये मन भी उन सब स्थितियों में
बस एक सा बनकर रहता हैं।
रितु वर्मा
छत्तरपुर (नई दिल्ली)
ये भी पढ़ें; Poem On Books In Hindi : अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक दिवस पर एक कविता किताबों का साथ
Poem on mind in Hindi, Man Par Kavita, Ritu Verma Poetry Hindi, Kavita Kosh, Hindi Poetry, Best Poetry in Hindi...